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सौम्या गुर्जर के निलंबन को लेकर हाईकोर्ट आज सुनाएगी फैसला

जयपुर ग्रेटर नगर निगम (Suspended Mayor Soumya Gurjar) के महापौर पद से निलंबन के मामले में पूर्व मेयर सौम्या गुर्जर की याचिका पर हाई कोर्ट (Rajasthan High Court) सोमवार को अपना फैसला सुनाएगा. न्यायाधीश पंकज भंडारी और न्यायाधीश सीके सोनगरा की खंडपीठ सुबह साढ़े दस बजे फैसला देगी.

jaipur high court news, जयपुर हाई कोर्ट की खबर
सौम्या गुर्जर के निलंबन मामले में हाई कोर्ट सुनाएगी फैसला
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Published : Jun 27, 2021, 8:31 PM IST

Updated : Jun 28, 2021, 9:09 AM IST

जयपुर. ग्रेटर नगर निगम (Greater Municipal Corporation) के महापौर पद से निलंबन के मामले में पूर्व मेयर सौम्या गुर्जर (Former Mayor Soumya Gurjar) की याचिका पर हाई कोर्ट (High Court) सोमवार को अपना फैसला सुनाएगा. न्यायाधीश पंकज भंडारी और न्यायाधीश सीके सोनगरा की खंडपीठ सुबह साढ़े दस बजे फैसला देगी.

नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 को दी है चुनौती

सौम्या गुर्जर की ओर से नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. इस धारा के तहत दुर्व्यवहार के आधार पर जनप्रतिनिधि को हटाने का प्रावधान है. सौम्या गुर्जर की ओर से धारा 39 को असंवैधानिक बताते हुए कहा गया है कि दुर्व्यवहार शब्द को अधिनियम में परिभाषित ही नहीं किया गया है. ऐसे में दुर्व्यवहार किसे माना जाए, यह तय नहीं है.

सौम्या गुर्जर की ओर से यह रखी गई दलील

याचिका में कहा गया है कि निगम आयुक्त की ओर से राज्य सरकार को भेजी शिकायत और दर्ज कराई गई एफआईआर में याचिकाकर्ता का नाम ही नहीं है. इसके अलावा राज्य सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी से जुडे़ प्रकरण की जांच आरएएस अधिकारी को सौंप दी और जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता को जवाब देने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया. जांच रिपोर्ट पर राज्य सरकार ने तत्काल न्यायिक जांच के आदेश देते हुए याचिकाकर्ता को महापौर और पार्षद पद से निलंबित कर दिया.

पढ़ेंः पूर्व मंत्री रोहिताश शर्मा का पलटवार, कहा-नोटिस भेजने से पहले बात तो करते पूनिया...मेरा चेहरा पसंद नहीं तो फोन ही कर लेते

याचिका में कहा गया कि नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 में बताए गए दुर्व्यवहार के आधार पर याचिकाकर्ता को हटाया गया है, लेकिन अधिनियम में दुर्व्यवहार शब्द को परिभाषित ही नहीं किया गया है. सौम्या गुर्जर की ओर से कहा गया कि यदि प्रारंभिक जांच में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की अनदेखी होती है तो ज्यूडिशियल रिव्यु (Judicial Review) किया जा सकता है.

धारा 39 के परन्तुक में प्रावधान है कि जांच से पहले जनप्रतिनिधि से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा. इसके अलावा याचिकाकर्ता के पास कंपनी के आठ करोड़ की फाइल ही आई थी. याचिकाकर्ता की पेनल्टी की गणना कर भुगतान की बात कहने पर आयुक्त ने पचास फीसदी भुगतान करने को कहा. याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि यदि निलंबन को छोड़कर सिर्फ धारा 39 की वैधानिकता को चुनौती दी जाती तो बिना ठोस कारण के हाईकोर्ट उस पर सुनवाई ही नहीं करता. सफाई कंपनी के हड़ताल करने पर आयुक्त ने कार्रवाई के बजाए उसे भुगतान करने के लिए कह दिया. कंपनी को हाईकोर्ट ने आठ सप्ताह के लिए काम करने की छूट दी थी ना कि हड़ताल करने या सरकार को भुगतान करने के निर्देश दिए थे.

राज्य सरकार ने यह कहकर किया विरोध

राज्य सरकार की ओर से याचिका के विरोध में कहा गया कि जांच अधिकारी क्षेत्रीय निदेशक स्तर की अधिकारी है. उन्होंने मामले में स्वतंत्र जांच की है. सरकार याचिकाकर्ता का पक्ष सुने बिना प्रारंभिक जांच के आधार पर कार्रवाई कर सकती है. इसके बावजूद याचिकाकर्ता को नोटिस दिया गया, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया.

याचिकाकर्ता न्यायिक जांच के दौरान अपना पक्ष रख सकती हैं. नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 के तहत दुर्व्यवहार के आधार पर जनप्रतिनिधि को हटाया जा सकता है. दुर्व्यवहार को किसी परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता है.

ऐसे में याचिकाकर्ता का निलंबन संविधान के अनुकूल है. इसके अलावा निगम का कार्य आवश्यक सेवा में आता है. इसलिए नोटिस का जवाब देने के लिए रविवार को याचिकाकर्ता को बुलाना विधि सम्मत था. इसके साथ ही यदि सफाई करने वाली कंपनी को भुगतान नहीं किया जाता तो अदालती अवमानना होती. महाधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने धारा 39 की वैधानिकता को चुनौती देने की आड़ में अपने निलंबन के खिलाफ याचिका दायर की है. ऐसे में प्रकरण की सुनवाई एकलपीठ को करनी चाहिए. इसके साथ ही जांच अधिकारी की प्रारंभिक जांच के खिलाफ ज्यूडिशियल रिव्यु नहीं किया जा सकता.

पक्षकार बनने के प्रार्थना पत्र को हर्जाने के साथ खारिज किया

सुनवाई के दौरान स्थानीय निवासी मोहनलाल नामा ने प्रार्थना पत्र पेश कर प्रकरण में पक्षकार बनने की गुहार की. प्रार्थना पत्र में कहा गया कि कानून की वैधानिकता को चुनौती दी गई है. इसलिए आमजन के प्रतिनिधि के तौर पर उनका पक्ष भी सुना जाए. जिसे खारिज करते हुए अदालत ने नामा पर पचास हजार रुपए का हर्जाना लगाया था.

दो दिन चली मामले की सुनवाई

सौम्या गुर्जर की याचिका पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 11 जून को लगातार पांच घंटे सुनवाई की. सुनवाई अधूरी रहने के चलते अदालत ने मामले को सुनवाई के लिए 14 जून को सूचीबद्ध करने के आदेश दिए. राज्य सरकार की ओर से 14 जून को करीब चार घंटे तक पक्ष रखा गया. आखिर में अदालत ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सौम्या सहित अन्य पार्षदों के खिलाफ पेश हो चुका है आरोप पत्र

नगर निगम आयुक्त यज्ञमित्र की ओर से अपने साथ दुर्व्यवहार और मारपीट को लेकर शहर के ज्योति नगर थाने में सौम्या गुर्जर सहित अन्य पार्षदों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी. जिस पर जांच करते हुए पुलिस ने गत दिनों सौम्या गुर्जर सहित एफआईआर में उल्लेखित पार्षदों के खिलाफ निचली अदालत में आरोप पत्र पेश किया गया है.

तीन पार्षदों की याचिका भी है लंबित

सौम्या गुर्जर की याचिका में फैसला सुरक्षित रखने के बाद प्रकरण में निलंबित किए गए पारस जैन सहित तीन पार्षदों ने भी नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 के प्रावधानों को चुनौती देते हुए खंडपीठ में याचिका दायर की गई है. याचिका में धारा 39 के तहत की गई कार्रवाई को अवैध बताते हुए जारी किए गए निलंबन आदेश को रद्द कर सदस्यता पुन: बहाल करने की गुहार लगाई गई है. याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने राज्य सरकार को जवाब पेश करने के लिए एक जुलाई का समय दिया है.

यह है मामला

गौरतलब है कि निगम कार्यालय में सौम्या गुर्जर और आयुक्त यज्ञमित्र शहर में सफाई करने वाली कंपनी के बकाया भुगतान के संबंध में चर्चा कर रहे थे. यज्ञमित्र का आरोप है कि उन्हें कोरोना नियंत्रण की बैठक के लिए कलेक्टर ऑफिस जाना था, लेकिन सौम्या गुर्जर की मौजूदगी में पारस जैन सहित अन्य पार्षदों ने उन्हें बैठक में जाने से रोका और मारपीट भी की.

पढ़ेंः एसीबी की कार्रवाई पर सतीश पूनिया ने गहलोत सरकार पर बोला हमला, 'कमजोर सरकार की निशानी है ये'

आयुक्त यज्ञमित्र की ओर से मामले में राज्य सरकार को शिकायत भेजते हुए ज्योति नगर थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई गई. वहीं, राज्य सरकार ने प्रकरण की जांच क्षेत्रीय निदेशक स्तर के आरएएस अधिकारी को सौंपी. जिसने अपने जांच के बाद सौम्या गुर्जर और पार्षदों को दोषी माना. जांच रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने इन्हें महापौर और पार्षद पद से निलंबित करते हुए प्रकरण की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए.

जयपुर. ग्रेटर नगर निगम (Greater Municipal Corporation) के महापौर पद से निलंबन के मामले में पूर्व मेयर सौम्या गुर्जर (Former Mayor Soumya Gurjar) की याचिका पर हाई कोर्ट (High Court) सोमवार को अपना फैसला सुनाएगा. न्यायाधीश पंकज भंडारी और न्यायाधीश सीके सोनगरा की खंडपीठ सुबह साढ़े दस बजे फैसला देगी.

नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 को दी है चुनौती

सौम्या गुर्जर की ओर से नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. इस धारा के तहत दुर्व्यवहार के आधार पर जनप्रतिनिधि को हटाने का प्रावधान है. सौम्या गुर्जर की ओर से धारा 39 को असंवैधानिक बताते हुए कहा गया है कि दुर्व्यवहार शब्द को अधिनियम में परिभाषित ही नहीं किया गया है. ऐसे में दुर्व्यवहार किसे माना जाए, यह तय नहीं है.

सौम्या गुर्जर की ओर से यह रखी गई दलील

याचिका में कहा गया है कि निगम आयुक्त की ओर से राज्य सरकार को भेजी शिकायत और दर्ज कराई गई एफआईआर में याचिकाकर्ता का नाम ही नहीं है. इसके अलावा राज्य सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी से जुडे़ प्रकरण की जांच आरएएस अधिकारी को सौंप दी और जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता को जवाब देने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया. जांच रिपोर्ट पर राज्य सरकार ने तत्काल न्यायिक जांच के आदेश देते हुए याचिकाकर्ता को महापौर और पार्षद पद से निलंबित कर दिया.

पढ़ेंः पूर्व मंत्री रोहिताश शर्मा का पलटवार, कहा-नोटिस भेजने से पहले बात तो करते पूनिया...मेरा चेहरा पसंद नहीं तो फोन ही कर लेते

याचिका में कहा गया कि नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 में बताए गए दुर्व्यवहार के आधार पर याचिकाकर्ता को हटाया गया है, लेकिन अधिनियम में दुर्व्यवहार शब्द को परिभाषित ही नहीं किया गया है. सौम्या गुर्जर की ओर से कहा गया कि यदि प्रारंभिक जांच में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की अनदेखी होती है तो ज्यूडिशियल रिव्यु (Judicial Review) किया जा सकता है.

धारा 39 के परन्तुक में प्रावधान है कि जांच से पहले जनप्रतिनिधि से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा. इसके अलावा याचिकाकर्ता के पास कंपनी के आठ करोड़ की फाइल ही आई थी. याचिकाकर्ता की पेनल्टी की गणना कर भुगतान की बात कहने पर आयुक्त ने पचास फीसदी भुगतान करने को कहा. याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि यदि निलंबन को छोड़कर सिर्फ धारा 39 की वैधानिकता को चुनौती दी जाती तो बिना ठोस कारण के हाईकोर्ट उस पर सुनवाई ही नहीं करता. सफाई कंपनी के हड़ताल करने पर आयुक्त ने कार्रवाई के बजाए उसे भुगतान करने के लिए कह दिया. कंपनी को हाईकोर्ट ने आठ सप्ताह के लिए काम करने की छूट दी थी ना कि हड़ताल करने या सरकार को भुगतान करने के निर्देश दिए थे.

राज्य सरकार ने यह कहकर किया विरोध

राज्य सरकार की ओर से याचिका के विरोध में कहा गया कि जांच अधिकारी क्षेत्रीय निदेशक स्तर की अधिकारी है. उन्होंने मामले में स्वतंत्र जांच की है. सरकार याचिकाकर्ता का पक्ष सुने बिना प्रारंभिक जांच के आधार पर कार्रवाई कर सकती है. इसके बावजूद याचिकाकर्ता को नोटिस दिया गया, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया.

याचिकाकर्ता न्यायिक जांच के दौरान अपना पक्ष रख सकती हैं. नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 के तहत दुर्व्यवहार के आधार पर जनप्रतिनिधि को हटाया जा सकता है. दुर्व्यवहार को किसी परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता है.

ऐसे में याचिकाकर्ता का निलंबन संविधान के अनुकूल है. इसके अलावा निगम का कार्य आवश्यक सेवा में आता है. इसलिए नोटिस का जवाब देने के लिए रविवार को याचिकाकर्ता को बुलाना विधि सम्मत था. इसके साथ ही यदि सफाई करने वाली कंपनी को भुगतान नहीं किया जाता तो अदालती अवमानना होती. महाधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने धारा 39 की वैधानिकता को चुनौती देने की आड़ में अपने निलंबन के खिलाफ याचिका दायर की है. ऐसे में प्रकरण की सुनवाई एकलपीठ को करनी चाहिए. इसके साथ ही जांच अधिकारी की प्रारंभिक जांच के खिलाफ ज्यूडिशियल रिव्यु नहीं किया जा सकता.

पक्षकार बनने के प्रार्थना पत्र को हर्जाने के साथ खारिज किया

सुनवाई के दौरान स्थानीय निवासी मोहनलाल नामा ने प्रार्थना पत्र पेश कर प्रकरण में पक्षकार बनने की गुहार की. प्रार्थना पत्र में कहा गया कि कानून की वैधानिकता को चुनौती दी गई है. इसलिए आमजन के प्रतिनिधि के तौर पर उनका पक्ष भी सुना जाए. जिसे खारिज करते हुए अदालत ने नामा पर पचास हजार रुपए का हर्जाना लगाया था.

दो दिन चली मामले की सुनवाई

सौम्या गुर्जर की याचिका पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 11 जून को लगातार पांच घंटे सुनवाई की. सुनवाई अधूरी रहने के चलते अदालत ने मामले को सुनवाई के लिए 14 जून को सूचीबद्ध करने के आदेश दिए. राज्य सरकार की ओर से 14 जून को करीब चार घंटे तक पक्ष रखा गया. आखिर में अदालत ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सौम्या सहित अन्य पार्षदों के खिलाफ पेश हो चुका है आरोप पत्र

नगर निगम आयुक्त यज्ञमित्र की ओर से अपने साथ दुर्व्यवहार और मारपीट को लेकर शहर के ज्योति नगर थाने में सौम्या गुर्जर सहित अन्य पार्षदों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी. जिस पर जांच करते हुए पुलिस ने गत दिनों सौम्या गुर्जर सहित एफआईआर में उल्लेखित पार्षदों के खिलाफ निचली अदालत में आरोप पत्र पेश किया गया है.

तीन पार्षदों की याचिका भी है लंबित

सौम्या गुर्जर की याचिका में फैसला सुरक्षित रखने के बाद प्रकरण में निलंबित किए गए पारस जैन सहित तीन पार्षदों ने भी नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 के प्रावधानों को चुनौती देते हुए खंडपीठ में याचिका दायर की गई है. याचिका में धारा 39 के तहत की गई कार्रवाई को अवैध बताते हुए जारी किए गए निलंबन आदेश को रद्द कर सदस्यता पुन: बहाल करने की गुहार लगाई गई है. याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने राज्य सरकार को जवाब पेश करने के लिए एक जुलाई का समय दिया है.

यह है मामला

गौरतलब है कि निगम कार्यालय में सौम्या गुर्जर और आयुक्त यज्ञमित्र शहर में सफाई करने वाली कंपनी के बकाया भुगतान के संबंध में चर्चा कर रहे थे. यज्ञमित्र का आरोप है कि उन्हें कोरोना नियंत्रण की बैठक के लिए कलेक्टर ऑफिस जाना था, लेकिन सौम्या गुर्जर की मौजूदगी में पारस जैन सहित अन्य पार्षदों ने उन्हें बैठक में जाने से रोका और मारपीट भी की.

पढ़ेंः एसीबी की कार्रवाई पर सतीश पूनिया ने गहलोत सरकार पर बोला हमला, 'कमजोर सरकार की निशानी है ये'

आयुक्त यज्ञमित्र की ओर से मामले में राज्य सरकार को शिकायत भेजते हुए ज्योति नगर थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई गई. वहीं, राज्य सरकार ने प्रकरण की जांच क्षेत्रीय निदेशक स्तर के आरएएस अधिकारी को सौंपी. जिसने अपने जांच के बाद सौम्या गुर्जर और पार्षदों को दोषी माना. जांच रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने इन्हें महापौर और पार्षद पद से निलंबित करते हुए प्रकरण की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए.

Last Updated : Jun 28, 2021, 9:09 AM IST
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