जयपुर. राजस्थान हाइकोर्ट ने मुख्य सचिव, प्रमुख चिकित्सा सचिव, प्रमुख गृह सचिव, डीजीपी और प्रमुख सामाजिक न्याय और अधिकारिता सचिव को नोटिस जारी कर पूछा है कि दुष्कर्म के कारण गर्भवती हुई पीड़िताओं को अपनी इच्छा के विपरीत संतानों को जन्म क्यों देना पड़ रहा है? न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश नरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश शालिनी श्योराण की ओर से दायर जनहित याचिका पर दिए.
जनहित याचिका में कहा गया कि कई बार दुष्कर्म के कारण पीड़िता गर्भ धारण कर लेती है. पीड़िता की इच्छा इस संतान को जन्म देने की नहीं होती, लेकिन मामले में एफआईआर दर्ज होने के बाद गर्भपात की प्रक्रिया जटिल हो जाती है. जिसके कारण अवधि बीतने के बाद स्वास्थ्य के दृष्टि से उसका गर्भपात नहीं हो पाता और उसे ना चाहते हुए भी संतान को जन्म देना पड़ता है, फिर चाहे पीड़िता खुद नाबालिग ही क्यों ना हो.
इसके अलावा ऐसे मामलों में तत्काल डीएनए जांच भी नहीं कराई जाती. दूसरी ओर कई बार गर्भपात की पेचीदगियों से बचने के लिए पीड़ित पक्ष दूसरे उपायों से गर्भपात करा लेता है. जिससे डीएनए सुरक्षित नहीं रहता और आरोपी सजा से बच जाता है. याचिका में गुहार लगाई गई है कि दुष्कर्म से गर्भवती हुई पीड़िताओं का रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए. वहीं पुलिस जांच शुरू करते ही डीएनए के लिए सेम्पल सुरक्षित करे.
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इसके अलावा पुलिस, विधिक सेवा प्राधिकरण और स्वास्थ्य विभाग आपसी समन्वय से पीड़िताओं की काउंसलिंग कराए और उन्हें गर्भपात कराने को लेकर सहायता उपलब्ध कराए. याचिका में यह भी कहा गया कि चिकित्सक के पास जाने पर वह तुरंत पीड़िता का गर्भपात करने की कार्रवाई शुरू करे. जिस पर सुनवाई करते हुए खण्डपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.