जयपुर. प्रदेश की गहलोत सरकार सत्ता में आने के साथ ही जवाबदेही कानून लाने का वादा किया था, लेकिन ढाई साल सरकार के कार्यकाल गुजरने के बावजूद घोषणा पत्र में किए गए इस बिल को लागू नहीं कर पाई, जिसके बाद सामाजिक संगठनों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया. आरोप ब्यूरोक्रेसी पर ज्यादा था कि जिन अधिकारियों और कर्मचारियों की जवाबदेही इस बिल के आने के बाद ज्यादा बढ़ जाएगी वो नहीं चाहते कि सरकार जवाबदेही कानून को लागू करे.
'नौकरशाही ने रोक रखा है जवाबदेही कानून बिल'
पिछले दिनों ईटीवी भारत से बातचीत में सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा था कि नौकरशाही ने इस बिल को रोक रखा है, जबकि यह राजनीतिक कमिटमेंट है. बजट में इसका अनाउसमेंट हुआ है, लेकिन इससे लागू नहीं होने दिया जा रहा है.
जवाबदेही कानून से जनता को लाभ मिलेगाः डे
डे ने कहा कि कोरोना काल में लोगों को बहुत परेशान होना पड़ा है. अगर अभी यह कानून बना हुआ तो हजारों लाखों लोगों को इसका फायदा मिलता. इस कानून के जरिए अधिकारी, कर्मचारियों की जवाबदेही तय होती. नीचे से ऊपर तक जो करप्शन फैला हुआ है उस पर अंकुश लगेगा. निखिल डे ने यहां तक कहा था कि इस कानून को रोकने के लिए कितनी ही अड़चन लगाई जाए, हम इसे लागू करा कर रहेंगे. राजस्थान ने ही सबसे पहले आरटीआई जैसे कानूनों को लागू किया है, तो जवाबदेही कानून भी राजस्थान में लागू करना होगा.
यह भी पढ़ेंः कोरोना पीक गुजरने के बाद ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खरीदने पर भड़की BJP, कहा-आपदा में फायदा ढूंढ रही गहलोत सरकार
कांग्रेस के घोषणा पत्र में था जवाबदेही कानून
बता दें, अधिकारी, कर्मचारियों की जवाबदेही तय करने के लिए प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने से पहले ही कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में इसे लागू करने की बात कही थी. घोषणा पत्र में साफ कहा गया था कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है तो आम लोगों को राहत देने वाला और अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने वाले जवाबदेही कानून को लागू किया जाएगा.
सत्ता में आने के बाद भूल गई सरकार
सत्ता में आने के साथ ही सरकार ने जन घोषणा पत्र को सरकारी दस्तावेज में शामिल करते हुए उसमें की गई घोषणाओं को पूरा करने के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई. इसी जवाबदेही कानून के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट सत्र के दौरान भी घोषणा की थी, लेकिन सरकार के बने हुए ढाई साल पूरे होने में हैं इसके बावजूद जवाबदेही बिल को कानूनी अमलीजामा नहीं पहनाया गया है. आज मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद यह माना जा रहा है कि जवाबदेही कानून को संभवतः अगस्त के आखिरी सप्ताह में आने वाले मानसून सत्र में लाया जा सकता है.
ब्यूरोक्रेसी पर उठ रहे सवाल
जवाबदेही बिल को लागू नहीं होने के पीछे ब्यूरोक्रेसी के ऊपर सवाल उठ रहे हैं. सामाजिक संगठन इस बात को लेकर कई बार कह चुके हैं कि नौकरशाह नहीं चाहते कि यह बिल लागू हो. अगर जवाबदेही बिल को कानूनी अमलीजामा पहना दिया गया तो इन कर्मचारी और अधिकारियों की जवाबदेही तय हो जाएगी.
यह भी पढ़ेंः भाजपा में तीन गुट...वसुंधरा, पूनिया, शेखावत...कांग्रेस एक मंच पर बैठी हैः मलिंगा
जवाबदेही कानून की विशेषताएं
- जनता को गुड गवर्नेंस देना.
- नीचे से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों की जवाबदेही तय होगी.
- जनता को मूलभूत सुविधाओं का हक मिलेगा.
- अधिकारियों का भ्रष्ट और मनमाना आचरण रुकेगा.
- बिजली, पानी, सड़क, लाइसेंस और प्रमाण-पत्र जैसी सुविधाओं का हक मिलेगा.
- अंतिम व्यक्ति तक सेवाओं का समयबद्ध लाभ पहुंच सकेगा.
- कोई भी कर्मचारी और अधिकारी किसी फाइल को अनावश्यक नहीं रोक सकेगा.
- जवाबदेही कानून लागू होने के बाद शिकायत दर्ज करने के लिए प्रत्येक पंचायत और नगरपालिका में सहायता केंद्र स्थापित होगा.
- हर शिकायत कंप्यूटर पर दर्ज होगी.
- शिकायत को ट्रैक किया जाएगा.
- शिकायत, लोक शिकायत निवारण अधिकारी तक पहुंचेगी.
- शिकायतकर्ता को शिकायत प्राप्ति की रसीद मिलेगी.
- 14 दिन के भीतर शिकायतकर्ता को खुली सुनवाई में बात रखने का मौका मिलेगा.
- लोक शिकायत निवारण अधिकारी को 30 दिन के भीतर लिखित में जवाब देना होगा.
- अगर समस्या सही पाई गई तो बताना होगा कब तक समस्या का समाधान किया जाएगा.
- अगर शिकायत अस्वीकार की जाती है तो उसका कारण बताना होगा.
- जिला और राज्य स्तर पर सुनवाई के अलग अलग प्राधिकरण होंगे.