जयपुर. महात्मा गांधी की मृत्यु के 70 वर्षों बाद भी उनके विचारों, लेखों और उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों से कई तरह के सवाल हमेशा सामने आते हैं. वर्तमान समय की राजनीतिक व्यवस्था ने राजनीतिक प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. राष्ट्र के प्रति समर्पित होकर भी उनका नाम कई बार राष्ट्रवादी विचारधारा के विरुद्ध जोड़ा जा रहा है. वर्तमान में समस्त भारत राष्ट्र द्वारा महात्मा गांधी के जन्म उत्सव की 150 वें वर्ष को हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. इसी क्रम में राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास और भारतीय संस्कृति विभाग ने 2 नवंबर को दो पुस्तकों का विमोचन कर इस यात्रा को सफल बनाने का प्रयास किया है.
इतिहास एवं भारतीय संस्कृति विभाग की ओर से 2019 में शुरू महात्मा गांधी पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का विचार प्रस्तुत किया गया. नवंबर 2019 में यह विचार 'इतिहास लेखन में गांधी एवं समकालीन आंदोलन: एक पुनः विवेचन' के रूप में साकार हुआ. इस संगोष्ठी में भारत से अनेक विद्वानों ने भाग लिया और अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए. इन्हीं शोध पत्रों को पुस्तक के रूप में लाने का प्रयास किया गया है.
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डॉ. प्रमिला पूनिया और डॉ. रितु पुनिया ने 'गांधी पुनर्यात्रा' पुस्तक में हिंदी भाषा में प्रस्तुत किए गए 49 शोध पत्रों का संकलन किया है. इसी तरह डॉ. प्रमिला पूनिया और डॉ. अनिल अनिकेत ने रीविजिटिंग गांधी (Revisiting gandhi) पुस्तक में अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत 27 शोध पत्रों का संकलन किया है.
डॉ. प्रमिला पूनिया ने कहा कि वर्तमान युवा पीढ़ी गांधी के प्रति जो भ्रामक अधूरे संकीर्ण इतिहास को जानकर उसी मानसिकता को लेकर आगे बढ़ रही है और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को केवल राजनीतिक दल के प्रतिनिधि के रूप में समझने का प्रयास कर रही है. ऐसे में महात्मा गांधी के विचारों को एकजुट करते हुए राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की ओर से गांधी पर पुस्तक संपादित की गई है.