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वन विभाग की सख्ती: नाहरगढ़ सेंचुरी एरिया में दोहरा आवंटन होगा निरस्त...500 मीटर दायरे में हुए निर्माण होंगे ध्वस्त - Jaipur News

प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और व्यावसायीकरण वन्यजीवों के साथ मनुष्यों के लिए हमेशा ही मुसीबत का कारण बनता रहा है. जंगलों को काटकर लगातार शहरीकरण और व्यावसायीकरण किया जा रहा है. नाहरगढ़ सेंचुरी एरिया के आसपास व्यावसायिक गतिविधियों को लेकर वन विभाग ने ऐतराज जताया है. इसके साथ बिना अनुमति निर्माण पर कार्रवाई की चेतावनी दी भी है. नाहरगढ़ सेंचुरी एरिया में दोहरा आवंटन निरस्त करेगा वन विभाग

फॉरेस्ट नाहरगढ़ सेंचुरी,  इको सेंसिटिव जोन,  वन विभाग, Forest Nahargarh Century,  eco sensitive zone , Forest department , land allotment, Jaipur News,  Nahargarh Century Area
वन भूमि पर नहीं कर सकेंगे अवैध कब्जा
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Published : Jul 3, 2021, 9:07 PM IST

जयपुर. नाहरगढ़ के इको सेंसिटिव जोन में जमीनों का दोहरा आवंटन वन विभाग के लिए मुसीबत बना हुआ है. नाहरगढ़ सेंचुरी एरिया के आसपास व्यावसायिक गतिविधियों को लेकर वन विभाग ने ऐतराज जताया है. वन विभाग की ओर से रेवेन्यू डिपार्टमेंट को पत्र लिखकर कहा गया है कि सेंचुरी और इको सेंसेटिव जोन में किसी प्रकार की गतिविधि के लिए वन विभाग से एनओसी ली जाए. इसके साथ ही इको सेंसेटिव जोन में किए गए दोहरे आवंटन को निरस्त कर वन विभाग के नाम नामांतरण किया जाए.

आमेर में कुकस के कचरावाला गांव में सन 1961 के गजट नोटिफिकेशन में वन विभाग को जमीन आवंटित कर दी गई थी, लेकिन सन 1990 में राजस्व विभाग के अधिकारियों ने कुछ किसानों को खेती के लिए जमीन आवंटन की थी. जिसे किसानों ने एग्रीमेंट के आधार पर होटल निर्माण और व्यावसाय करने वालों को बेच दी और वहां धीरे-धीरे अवैध कब्जा हो गया जिससे वन्य जीवों के साथ वन क्षेत्र पर भी संकट खड़ा हो गया है.

वन भूमि पर नहीं कर सकेंगे अवैध कब्जा

पढ़ें: Special: थार में अनार की खेती से बदलाव की नई कहानी

व्यावसायीकरण से वन्यजीवों को खतरा

होटल व्यवसायियों ने एग्रीमेंट लेकर खातेदार राइट्स के तहत कब्जा भी करना शुरू कर दिया. इको सेंसेटिव जोन में व्यावसायिक गतिविधियां संचालित होने से वन्यजीवों को काफी बाधा उत्पन्न हो रही है. जंगल एरिया में वन्यजीवों का विचरण होता रहता है, लेकिन मध्य भाग में होटल और रेस्टोरेंट आदि बनने से वन्यजीव एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर नहीं पहुंच पाते. इसके साथ ही इको सेंसेटिव और सेंचुरी एरिया में गतिविधियां बढ़ने से पशुओं के शिकार होने और दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा भी बना रहता है.

वन भूमि पर नहीं कर सकेंगे अवैध कब्जा

अवैध कब्जे की शिकायत पर होती है कार्रवाई

आमेर रेंज के क्षेत्रीय वन अधिकारी नरेश मिश्रा ने बताया कि वन भूमि पर अवैध गतिविधियां या कब्जे से संबंधित कोई भी शिकायत मिलती है तो वन विभाग की ओर से त्वरित कार्रवाई की जाती है. आमेर के नाहरगढ़ इलाके में 20 मार्च को कार्रवाई की गई थी, इसके बाद 19 मई को भी कार्रवाई की गई थी. आमेर में कूकस के कचरवाला गांव में वन विभाग की भूमि पर कुछ लोगों ने अतिक्रमण कर लिया था जिस पर टीम ने एक्शन लेते हुए अतिक्रमण हटाया था. कार्रवाई के साथ ही लोगों से समझाइश भी की जाती है.

पढ़ें: Special : डीजल ने किया मजबूर तो CNG पर दौड़ने लगी बसें, प्रदेश में पहली बस भी कोटा से और किट भी यहीं लगना शुरू

विभागों से ज्वाइंट सर्वे कराने की अपील

सेंचुरी एरिया के आसपास इको सेंसेटिव जोन में किसी भी प्रकार की गतिविधि से पहले अनुमति लेने के लिए भी लोगों से समझाइश की जाती है. रेवेन्यू डिपार्टमेंट की जमीन है तो अनुमति जरूरी है और वन विभाग की भूमि पर प्रतिबंधित है. कुकस इलाके में कई जगह पर एक ही भूमि को दोबार आवंटित की गई है. इसके लिए संबंधित विभागों को पत्र लिखकर कहा गया है कि जॉइंट सर्वे करवाया जाए. लीगल तरीके से सभी डिपार्टमेंट अपने अधिकार रखें. जब भी वन विभाग की भूमि पर अतिक्रमण किया जाएगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

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वन क्षेत्र अवैध निर्माण ढहाए जाएंगे

दोहरा आवंटन बना मुसीबत

क्षेत्रीय वन अधिकारी नरेश मिश्रा ने बताया कि सन 1961 में गजट नोटिफिकेशन जारी हुआ था. इसमें वन विभाग को जमीन आवंटित कर दी गई थी. वन विभाग को आवंटित भूमि पर पिल्लर लगा दिया गया था. वन विभाग पिल्लर संख्या के आधार पर भूमि आवंटन निर्धारित करता है, लेकिन सन 1990 में राजस्व विभाग के अधिकारियों ने कुछ किसानों को दो बार भूमि आवंटन कर दिया था. गैर मुमकिन पहाड़ों पर किसानों को पट्टे दे दिए गए थे, लेकिन वन विभाग पहले से ही वहां काबिज था.

पढ़ें: Special : अलवर में 159 हेक्टेयर जमीन से खत्म किए गए विलायती बबूल के पेड़, जानिए इसका इतिहास और कैसे भारत आया

किसानों ने एग्रीमेंट के आधार पर जमीने बेचना शुरू कर दीं. होटल निर्माण से संबंधित लोगों को काफी जमीनें बेच दी गईं. होटल व्यवसायियो ने एग्रीमेंट लेकर खातेदार राइट्स के तहत कब्जे करना शुरू कर दिया. नरेश मिश्रा ने बताया कि जानकारी मिलने पर दो-तीन मामलों में फॉरेस्ट की जमीनों से कब्जे हटाए गए हैं. यहां महिला और एक बाल नाम के आदमी ने अतिक्रमण कर लिया था, जिसे पिछले दिनों हटा दिया गया. सोसायटी के पट्टे काटकर अतिक्रमण किया गया था जिसे ध्वस्त किया गया है.

वन विभाग की एनओसी जरूरी

उन्होंने बताया कि वन विभाग चौकन्ना और सजग है. वन विभाग ने तहसीलदार, एसडीएम और कलेक्टर को पत्र लिखे हैं. पत्र में लिखा गया है कि इको सेंसेटिव जोन नाहरगढ़ क्षेत्र में आता है. इसमें कोई भी गैर वानिकी गतिविधि के लिए अगर परमिशन देते हैं तो वन विभाग से अनुमति ली जाए. बिजली विभाग को भी पत्र लिखा गया है कि किसी भी तरह के बिजली कनेक्शन देने से पहले वन विभाग से एनओसी जरूर लें. रजिस्ट्रार और तहसीलदार को लिखा गया है कि किसी भी तरह की रजिस्ट्री, नामांतरण या भू-आवंटन के लिए वन विभाग से एनओसी लें ताकि वन संरक्षण या वन विभाग की प्राकृतिक भूमि को संरक्षित किया जा सके.

गजट नोटिफिकेशन के आधार पर नहीं हुआ नामांतरण

रेंजर नरेश मिश्रा ने बताया कि कब्जा तो वन विभाग का था, गजट नोटिफिकेशन के आधार पर भूमि का नामांतरण होना था, लेकिन नहीं हो पाया. इसका फायदा दोहरे आवंटन के रूप में किसानों को मिला. रेवेन्यू रिकॉर्ड के तहत गजट नोटिफिकेशन के हिसाब से वन भूमि का नामांतरण नहीं किया गया. इस वजह से राजस्व विभाग ने काश्तकारों को आवंटन दे दिया, जो कि गलत है.

पढ़ें: Special: मानसून पूर्व तैयारियां ! पिछले साल से सबक लेते हुए अलर्ट मोड पर सरकार, हर जिले को 10-10 करोड़ का फंड आवंटित

बार-बार पत्र लिखने के बावजूद नहीं हो रही कार्रवाई

उन्होंने बताया कि नोटिफिकेशन की कॉपी रेवेन्यू डिपार्टमेंट को समय-समय पर भेजी गई हैं और कलेक्टर को भी चिट्ठी लिखी गई है. गांव-गांव चिट्ठी लिखकर कहा गया है कि किस गांव में कितनी भूमि है उसकी जांच की जाए और उसके दोहरे अलॉटमेंट को निरस्त किया जाए. वन विभाग की ओर से बार-बार पत्र लिखने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई है. इसका फायदा होटल व्यवसायी उठा रहे हैं. जंगल को संकुचित किया जा रहा है.

इको सेंसेटिव जोन में प्रतिबंधित गतिविधियां

इको सेंसेटिव जोन में प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयां, खनन, कंस्ट्रक्शन, व्यवसायिक कार्य और किसी भी प्रकार की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा है. कुछ गतिविधियां ऐसी हैं जिनके लिए परमिशन लेनी पड़ती हैं. होटल निर्माण, पर्यटन से संबंधित गतिविधियां, प्रदूषण नहीं फैलाने वाली इकाइयां लगाने, किसानों के रहने के लिए मकान निर्माण और वानिकी को संरक्षित करते हुए अन्य गतिविधियों के लिए वन विभाग की अनुमति आवश्यक है.

पढ़ें: SPECIAL : पौधा लगाइये और परिवार की तरह पालिये...Family Forestry पर जानें Land for Life Awardee श्याम सुंदर ज्याणी के विचार

कमर्शियल गतिविधियों से वन्यजीवों को खतरा

उन्होंने बताया कि पक्के निर्माण से वन्यजीवों के लिए संकट है. वन्यजीवों का जंगलों में विचरण रहता है. एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं, लेकिन व्यावसायीकरण से उनकी गतिविधियों से बाधा उत्पन्न होगी. कूकस के कचरावाला गांव में दोनों तरफ जंगल और पहाड़ हैं. बीच में होटल और कमर्शियल एक्टिविटी होने से वन्य जीव एक पहाड़ से दूसरी पहाड़ी पर नहीं जा पाते हैं. वन्यजीव असहाय महसूस करते हैं और शिकार होने की भी संभावना रहती है.

होटल निर्माण और व्यवसायिक गतिविधि पर होनी चाहिए रोक

बीच में से सड़क गुजरती है तो वाहन की टक्कर से दुर्घटना होने की भी संभावना रहती है। कई वन्यजीव वाहन की चपेट में भी आ जाते हैं। ऐसे में जंगल के बीच गतिविधियां प्रतिबंधित होनी चाहिए। क्षेत्र में होटल निर्माण और व्यवसायिक गतिविधि पर रोक होनी चाहिए.

सेंचुरी एरिया के 500 मीटर दायरे में यह गतिविधियां प्रतिबंधित

रेंजर नरेश मिश्रा ने बताया कि सेंचुरी एरिया के 500 मीटर दायरे तक व्यवसायिक गतिविधि या प्रदूषण फैलाने वाली इकाई, फैक्ट्री या औद्योगिक इकाई स्थापित नहीं की जा सकती है. सेंचुरी एरिया के पास इस तरह की गतिविधि होने पर कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है. किसी ने निर्माण कार्य कर लिया है तो उसे ध्वस्त किया जाएगा और किसी ने यदि निर्माण की अनुमति ली भी है, तो उसे निरस्त कर दिया जाएगा.

जयपुर. नाहरगढ़ के इको सेंसिटिव जोन में जमीनों का दोहरा आवंटन वन विभाग के लिए मुसीबत बना हुआ है. नाहरगढ़ सेंचुरी एरिया के आसपास व्यावसायिक गतिविधियों को लेकर वन विभाग ने ऐतराज जताया है. वन विभाग की ओर से रेवेन्यू डिपार्टमेंट को पत्र लिखकर कहा गया है कि सेंचुरी और इको सेंसेटिव जोन में किसी प्रकार की गतिविधि के लिए वन विभाग से एनओसी ली जाए. इसके साथ ही इको सेंसेटिव जोन में किए गए दोहरे आवंटन को निरस्त कर वन विभाग के नाम नामांतरण किया जाए.

आमेर में कुकस के कचरावाला गांव में सन 1961 के गजट नोटिफिकेशन में वन विभाग को जमीन आवंटित कर दी गई थी, लेकिन सन 1990 में राजस्व विभाग के अधिकारियों ने कुछ किसानों को खेती के लिए जमीन आवंटन की थी. जिसे किसानों ने एग्रीमेंट के आधार पर होटल निर्माण और व्यावसाय करने वालों को बेच दी और वहां धीरे-धीरे अवैध कब्जा हो गया जिससे वन्य जीवों के साथ वन क्षेत्र पर भी संकट खड़ा हो गया है.

वन भूमि पर नहीं कर सकेंगे अवैध कब्जा

पढ़ें: Special: थार में अनार की खेती से बदलाव की नई कहानी

व्यावसायीकरण से वन्यजीवों को खतरा

होटल व्यवसायियों ने एग्रीमेंट लेकर खातेदार राइट्स के तहत कब्जा भी करना शुरू कर दिया. इको सेंसेटिव जोन में व्यावसायिक गतिविधियां संचालित होने से वन्यजीवों को काफी बाधा उत्पन्न हो रही है. जंगल एरिया में वन्यजीवों का विचरण होता रहता है, लेकिन मध्य भाग में होटल और रेस्टोरेंट आदि बनने से वन्यजीव एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर नहीं पहुंच पाते. इसके साथ ही इको सेंसेटिव और सेंचुरी एरिया में गतिविधियां बढ़ने से पशुओं के शिकार होने और दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा भी बना रहता है.

वन भूमि पर नहीं कर सकेंगे अवैध कब्जा

अवैध कब्जे की शिकायत पर होती है कार्रवाई

आमेर रेंज के क्षेत्रीय वन अधिकारी नरेश मिश्रा ने बताया कि वन भूमि पर अवैध गतिविधियां या कब्जे से संबंधित कोई भी शिकायत मिलती है तो वन विभाग की ओर से त्वरित कार्रवाई की जाती है. आमेर के नाहरगढ़ इलाके में 20 मार्च को कार्रवाई की गई थी, इसके बाद 19 मई को भी कार्रवाई की गई थी. आमेर में कूकस के कचरवाला गांव में वन विभाग की भूमि पर कुछ लोगों ने अतिक्रमण कर लिया था जिस पर टीम ने एक्शन लेते हुए अतिक्रमण हटाया था. कार्रवाई के साथ ही लोगों से समझाइश भी की जाती है.

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विभागों से ज्वाइंट सर्वे कराने की अपील

सेंचुरी एरिया के आसपास इको सेंसेटिव जोन में किसी भी प्रकार की गतिविधि से पहले अनुमति लेने के लिए भी लोगों से समझाइश की जाती है. रेवेन्यू डिपार्टमेंट की जमीन है तो अनुमति जरूरी है और वन विभाग की भूमि पर प्रतिबंधित है. कुकस इलाके में कई जगह पर एक ही भूमि को दोबार आवंटित की गई है. इसके लिए संबंधित विभागों को पत्र लिखकर कहा गया है कि जॉइंट सर्वे करवाया जाए. लीगल तरीके से सभी डिपार्टमेंट अपने अधिकार रखें. जब भी वन विभाग की भूमि पर अतिक्रमण किया जाएगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

फॉरेस्ट नाहरगढ़ सेंचुरी,  इको सेंसिटिव जोन,  वन विभाग, Forest Nahargarh Century,  eco sensitive zone , Forest department , land allotment, Jaipur News,  Nahargarh Century Area
वन क्षेत्र अवैध निर्माण ढहाए जाएंगे

दोहरा आवंटन बना मुसीबत

क्षेत्रीय वन अधिकारी नरेश मिश्रा ने बताया कि सन 1961 में गजट नोटिफिकेशन जारी हुआ था. इसमें वन विभाग को जमीन आवंटित कर दी गई थी. वन विभाग को आवंटित भूमि पर पिल्लर लगा दिया गया था. वन विभाग पिल्लर संख्या के आधार पर भूमि आवंटन निर्धारित करता है, लेकिन सन 1990 में राजस्व विभाग के अधिकारियों ने कुछ किसानों को दो बार भूमि आवंटन कर दिया था. गैर मुमकिन पहाड़ों पर किसानों को पट्टे दे दिए गए थे, लेकिन वन विभाग पहले से ही वहां काबिज था.

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किसानों ने एग्रीमेंट के आधार पर जमीने बेचना शुरू कर दीं. होटल निर्माण से संबंधित लोगों को काफी जमीनें बेच दी गईं. होटल व्यवसायियो ने एग्रीमेंट लेकर खातेदार राइट्स के तहत कब्जे करना शुरू कर दिया. नरेश मिश्रा ने बताया कि जानकारी मिलने पर दो-तीन मामलों में फॉरेस्ट की जमीनों से कब्जे हटाए गए हैं. यहां महिला और एक बाल नाम के आदमी ने अतिक्रमण कर लिया था, जिसे पिछले दिनों हटा दिया गया. सोसायटी के पट्टे काटकर अतिक्रमण किया गया था जिसे ध्वस्त किया गया है.

वन विभाग की एनओसी जरूरी

उन्होंने बताया कि वन विभाग चौकन्ना और सजग है. वन विभाग ने तहसीलदार, एसडीएम और कलेक्टर को पत्र लिखे हैं. पत्र में लिखा गया है कि इको सेंसेटिव जोन नाहरगढ़ क्षेत्र में आता है. इसमें कोई भी गैर वानिकी गतिविधि के लिए अगर परमिशन देते हैं तो वन विभाग से अनुमति ली जाए. बिजली विभाग को भी पत्र लिखा गया है कि किसी भी तरह के बिजली कनेक्शन देने से पहले वन विभाग से एनओसी जरूर लें. रजिस्ट्रार और तहसीलदार को लिखा गया है कि किसी भी तरह की रजिस्ट्री, नामांतरण या भू-आवंटन के लिए वन विभाग से एनओसी लें ताकि वन संरक्षण या वन विभाग की प्राकृतिक भूमि को संरक्षित किया जा सके.

गजट नोटिफिकेशन के आधार पर नहीं हुआ नामांतरण

रेंजर नरेश मिश्रा ने बताया कि कब्जा तो वन विभाग का था, गजट नोटिफिकेशन के आधार पर भूमि का नामांतरण होना था, लेकिन नहीं हो पाया. इसका फायदा दोहरे आवंटन के रूप में किसानों को मिला. रेवेन्यू रिकॉर्ड के तहत गजट नोटिफिकेशन के हिसाब से वन भूमि का नामांतरण नहीं किया गया. इस वजह से राजस्व विभाग ने काश्तकारों को आवंटन दे दिया, जो कि गलत है.

पढ़ें: Special: मानसून पूर्व तैयारियां ! पिछले साल से सबक लेते हुए अलर्ट मोड पर सरकार, हर जिले को 10-10 करोड़ का फंड आवंटित

बार-बार पत्र लिखने के बावजूद नहीं हो रही कार्रवाई

उन्होंने बताया कि नोटिफिकेशन की कॉपी रेवेन्यू डिपार्टमेंट को समय-समय पर भेजी गई हैं और कलेक्टर को भी चिट्ठी लिखी गई है. गांव-गांव चिट्ठी लिखकर कहा गया है कि किस गांव में कितनी भूमि है उसकी जांच की जाए और उसके दोहरे अलॉटमेंट को निरस्त किया जाए. वन विभाग की ओर से बार-बार पत्र लिखने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई है. इसका फायदा होटल व्यवसायी उठा रहे हैं. जंगल को संकुचित किया जा रहा है.

इको सेंसेटिव जोन में प्रतिबंधित गतिविधियां

इको सेंसेटिव जोन में प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयां, खनन, कंस्ट्रक्शन, व्यवसायिक कार्य और किसी भी प्रकार की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा है. कुछ गतिविधियां ऐसी हैं जिनके लिए परमिशन लेनी पड़ती हैं. होटल निर्माण, पर्यटन से संबंधित गतिविधियां, प्रदूषण नहीं फैलाने वाली इकाइयां लगाने, किसानों के रहने के लिए मकान निर्माण और वानिकी को संरक्षित करते हुए अन्य गतिविधियों के लिए वन विभाग की अनुमति आवश्यक है.

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कमर्शियल गतिविधियों से वन्यजीवों को खतरा

उन्होंने बताया कि पक्के निर्माण से वन्यजीवों के लिए संकट है. वन्यजीवों का जंगलों में विचरण रहता है. एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं, लेकिन व्यावसायीकरण से उनकी गतिविधियों से बाधा उत्पन्न होगी. कूकस के कचरावाला गांव में दोनों तरफ जंगल और पहाड़ हैं. बीच में होटल और कमर्शियल एक्टिविटी होने से वन्य जीव एक पहाड़ से दूसरी पहाड़ी पर नहीं जा पाते हैं. वन्यजीव असहाय महसूस करते हैं और शिकार होने की भी संभावना रहती है.

होटल निर्माण और व्यवसायिक गतिविधि पर होनी चाहिए रोक

बीच में से सड़क गुजरती है तो वाहन की टक्कर से दुर्घटना होने की भी संभावना रहती है। कई वन्यजीव वाहन की चपेट में भी आ जाते हैं। ऐसे में जंगल के बीच गतिविधियां प्रतिबंधित होनी चाहिए। क्षेत्र में होटल निर्माण और व्यवसायिक गतिविधि पर रोक होनी चाहिए.

सेंचुरी एरिया के 500 मीटर दायरे में यह गतिविधियां प्रतिबंधित

रेंजर नरेश मिश्रा ने बताया कि सेंचुरी एरिया के 500 मीटर दायरे तक व्यवसायिक गतिविधि या प्रदूषण फैलाने वाली इकाई, फैक्ट्री या औद्योगिक इकाई स्थापित नहीं की जा सकती है. सेंचुरी एरिया के पास इस तरह की गतिविधि होने पर कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है. किसी ने निर्माण कार्य कर लिया है तो उसे ध्वस्त किया जाएगा और किसी ने यदि निर्माण की अनुमति ली भी है, तो उसे निरस्त कर दिया जाएगा.

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