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Special : जयपुर के मोती डूंगरी में खुलेआम घूम रहा है पैंथर, जानिए क्यों पिंजरे में नहीं पकड़ पा रहा वन विभाग

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Published : Oct 28, 2021, 4:29 PM IST

जयपुर में शहर के बीच मोती डूंगरी इलाका इन दिनों पैंथर का आशियाना (Panther Home) बना हुआ है. मोती डूंगरी की पहाड़ी पर आबादी क्षेत्र के बीच लगातार पैंथर का मूवमेंट देखने को मिल रहा है, जिसे पकड़ने के लिए वन विभाग ने दो पिंजरे और कैमरा ट्रैप लगाए हैं. हालांकि, अभी तक पैंथर पिंजरे में कैद नहीं हो पाया है और उसके मूवमेंट की तस्वीरें कैमरा ट्रैप में कैद हुई हैं. इन सबके बीच बड़ी बात यह है कि आखिर कैसे पिंजरे में कैद होगा पैंथर. जानिये वरिष्ठ वन्यजीव पशु चिकित्सक से ईटीवी भारत की इस खास बातचीत में...

Why is the forest department unable to catch it in the cage
जानिए क्यों पिंजरे में नहीं पकड़ पा रहा वन विभाग...

जयपुर. पैंथर का रेस्क्यू करने के लिए वन विभाग की ओर से सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है. 5 दिन से वन विभाग की टीमें पैंथर को सर्च कर रही हैं, लेकिन कहीं पर भी पैंथर का सुराग नहीं लग पाया. पहाड़ी पर चट्टानें होने की वजह से पैंथर के पग मार्ग भी नहीं मिल पा रहे हैं. केवल रात के समय ही पैंथर मूवमेंट करता है, जिसकी तस्वीरें कैमरा ट्रैप में कैद हुई हैं.

पैंथर का रेस्क्यू करने के लिए दो ऑप्शन होते हैं. पहला पिंजरे के माध्यम से पैंथर को पकड़ना तो दूसरा ट्रेंकुलाइज करके पैंथर को पकड़ना. पैंथर पिंजरे में नहीं आ पा रहा है. वन विभाग की ओर से ट्रेंकुलाइज करने के भी निर्देश दिए गए हैं. झालाना रेंजर जनेश्वर चौधरी लगातार मॉनिटरिंग कर रहे हैं. वरिष्ठ वन्यजीव पशु चिकित्सक डॉक्टर अशोक तंवर के नेतृत्व में रेस्क्यू टीम पैंथर के रेस्क्यू का प्रयास कर रही है. रेस्क्यू और ट्रेंकुलाइज की प्रक्रिया को लेकर ईटीवी भारत ने वरिष्ठ वन्यजीव पशु चिकित्सक डॉक्टर अशोक तंवर से खास बातचीत की.

वरिष्ठ वन्यजीव पशु चिकित्सक से खास बातचीत, पार्ट-1

ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान डॉक्टर अशोक तंवर ने बताया कि पहला प्रयास पिंजरे के माध्यम से रेस्क्यू करने का होता है. दूसरा ऑप्शन ट्रेंकुलाइज करना होता है. ट्रेंकुलाइज करना काफी चुनौतीपूर्ण रहता है. कोशिश की जा रही है कि पैंथर को बिना ट्रेंकुलाइज ही पिंजरे के माध्यम से पकड़ा जा सके.

पिंजरे में कैसे कैद होता है पैंथर...

वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉक्टर अशोक तंवर ने बताया कि पिंजरे को ट्रेप केज भी बोला जाता है. पिंजरे के अंदर दो चेंबर होते हैं. एक चेंबर में शिकार रखा जाता है, दूसरे चेंबर में प्लेट सिस्टम होता है. पैंथर शिकार के लालच में अंदर पिंजरे के अंदर जैसे ही जाएगा तो पैंथर का पंजा पड़ते ही प्लेट नीचे खिसक जाती है. जिससे पिंजरे का शटर डाउन हो जाता है और पिंजरे के अंदर पैंथर कैद हो जाता है. पैंथर को पिंजरे के अंदर घुसाने के लिए लालच दिया जाता है. शिकार के रूप में ऐसा जानवर रखा जाता है जो कि बार-बार चिल्लाता रहे, जिससे पैंथर का ध्यान आकर्षित होता है. पैंथर को शिकार होने का एहसास होता है. पिंजरा चारों तरफ से पैक होता है. केवल घुसने का एक ही रास्ता होता है, जिसमें शटर को ऊपर कर दिया जाता है. शिकार के साथ ही पानी की व्यवस्था भी की जाती है. जैसे ही पैंथर पिंजरे के अंदर घुसेगा तो शटर नीचे हो जाएगा.

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दूसरा ऑप्शन होता है ट्रेंकुलाइज...

जब पैंथर पिंजरे में कैद नहीं हो पाता है तो दूसरा ऑप्शन ट्रेंकुलाइज करने का होता है. वरिष्ठ वन्यजीव पशु चिकित्सक डॉक्टर अशोक तंवर ने बताया कि ट्रेंकुलाइज दूसरा ऑप्शन होता है. जिसमें जानवर को बेहोश करके पकड़ा जाता है और वन क्षेत्र में वापस रिलीज किया जाता है. ट्रेंकुलाइज करना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि जंगल जैसे एरिया में पैंथर मुश्किल से नजर आता है. मोती डूंगरी इलाके में पहाड़ी पर जंगल है. जंगल में पैंथर दिन में नजर नहीं आ रहा. केवल रात में ही कैमरा ट्रैप में कैद हो रहा है.

वरिष्ठ वन्यजीव पशु चिकित्सक से खास बातचीत, पार्ट-2

ट्रेंकुलाइज करना होता है काफी चुनौतीपूर्ण...

डॉक्टर अशोक तंवर ने बताया कि पैंथर रात के समय पिंजरे के आसपास मूवमेंट कर रहा है, लेकिन पिंजरे के अंदर नहीं आ रहा. दिन में वन विभाग की टीम में पैंथर की तलाश कर रही है, लेकिन पैंथर नजर नहीं आ रहा. रात के समय पैंथर को ट्रेंकुलाइज करना काफी मुश्किल है. ट्रेंकुलाइज करने के बाद भी पैंथर को बेहोश होने में 15 मिनट का समय लगता है. 15 मिनट में पैंथर के इधर-उधर भागने का डर रहता है. अगर इस दौरान रात के समय पैंथर कहीं छुप जाए तो पता नहीं चल सकता. ट्रेंकुलाइज में काफी मुश्किलें रहती है. अगर जानवर दिख रहा है तो ही ट्रेंकुलाइज कर सकते हैं.

पढ़ें : Special: पुलिस की कार्यप्रणाली पर घिरी गहलोत सरकार...इन कांग्रेस विधायकों ने पुलिस-प्रशासन पर खड़े किए सवाल

जानवर का बॉडी वेट करना भी आवश्यक होता है, क्योंकि बॉडी वेट के हिसाब से ही बेहोशी की दवाई दी जाती है. कोशिश रहती है कि पैंथर ऐसी जगह पर आ जाए, जहां लोगों को घायल करने की स्थिति नहीं हो, ऐसी जगह पर ट्रेंकुलाइज किया जाए. ट्रेंकुलाइज करने के बाद बेहोशी की दवाई से पैंथर 15 मिनट बाद बेहोश होना शुरू होता है और करीब 20 से 25 मिनट तक बेहोश रहता है. कई बार पैंथर बेहोश नहीं होता है तो दोबारा डोज लगाई जाती है. यह सब सारी बातें डिपेंड करती हैं कि एनिमल ने खाना खाया है या भूखा-प्यासा है.

ट्रेंकुलाइज करने के बाद किया जाता है मेडिकल मुआयना...

वन्यजीव को बेहोश करके वापस सुरक्षित जंगल में छोड़ना बड़ी चुनौती होती है. बेहोश होने के बाद वन्यजीव के सारे मेडिकल परीक्षण किए जाते हैं. जांच के लिए सैंपल लिए जाते हैं. मेडिकल मुआयना करके देखा जाता है कि वन्यजीव के कोई बीमारी तो नहीं है. पूरा मेडिकल मोबाइल न करने के बाद जानवर को वापस होश में लाने की दवाई दी जाती है. जिससे 15 से 20 मिनट के अंदर जानवर वापस होश में आ जाता है.

ट्रेंकुलाइज करने के लिए रखना पड़ता है संयम...

ट्रेंकुलाइज के लिए निशाना लगाने के लिए काफी कम जगह मिल पाती है. वन्यजीव के शोल्डर मसल्स और पीछे के हिस्से बरही निशाना लगाया जाता है. वन्यजीव के मुंह, पेट और चेस्ट को बचाना जरूरी होता है. इन सब चीजों को बचाते हुए ट्रेंकुलाइज करना होता है. यह काफी मुश्किल टास्क होता है. ट्रेंकुलाइज की प्रक्रिया में अपने आपको संयम रखते हुए कार्य करना पड़ता है. निशाना लगाने के लिए भी सही फौज का इंतजार करना पड़ता है. कई बार जिस पोज में निशाना लगाना होता है, वह पोज नहीं मिल पाता है और काफी समय लग जाता है. इसीलिए ट्रेंकुलाइज के लिए संयम रखना जरूरी होता है. वाइल्ड लाइफ में धैर्य बनाना बहुत जरूरी होता है.

पैंथर का रेस्क्यू करने का प्रयास जारी...

पैंथर को पकड़ने के लिए मोती डूंगरी पर दो जगह पिंजरे लगाए गए हैं. पहले दिन से ही पैंथर को सर्च किया जा रहा है, लेकिन पैंथर कहीं पर भी नजर नहीं आया. केवल रात के समय कैमरा ट्रैप में पैंथर की तस्वीरें कैद हुई हैं. पहाड़ी होने की वजह से चट्टानों पर पैंथर के पग मार्क भी नहीं मिल पा रहे हैं. कोशिश की जा रही है कि पैंथर को ट्रेंकुलाइज किए बिना ही पिंजरे के माध्यम से पकड़ा जा सके.

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वर्ष 2019 में लाल कोठी आबादी क्षेत्र में आया था पैंथर...

रक्षा एनजीओ के प्रतिनिधि एवं वन्यजीव प्रेमी लोकेश यादव ने बताया कि जलाना जंगल शहर के बीच है. आए दिन लेपर्ड आबादी क्षेत्रों में देखे जाते हैं. झालाना जंगल मे लेपर्डस की संख्या में वृद्धि हुई है. अपने एरिया और भोजन की तलाश में कई बार लेपर्ड झालाना जंगल से निकलकर आबादी क्षेत्र की तरफ आ जाते हैं. दिसंबर 2019 को लाल कोठी इलाके में लेपर्ड कार्य शुरू किया गया था. सबसे पहले लेपर्ड को तख्तेशाही रोड पर देखा गया था और लोगों में दहशत का माहौल बन गया था. लेपर्ड झालाना जंगल से मोती डूंगरी होते हुए तख्तेशाही रोड से रामबाग होते हुए लाल कोठी तक पहुंच गया था. शहर के बीच लेपर्ड की सूचना मिलने पर वन विभाग ने अथक प्रयास करते हुए लाल कोठी के एक मकान से लेपर्ड का रेस्क्यू किया था. रेस्क्यू ऑपरेशन में वन विभाग के कर्मचारी भी जख्मी हो गए थे.

एक साल पहले जगतपुरा आबादी क्षेत्र में घुसा था पैंथर...

लोकेश यादव ने बताया कि करीब एक साल पहले जगतपुरा के आबादी क्षेत्र में लेपर्ड आ गया था. एक मकान के पीछे गाय के बाड़े से लेपर्ड को रेस्क्यू किया गया था. इस दौरान इलाके में काफी खौफ का माहौल बन गया था. कड़ी मशक्कत के बाद लेपर्ड का रेस्क्यू किया गया था. जगतपुरा, खोनागोरियां और आगरा रोड पर आए दिन पैंथर का मूवमेंट देखा जाता है. करीब 6 महीने पहले जगतपुरा इलाके में ही हायना का भी रेस्क्यू किया गया था.

जयपुर. पैंथर का रेस्क्यू करने के लिए वन विभाग की ओर से सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है. 5 दिन से वन विभाग की टीमें पैंथर को सर्च कर रही हैं, लेकिन कहीं पर भी पैंथर का सुराग नहीं लग पाया. पहाड़ी पर चट्टानें होने की वजह से पैंथर के पग मार्ग भी नहीं मिल पा रहे हैं. केवल रात के समय ही पैंथर मूवमेंट करता है, जिसकी तस्वीरें कैमरा ट्रैप में कैद हुई हैं.

पैंथर का रेस्क्यू करने के लिए दो ऑप्शन होते हैं. पहला पिंजरे के माध्यम से पैंथर को पकड़ना तो दूसरा ट्रेंकुलाइज करके पैंथर को पकड़ना. पैंथर पिंजरे में नहीं आ पा रहा है. वन विभाग की ओर से ट्रेंकुलाइज करने के भी निर्देश दिए गए हैं. झालाना रेंजर जनेश्वर चौधरी लगातार मॉनिटरिंग कर रहे हैं. वरिष्ठ वन्यजीव पशु चिकित्सक डॉक्टर अशोक तंवर के नेतृत्व में रेस्क्यू टीम पैंथर के रेस्क्यू का प्रयास कर रही है. रेस्क्यू और ट्रेंकुलाइज की प्रक्रिया को लेकर ईटीवी भारत ने वरिष्ठ वन्यजीव पशु चिकित्सक डॉक्टर अशोक तंवर से खास बातचीत की.

वरिष्ठ वन्यजीव पशु चिकित्सक से खास बातचीत, पार्ट-1

ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान डॉक्टर अशोक तंवर ने बताया कि पहला प्रयास पिंजरे के माध्यम से रेस्क्यू करने का होता है. दूसरा ऑप्शन ट्रेंकुलाइज करना होता है. ट्रेंकुलाइज करना काफी चुनौतीपूर्ण रहता है. कोशिश की जा रही है कि पैंथर को बिना ट्रेंकुलाइज ही पिंजरे के माध्यम से पकड़ा जा सके.

पिंजरे में कैसे कैद होता है पैंथर...

वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉक्टर अशोक तंवर ने बताया कि पिंजरे को ट्रेप केज भी बोला जाता है. पिंजरे के अंदर दो चेंबर होते हैं. एक चेंबर में शिकार रखा जाता है, दूसरे चेंबर में प्लेट सिस्टम होता है. पैंथर शिकार के लालच में अंदर पिंजरे के अंदर जैसे ही जाएगा तो पैंथर का पंजा पड़ते ही प्लेट नीचे खिसक जाती है. जिससे पिंजरे का शटर डाउन हो जाता है और पिंजरे के अंदर पैंथर कैद हो जाता है. पैंथर को पिंजरे के अंदर घुसाने के लिए लालच दिया जाता है. शिकार के रूप में ऐसा जानवर रखा जाता है जो कि बार-बार चिल्लाता रहे, जिससे पैंथर का ध्यान आकर्षित होता है. पैंथर को शिकार होने का एहसास होता है. पिंजरा चारों तरफ से पैक होता है. केवल घुसने का एक ही रास्ता होता है, जिसमें शटर को ऊपर कर दिया जाता है. शिकार के साथ ही पानी की व्यवस्था भी की जाती है. जैसे ही पैंथर पिंजरे के अंदर घुसेगा तो शटर नीचे हो जाएगा.

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दूसरा ऑप्शन होता है ट्रेंकुलाइज...

जब पैंथर पिंजरे में कैद नहीं हो पाता है तो दूसरा ऑप्शन ट्रेंकुलाइज करने का होता है. वरिष्ठ वन्यजीव पशु चिकित्सक डॉक्टर अशोक तंवर ने बताया कि ट्रेंकुलाइज दूसरा ऑप्शन होता है. जिसमें जानवर को बेहोश करके पकड़ा जाता है और वन क्षेत्र में वापस रिलीज किया जाता है. ट्रेंकुलाइज करना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि जंगल जैसे एरिया में पैंथर मुश्किल से नजर आता है. मोती डूंगरी इलाके में पहाड़ी पर जंगल है. जंगल में पैंथर दिन में नजर नहीं आ रहा. केवल रात में ही कैमरा ट्रैप में कैद हो रहा है.

वरिष्ठ वन्यजीव पशु चिकित्सक से खास बातचीत, पार्ट-2

ट्रेंकुलाइज करना होता है काफी चुनौतीपूर्ण...

डॉक्टर अशोक तंवर ने बताया कि पैंथर रात के समय पिंजरे के आसपास मूवमेंट कर रहा है, लेकिन पिंजरे के अंदर नहीं आ रहा. दिन में वन विभाग की टीम में पैंथर की तलाश कर रही है, लेकिन पैंथर नजर नहीं आ रहा. रात के समय पैंथर को ट्रेंकुलाइज करना काफी मुश्किल है. ट्रेंकुलाइज करने के बाद भी पैंथर को बेहोश होने में 15 मिनट का समय लगता है. 15 मिनट में पैंथर के इधर-उधर भागने का डर रहता है. अगर इस दौरान रात के समय पैंथर कहीं छुप जाए तो पता नहीं चल सकता. ट्रेंकुलाइज में काफी मुश्किलें रहती है. अगर जानवर दिख रहा है तो ही ट्रेंकुलाइज कर सकते हैं.

पढ़ें : Special: पुलिस की कार्यप्रणाली पर घिरी गहलोत सरकार...इन कांग्रेस विधायकों ने पुलिस-प्रशासन पर खड़े किए सवाल

जानवर का बॉडी वेट करना भी आवश्यक होता है, क्योंकि बॉडी वेट के हिसाब से ही बेहोशी की दवाई दी जाती है. कोशिश रहती है कि पैंथर ऐसी जगह पर आ जाए, जहां लोगों को घायल करने की स्थिति नहीं हो, ऐसी जगह पर ट्रेंकुलाइज किया जाए. ट्रेंकुलाइज करने के बाद बेहोशी की दवाई से पैंथर 15 मिनट बाद बेहोश होना शुरू होता है और करीब 20 से 25 मिनट तक बेहोश रहता है. कई बार पैंथर बेहोश नहीं होता है तो दोबारा डोज लगाई जाती है. यह सब सारी बातें डिपेंड करती हैं कि एनिमल ने खाना खाया है या भूखा-प्यासा है.

ट्रेंकुलाइज करने के बाद किया जाता है मेडिकल मुआयना...

वन्यजीव को बेहोश करके वापस सुरक्षित जंगल में छोड़ना बड़ी चुनौती होती है. बेहोश होने के बाद वन्यजीव के सारे मेडिकल परीक्षण किए जाते हैं. जांच के लिए सैंपल लिए जाते हैं. मेडिकल मुआयना करके देखा जाता है कि वन्यजीव के कोई बीमारी तो नहीं है. पूरा मेडिकल मोबाइल न करने के बाद जानवर को वापस होश में लाने की दवाई दी जाती है. जिससे 15 से 20 मिनट के अंदर जानवर वापस होश में आ जाता है.

ट्रेंकुलाइज करने के लिए रखना पड़ता है संयम...

ट्रेंकुलाइज के लिए निशाना लगाने के लिए काफी कम जगह मिल पाती है. वन्यजीव के शोल्डर मसल्स और पीछे के हिस्से बरही निशाना लगाया जाता है. वन्यजीव के मुंह, पेट और चेस्ट को बचाना जरूरी होता है. इन सब चीजों को बचाते हुए ट्रेंकुलाइज करना होता है. यह काफी मुश्किल टास्क होता है. ट्रेंकुलाइज की प्रक्रिया में अपने आपको संयम रखते हुए कार्य करना पड़ता है. निशाना लगाने के लिए भी सही फौज का इंतजार करना पड़ता है. कई बार जिस पोज में निशाना लगाना होता है, वह पोज नहीं मिल पाता है और काफी समय लग जाता है. इसीलिए ट्रेंकुलाइज के लिए संयम रखना जरूरी होता है. वाइल्ड लाइफ में धैर्य बनाना बहुत जरूरी होता है.

पैंथर का रेस्क्यू करने का प्रयास जारी...

पैंथर को पकड़ने के लिए मोती डूंगरी पर दो जगह पिंजरे लगाए गए हैं. पहले दिन से ही पैंथर को सर्च किया जा रहा है, लेकिन पैंथर कहीं पर भी नजर नहीं आया. केवल रात के समय कैमरा ट्रैप में पैंथर की तस्वीरें कैद हुई हैं. पहाड़ी होने की वजह से चट्टानों पर पैंथर के पग मार्क भी नहीं मिल पा रहे हैं. कोशिश की जा रही है कि पैंथर को ट्रेंकुलाइज किए बिना ही पिंजरे के माध्यम से पकड़ा जा सके.

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वर्ष 2019 में लाल कोठी आबादी क्षेत्र में आया था पैंथर...

रक्षा एनजीओ के प्रतिनिधि एवं वन्यजीव प्रेमी लोकेश यादव ने बताया कि जलाना जंगल शहर के बीच है. आए दिन लेपर्ड आबादी क्षेत्रों में देखे जाते हैं. झालाना जंगल मे लेपर्डस की संख्या में वृद्धि हुई है. अपने एरिया और भोजन की तलाश में कई बार लेपर्ड झालाना जंगल से निकलकर आबादी क्षेत्र की तरफ आ जाते हैं. दिसंबर 2019 को लाल कोठी इलाके में लेपर्ड कार्य शुरू किया गया था. सबसे पहले लेपर्ड को तख्तेशाही रोड पर देखा गया था और लोगों में दहशत का माहौल बन गया था. लेपर्ड झालाना जंगल से मोती डूंगरी होते हुए तख्तेशाही रोड से रामबाग होते हुए लाल कोठी तक पहुंच गया था. शहर के बीच लेपर्ड की सूचना मिलने पर वन विभाग ने अथक प्रयास करते हुए लाल कोठी के एक मकान से लेपर्ड का रेस्क्यू किया था. रेस्क्यू ऑपरेशन में वन विभाग के कर्मचारी भी जख्मी हो गए थे.

एक साल पहले जगतपुरा आबादी क्षेत्र में घुसा था पैंथर...

लोकेश यादव ने बताया कि करीब एक साल पहले जगतपुरा के आबादी क्षेत्र में लेपर्ड आ गया था. एक मकान के पीछे गाय के बाड़े से लेपर्ड को रेस्क्यू किया गया था. इस दौरान इलाके में काफी खौफ का माहौल बन गया था. कड़ी मशक्कत के बाद लेपर्ड का रेस्क्यू किया गया था. जगतपुरा, खोनागोरियां और आगरा रोड पर आए दिन पैंथर का मूवमेंट देखा जाता है. करीब 6 महीने पहले जगतपुरा इलाके में ही हायना का भी रेस्क्यू किया गया था.

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