जयपुर. राज्य पक्षी गोडावण विलुप्त होने की कगार पर है. दुर्लभ पक्षी गोडावण के संरक्षण के लिए राजस्थान का वन विभाग पूरी तरह से प्रयासरत है. गोडावण के संरक्षण को लेकर कई प्रयास किए जा रहे हैं. प्रदेश के जैसलमेर में गोडावण प्रजाति की संख्या बढ़ाने के लिए एचिंग सेंटर बनाया गया था. गोडावण पर साइंटिफिक रिसर्च भी की जा रही है. वन अधिकारियों का कहना है कि विश्व में राजस्थान ही ऐसा राज्य है, जिसने गोडावण की प्रजाति को अब तक बचा रखा है.
राजस्थान वन महकमे के प्रयासों से कई जगह पर गोडावण के बच्चे देखे गए हैं, लेकिन गोडावण जैसी दुर्लभ प्रजाति की संख्या के लगातार कम होने को लेकर अब सवाल खड़े हो रहे हैं. करीब 4 साल से राज्य पक्षी गोडावण की गणना नहीं की गई है. राजस्थान वन विभाग की ओर से वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून को भी इस संबंध में पत्र लिखा गया है. हालांकि अभी तक गोडावण की गणना को लेकर कोई जवाब नहीं मिल पाया है.
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वन विशेषज्ञों की मानें तो सभी वन्यजीवों की गणना हर साल होनी चाहिए. गोडावण किसानों को भी काफी फायदा पहुंचाते हैं. कहा जाता है कि गोडावण टिड्डी का सफाया करते हैं. राजस्थान के बॉर्डर पर पाकिस्तान से आने वाली टिड्डियों को गोडावण ही साफ करते हैं. वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स की माने तो रेगिस्तानी इलाकों में कुत्ते और अन्य जानवर गोडावण के अंडों और बच्चों को खा जाते हैं. इससे गोडावण की प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर आ गई है.
प्रजाति बढ़ाने के खोला गया ब्रीडिंग सेंटर
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (हाफ) डीएन पांडेय ने बताया कि दुनिया में गोडावण को किसी राज्य ने बचाया है, तो वह राजस्थान ही है. आज से 25 साल पहले देश के जिन-जिन राज्यों में गोडावण थे, उन सभी राज्यों में से गोडावण विलुप्त हो चुका है. विश्व में एक राजस्थान ही बचा है, जहां गोडावण बचे हुए हैं. राजस्थान सरकार और वन विभाग गोडाउन के संरक्षण को लेकर बेहतर प्रयास कर रहा है. गोडावण की प्रजाति को आगे बढ़ाने के लिए ब्रीडिंग सेंटर खोला गया है. यहां पर चूजे भी तैयार किए गए हैं.
डीएन पांडेय ने बताया कि गोडावण पर वैज्ञानिक अध्ययन चल रहा है. वैज्ञानिक स्टडी से जो ज्ञान उत्पन्न हो रहा है, उससे गोडावण प्रबंधन में उपयोग किया जा रहा है. वन्यजीवों की गणना भारत सरकार की ओर से निर्धारित विधि से भी होती है.