जयपुर. लॉकडाउन के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर हुआ है. जिसका प्रभाव हर वर्ग पर हुआ है लेकिन किसानों की लॉकडाउन ने कमर तोड़ दी है. किसानों को सब्जियों के उत्पादन का लागत मूल भी नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में राजधानी के किसानों ने खेतों में लगी फसल उखाड़ना शुरू कर दिया है. ईटीवी भारत की टीम कुछ ऐसे ही किसानों के खेत में पहुंची और उनकी समस्या को जाना.
वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण से बचाव के कारण चल रहे लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया है. इससे कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहा. ऐसी स्थिति में किसानों को सब्जियों के उत्पादन का भी लागत मूल्य नहीं मिल पा रहा है. यही कारण है कि अब कुछ किसानों ने अपनी ऐसी फसलों को उखाड़ कर अन्य फसलें लगाना शुरू कर दी है. जिनकी पूरी लागत भी नहीं मिल पा रही है. साथ ही इसके उत्पादन को संरक्षित रखना उनके लिए चुनौती भरा काम है.
2 से 5 रुपए किलो थोक में बिक रही है ककड़ी और टमाटर
जयसिंहपुर और केशवपुरा के आसपास के काश्तकार खासतौर पर उन सब्जियों की फसलें उखाड़ रहे हैं, जिनकी लागत वे मंडियों में इन्हें बेचकर नहीं निकाल पा रहे हैं. इसमें ककड़ी, खीरा और टमाटर की फसलें प्रमुख हैं. अपने खेत में 25 दिन पहले लगाई गई ककड़ी की पौध को उखाड़ने वाले दो से ढाई महीने तक प्रक्रिया और टमाटर की पौध उत्पादन देते हैं.
टमाटर, ककड़ी और खीरा के उत्पादन में रोजाना पानी और श्रम लगता है लगता है लेकिन मुहाना मंडी में टमाटर 2 से 5 रुपए किलो थोक भाव में व्यापारी खरीदते हैं, जबकि इन्हें उगाने और मंडी तक पहुंचाने में ही किसान को 10 रुपए प्रति किलो तक की लागत लग जाती है.
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ऐसे में जितने दिन ये पौध जमीन में लगी रहेगी, उसके पर श्रम और पानी भी खर्च करना पड़ेगा लेकिन उसकी कीमत नहीं मिल पाएगी. इसी में इन पौधों को हटाकर दूसरी फसलें लगाई जा रही है, जो आगामी ढाई से 3 महीने बाद उत्पादन होगा.
किसानों को उम्मीद है कि कम से कम आगामी ढाई से 3 माह में तो स्थितियों में बदलाव आ ही जाएगा. तब उन्हें अपनी फसल का उचित मूल्य शायद मिल जाए . किसानों के अनुसार यही स्थिति टमाटर और खीरा ककड़ी की भी है. जो कम समय में ही उत्पादन तो देना शुरू कर देते हैं लेकिन उसमें पानी और श्रम अधिक लगता है. वहीं इन फसलों की कीमत किसानों का कम मिल रही है.
ककड़ी तोड़ने के 12 घंटे के भीतर ही होने लगती है खराब
काश्तकार रामनारायण लील का कहना है कि पौधे में से ककड़ी टूटने के बाद अधिकतम 12 से 24 घंटे के अंदर उसे बेचना जरूरी होता है क्योंकि उसके बाद यह तेजी खराब होना शुरू हो जाती है. जिससे इसके बिकने की संभावना बिल्कुल खत्म हो जाती है.
यही कारण है कि किसान इन फसलों को उत्पादन को अच्छे भाव मिलने तक संरक्षित भी नहीं रख सकता है. लिहाजा, ऐसी फसलों को उखाड़कर दूसरी फसलें बोना ही किसानों को फायदे का सौदा लग रहा है.