जयपुर. राजस्थान में लगाई गई 2 प्रतिशत कृषि कल्याण फीस का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है. राजस्थान की सभी उपज मंडियां अभी बंद है. ऐसे में अब कृषि विभाग भी डैमेज कंट्रोल में जुट गया है.
प्रमुख शासन सचिव कृषि नरेशपाल गंगवार ने बताया कि कृषि उपज मंडी में उपज की खरीद-बिक्री पर लगाई गई कृषक कल्याण फीस का भार किसान और व्यापारी पर नहीं पड़ेगा. पड़ोसी राज्यों में मंडी और विकास शुल्क मिलाकर अभी भी राजस्थान से ज्यादा है. इस फीस से मिलने वाली राशि का पूरा उपयोग मात्र किसान कल्याण के लिए ही किया जाएगा.
गंगवार ने कहा कि कृषक कल्याण फीस से मिलने वाली राशि राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड के कृषक कल्याण कोष में जमा होगी. जिसका उपयोग केवल किसान और खेती के कल्याण की गतिविधियों और योजनाओं के संचालन के लिए किया जाएगा. इस कोष की बदौलत ही किसानों को समय पर फसल खराबे का बीमा क्लेम मिलना सम्भव हो पाया है. साथ ही एग्रो प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के लिए अनुदान और कई अन्य सुविधाओं की शुरुआत की गई है. जिसका सीधा लाभ किसान और व्यापारियों को हो रहा है.
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गंगवार ने बताया कि इस फीस का भार किसानों और व्यापारियों पर नहीं पडे़गा. राजस्थान में पड़ोसी राज्यों से मण्डी शुल्क की दरें पहले से ही कम हैं. राजस्थान में अधिसूचित कृषि जिन्सों का अधिकतम मण्डी शुल्क 1.60 प्रतिशत है जबकि पड़ोसी राज्यों में मण्डी शुल्क की बात की जाए तो पंजाब में 3 और हरियाणा-उत्तर प्रदेश में 2 फीसदी तक है. पंजाब-हरियाणा आदि राज्यों में मण्डी शुल्क के अतिरिक्त विकास शुल्क भी लिया जा रहा है. पंजाब में विकास शुल्क 3 और हरियाणा में 2 प्रतिशत है. इस प्रकार राजस्थान में कृषक कल्याण फीस लागू होने के बावजूद कुल शुल्क पंजाब-हरियाणा से कम है.
प्रमुख शासन सचिव ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के परिवर्तित बजट में किसानों के लिए 'Ease of Doing Business' की तर्ज पर 'Ease of Doing Farming' की ओर से पहला बडा कदम उठाते हुए 1 हजार करोड़ रुपए के ‘‘कृषक कल्याण कोष" के गठन और इस कोष को किसानों को उनके उत्पादों का यथोचित मूल्य दिलाने के लिए काम में लिये जाने की घोषणा की गई थी.
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उन्होंने बताया कि इस घोषणा की अनुपालना में कृषि उपज मण्डी अधिनियम में पिछले साल 16 दिसम्बर को संशोधन कर कृषक कल्याण कोष गठित किया गया. इस कोष के माध्यम से समर्थन मूल्य पर क्रय की जा रही कृषि जिन्सों के तुरन्त भुगतान के लिए निधि की व्यवस्था, कृषि जिन्सों के बाजार भाव गिरने पर बाजार हस्तक्षेप योजना लागू करने, प्लेज फाईनेन्सिंग, कृषि प्रसंस्करण, राजस्थान कृषि व्यवसाय और कृषि निर्यात को प्रोत्साहन नीति के अन्तर्गत अनुदान स्वीकृति के लिए वित्त प्रबंधन और राज्य सरकार के अनुमोदन से कृषक कल्याण से संबंधित अन्य गतिविधियां करने का प्रावधान किया गया.
प्रमुख शासन सचिव गंगवार ने बताया कि घोषणा की अनुपालना में राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड की ओर से 1-1 हजार करोड़ कुल 2 हजार करोड़ का ऋण क्रमशः ओरियन्टल बैंक ऑफ कामर्स और पंजाब नेशनल बैंक से राज्य सरकार की प्रतिभूति, ब्याज और मूलधन के पुनर्भुगतान की वचनबद्धता के आधार पर लिया गया है. इस राशि में से 15 सौ करोड़ रुपए कृषि विभाग को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के राज्यांश प्रीमियम भुगतान के लिए हस्तान्तरित किए जाने की स्वीकृति जारी की गई है.
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उन्होंने कहा कि भविष्य में भी इस कोष से राज्यांश प्रीमियम के लिए राशि की स्वीकृति जारी किया जाना सभ्भावित है. राज्य के किसानों की आय साल 2022 तक दुगुनी किए जाने के लक्ष्य को मध्यनजर रखते हुए कोष से कृषक कल्याण की विभिन्न गतिविधियां सम्पादित की जानी है.
उल्लेखनीय है कि राजस्थान कृषि प्रसंस्करण, कृषि व्यवसाय और कृषि निर्यात प्रोत्साहन नीति का क्रियान्वयन भी इसी कोष से किया जा रहा है. नीति के अन्तर्गत अब तक 15 प्रकरणों में 5.91 करोड़ रूपए का अनुदान स्वीकृत किया गया है और 38 आवेदन लम्बित है.
पशुपालन विभाग ने दी 33 पशुधन सहायकों को नियुक्ति
पशुपालन विभाग ने वैश्विक महामारी कोविड-19 के बीच 33 नए पशुधन सहायकों को नियुक्ति दी है. कोविद-19 के संक्रमण के बीच राज्य की पशुपालन संस्थाओं को और सशक्त किया जा रहा है. जिसके तहत 33 नए पशुधन सहायकों को नियुक्तियां दी गई है ताकि पशुपालन और पशुधन को पर्याप्त सुविधा उपलब्ध करायी जा सके. 31 पशुधन सहायक राज्य के नॉन टीएसपी क्षेत्र और दो पशुधन सहायक टीएसपी क्षेत्र की पशु चिकित्सा संस्थाओं में नियुक्त किए गए हैं. इनमें 10 दिव्यांग और 9 पूर्व सैनिक शामिल हैं. इसी के साथ पशुधन सहायक भर्ती-2018 के तहत अब तक कुल 2057 पशुधन सहायकों को नियुक्ति दी जा चुकी है.