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गुलाबी नगरी में गंगा-जमुनी तहजीब: परंपराओं को सहेजे है गुलाल गोटा...होली पर बढ़ी मांग, विदेशों में भी होता है सप्लाई

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Published : Mar 13, 2022, 12:27 PM IST

Updated : Mar 13, 2022, 2:45 PM IST

जयपुर की गंगा-जमुनी तहजीब होली के बाजारों में भी देखने को मिलती है. जहां परंपराओं को सहेजने वाला गुलाल गोटा आज भी मुस्लिम समुदाय (muslim family in jaipur makes gulaal gota) के लोग बना रहे हैं. जयपुर की विरासत से जुड़े गुलाल गोटे (gulal gota history) की डिमांड शहरवासियों के बीच भी देखी जाती है.

gulaal gota of jaipur
जयपुर में मुस्लिम परिवार बनाता है गुलाल गोटा

जयपुर. जयपुर का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही पुराना इतिहास है गुलाल गोटे का. 1727 में महाराजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना की थी. उस समय शाहपुरा के लखेर गांव से आमेर आए हुए कारीगरों को मनिहारों के रास्ते में बसाया गया था. तब से लेकर आज तक उन कारीगरों का परिवार ही गुलाल गोटा (gulal gota history) बनाने का काम कर रहा है. होली का डांडा रोकने के साथ ही गुलाल गोटा तैयार करना शुरू कर दिया जाता है.

लाख से बनता है जयपुर का गुलाल गोटा: गुलाल गोटा बनाने वाले मोहम्मद गुलरेज ने बताया कि जयपुर का गुलाल गोटा लाख से बनाया जाता है, जो वजन में 4 से 5 ग्राम का होता है. लाख को पहले धीमी आंच पर नरम किया जाता है. उसके बाद उसकी छोटी-छोटी गोलियों को एक फूंकनी नुमा नलकी में लगाकर फुलाया जाता है. इसके बाद इसे पानी से भरे बर्तन में रख दिया जाता है.

जयपुर में मुस्लिम परिवार बनाता है गुलाल गोटा

आखिर में हर्बल गुलाल भरकर एक कागज में इसे पैक कर दिया जाता है. तैयार गुलाल गोटा तकरीबन 15 ग्राम का होता है. चूंकि ये कागज की तरह पतले होते हैं और पूरी तरह प्राकृतिक सामग्री से निर्मित होते हैं, ऐसे में इनसे किसी तरह का शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचता है. बाजारों में ये गुलाल गोटा ₹20 से ₹25 प्रति नग मिलता है. खास बात ये है कि आज भी मुस्लिम परिवार (muslim family in jaipur makes gulaal gota) ही इस हिंदू के त्योहार में रंग भरने का काम कर रहे हैं.

पढ़ें-Video: ब्रज होली महोत्सव में खेल और लोक कलाकारों की धूम, कच्छी घोड़ी डांस ने मन मोहा

राजा गुलाल गोटे से मनाते थे अपनी प्रजा संग होली: बताया जाता है कि पहले जयपुर के राजा अपनी प्रजा के साथ होली खेलने के लिए हाथी पर बैठकर निकला करते थे, और इन्हीं गुलाल गोटे से होली खेला करते थे. जिस बाशिंदे पर राजा का गुलाल कोटा लगता था, वो खुद को खुशनसीब समझता था। आज भी गुलाल गोटा मनिहारों के रास्ते से बनकर सिटी पैलेस जाता है। हालांकि अब ये गुलाल गोटा महज राज परिवार के लिए नहीं बल्कि आमजन के लिए भी तैयार होता है. जयपुर वासी दूसरे शहरों में रहने वाले अपने संबंधियों को गुलाल गोटे के पैकेट उपहारस्वरूप भी भेजते है.

गुलाबी नगरी बसने के समय से गुलाल गोटे केवल पूर्व राजपरिवार और ठिकानेदार ही इस्तेमाल किया करते थे. लेकिन आज गुलाल गोटे की प्रसिद्धि विदेशों तक जा पहुंची है, जिसके चलते इसकी मांग भी बढ़ी है.

जयपुर. जयपुर का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही पुराना इतिहास है गुलाल गोटे का. 1727 में महाराजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना की थी. उस समय शाहपुरा के लखेर गांव से आमेर आए हुए कारीगरों को मनिहारों के रास्ते में बसाया गया था. तब से लेकर आज तक उन कारीगरों का परिवार ही गुलाल गोटा (gulal gota history) बनाने का काम कर रहा है. होली का डांडा रोकने के साथ ही गुलाल गोटा तैयार करना शुरू कर दिया जाता है.

लाख से बनता है जयपुर का गुलाल गोटा: गुलाल गोटा बनाने वाले मोहम्मद गुलरेज ने बताया कि जयपुर का गुलाल गोटा लाख से बनाया जाता है, जो वजन में 4 से 5 ग्राम का होता है. लाख को पहले धीमी आंच पर नरम किया जाता है. उसके बाद उसकी छोटी-छोटी गोलियों को एक फूंकनी नुमा नलकी में लगाकर फुलाया जाता है. इसके बाद इसे पानी से भरे बर्तन में रख दिया जाता है.

जयपुर में मुस्लिम परिवार बनाता है गुलाल गोटा

आखिर में हर्बल गुलाल भरकर एक कागज में इसे पैक कर दिया जाता है. तैयार गुलाल गोटा तकरीबन 15 ग्राम का होता है. चूंकि ये कागज की तरह पतले होते हैं और पूरी तरह प्राकृतिक सामग्री से निर्मित होते हैं, ऐसे में इनसे किसी तरह का शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचता है. बाजारों में ये गुलाल गोटा ₹20 से ₹25 प्रति नग मिलता है. खास बात ये है कि आज भी मुस्लिम परिवार (muslim family in jaipur makes gulaal gota) ही इस हिंदू के त्योहार में रंग भरने का काम कर रहे हैं.

पढ़ें-Video: ब्रज होली महोत्सव में खेल और लोक कलाकारों की धूम, कच्छी घोड़ी डांस ने मन मोहा

राजा गुलाल गोटे से मनाते थे अपनी प्रजा संग होली: बताया जाता है कि पहले जयपुर के राजा अपनी प्रजा के साथ होली खेलने के लिए हाथी पर बैठकर निकला करते थे, और इन्हीं गुलाल गोटे से होली खेला करते थे. जिस बाशिंदे पर राजा का गुलाल कोटा लगता था, वो खुद को खुशनसीब समझता था। आज भी गुलाल गोटा मनिहारों के रास्ते से बनकर सिटी पैलेस जाता है। हालांकि अब ये गुलाल गोटा महज राज परिवार के लिए नहीं बल्कि आमजन के लिए भी तैयार होता है. जयपुर वासी दूसरे शहरों में रहने वाले अपने संबंधियों को गुलाल गोटे के पैकेट उपहारस्वरूप भी भेजते है.

गुलाबी नगरी बसने के समय से गुलाल गोटे केवल पूर्व राजपरिवार और ठिकानेदार ही इस्तेमाल किया करते थे. लेकिन आज गुलाल गोटे की प्रसिद्धि विदेशों तक जा पहुंची है, जिसके चलते इसकी मांग भी बढ़ी है.

Last Updated : Mar 13, 2022, 2:45 PM IST
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