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स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: आजादी की लड़ाई में वीरांगनाओं ने कंधे से कंधा मिलाकर लिया भाग... लेकिन आज की ये है हकीकत

​​​​​​​15 अगस्त 1947 की वो सुबह जब आजाद भारत में सूरज की पहली किरण पड़ी. इस आजाद भारत के लिए कई महापुरुषों ने भारत माता के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दिया. लाखों लोगों ने आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी. लेकिन इस लड़ाई में महिलाएं भी पीछे नहीं हटी. भारत की उन वीरांगनाओं ने कंधे से कंधा मिलकर आजादी की इस लड़ाई में भाग लिया.

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Published : Aug 14, 2019, 9:59 PM IST

womens in independence india, स्वतंत्रता भारत में महिलाएं

जयपुर. कैसे भुला जा सकता है महावीरांगना लक्ष्मी बाई के बलिदान को. जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की नींव राखी. जिन्होंने हर महिला के दिल स्वतंत्रता के लिए लड़ने का जोश जगाया. वह वो वीरांगना थी जिनकी साहस का लोहा अंग्रेज भी मानते थे. इसके बाद महिलाओं के दिलों में आजादी पाने की जो ज्वाला जगी उसे कोई ना रोक सका. रानी लक्ष्मी बाई के बाद सरोजनी नायडू, सिस्टर निवेदिता, सुचेता कृपलानी, भीखाजी कामा, मीरा बेन (मैडलिन स्लेड), कस्तूरबा गांधी, ऊषा मेहता, सावित्रीबाई फूले, दुर्गा बाई देशमुख, विजयलक्ष्मी पंडित, कमला नेहरू, ऐनी बेसेंट, बेगम हजरत महल और डॉ. लक्ष्मी सेहगल जैसी कई वीरांगनाओं ने आजादी की इस लड़ाई में अपना योगदान दिया.

पढ़ें- स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: आजादी के बाद से अब तक भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्या-क्या हुए बदलाव

इन महिलाओं ने मनवाया अपना लोहा
भारत के आज़ाद होने के बाद देश की महिलाओं ने हर क्षेत्र में चाहे वो शिक्षा हो या राजनीति, मीडिया, कला और संस्कृति, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सभी क्षेत्रों में अपने नाम का लोहा मनवाया. देश के आजाद होने के बाद 15 अगस्त 1947 में सरोजनी नायडू देश की पहली राज्यपाल बनी. इसके बाद 24 जनवरी 1966 में इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी. इसी के साथ उन्होंने दुनिया की सबसे लंबे समय तक सेवारत महिला प्रधानमंत्री होने का खिताब भी अपने नाम किया. 1972 में किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा में भर्ती होने वाली पहली महिला. साल1997 में कल्पना चावला भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री रही और 2007 प्रतिभा पाटिल भारत की प्रथम भारतीय महिला राष्ट्रपति बनीं.

आजादी की लड़ाई में वीरांगनाओं ने कंधे से कंधा मिलाकर लिया भाग... लेकिन आज की ये है हकीकत

लेकिन महिला अत्याचारों में दिनों-दिन हो रही बढ़ोतरी
जहां एक ओर महिलाओं ने स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. स्वतंत्रता के बाद हर क्षेत्र में खुद को लायक साबित किया. वहीं दूसरी ओर महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों में दिनों-दिन बढ़ोतरी हो रही है. देश में हर घंटे महिलाओं पर अत्याचार के 39 केस दर्ज किये जाते है. प्रदेश की बात करें तो साल 2019 के शुरूआती चार महीने में ही 62,666 केस दर्ज किये जा चुके है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2014 में दी गई रिपोर्ट के अनुसार देश में हर 1 घंटे में 4 दुष्कर्म के मामले सामने आते है. वहीं साल 2016 में 38,947 दुष्कर्म के मामले देश में दर्ज किये गए. साल 2015 से 2017 में 24,771 दहेज हत्या के मामले सामने आए. साल 2016 की बात की जाए तो हर 1 लाख महिला में 55.2 % किसी न किसी तरह महिलाओं पर होने वाले अत्याचार से ग्रसित है.

पढ़ें- स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: गुलामी की बेड़ियां तोड़ आजाद हुआ भारत...प्रगति के पथ पर यूं बढ़ता रहा आगे

महिलाओं को अभी आजादी मिलने बाकी !
जिस देश में एक तरफ नारी को देवी दुर्गा के रूप में पूजा जाता है. वहीं दूसरी तरफ नारी के साथ हुए दुष्कर्म, दहेज प्रताड़ना, कन्या भ्रूण हत्या, मारपीट, तीन तलाक, हत्या, लूट, छेड़-छाड़ के मामले हर दिन, हर घंटे सामने आते रहते है. ऐसा लगता है जैसे देश को भले ही आजादी मिल गई हो. लेकिन महिलाओं को अभी आजादी मिलने बाकी है. ताकि वो बिना डरे रात में भी घर से बहार जा सकें. आजादी ताकि वो बेखौफ अपने विचार व्यक्त कर सकें. कन्या भ्रूण हत्या के लिए कोई महिला पर दबाव न दाल सकें. महिलाऐं आज भी उस दिन का इंतजार कर रही है जब लड़की के जन्म लेने पर माता पिता के चेहरे पर डर या अफसोस नहीं बल्कि खुशी की लहर होगी.

आज देश में महिलाओं की जो हालात है क्या इसी आजाद भारत का सपना देखा था. उन विरांगनाओं ने जिन्होंने आजादी के लिए अपना जीवन कुर्बानी कर दिया.

जयपुर. कैसे भुला जा सकता है महावीरांगना लक्ष्मी बाई के बलिदान को. जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की नींव राखी. जिन्होंने हर महिला के दिल स्वतंत्रता के लिए लड़ने का जोश जगाया. वह वो वीरांगना थी जिनकी साहस का लोहा अंग्रेज भी मानते थे. इसके बाद महिलाओं के दिलों में आजादी पाने की जो ज्वाला जगी उसे कोई ना रोक सका. रानी लक्ष्मी बाई के बाद सरोजनी नायडू, सिस्टर निवेदिता, सुचेता कृपलानी, भीखाजी कामा, मीरा बेन (मैडलिन स्लेड), कस्तूरबा गांधी, ऊषा मेहता, सावित्रीबाई फूले, दुर्गा बाई देशमुख, विजयलक्ष्मी पंडित, कमला नेहरू, ऐनी बेसेंट, बेगम हजरत महल और डॉ. लक्ष्मी सेहगल जैसी कई वीरांगनाओं ने आजादी की इस लड़ाई में अपना योगदान दिया.

पढ़ें- स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: आजादी के बाद से अब तक भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्या-क्या हुए बदलाव

इन महिलाओं ने मनवाया अपना लोहा
भारत के आज़ाद होने के बाद देश की महिलाओं ने हर क्षेत्र में चाहे वो शिक्षा हो या राजनीति, मीडिया, कला और संस्कृति, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सभी क्षेत्रों में अपने नाम का लोहा मनवाया. देश के आजाद होने के बाद 15 अगस्त 1947 में सरोजनी नायडू देश की पहली राज्यपाल बनी. इसके बाद 24 जनवरी 1966 में इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी. इसी के साथ उन्होंने दुनिया की सबसे लंबे समय तक सेवारत महिला प्रधानमंत्री होने का खिताब भी अपने नाम किया. 1972 में किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा में भर्ती होने वाली पहली महिला. साल1997 में कल्पना चावला भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री रही और 2007 प्रतिभा पाटिल भारत की प्रथम भारतीय महिला राष्ट्रपति बनीं.

आजादी की लड़ाई में वीरांगनाओं ने कंधे से कंधा मिलाकर लिया भाग... लेकिन आज की ये है हकीकत

लेकिन महिला अत्याचारों में दिनों-दिन हो रही बढ़ोतरी
जहां एक ओर महिलाओं ने स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. स्वतंत्रता के बाद हर क्षेत्र में खुद को लायक साबित किया. वहीं दूसरी ओर महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों में दिनों-दिन बढ़ोतरी हो रही है. देश में हर घंटे महिलाओं पर अत्याचार के 39 केस दर्ज किये जाते है. प्रदेश की बात करें तो साल 2019 के शुरूआती चार महीने में ही 62,666 केस दर्ज किये जा चुके है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2014 में दी गई रिपोर्ट के अनुसार देश में हर 1 घंटे में 4 दुष्कर्म के मामले सामने आते है. वहीं साल 2016 में 38,947 दुष्कर्म के मामले देश में दर्ज किये गए. साल 2015 से 2017 में 24,771 दहेज हत्या के मामले सामने आए. साल 2016 की बात की जाए तो हर 1 लाख महिला में 55.2 % किसी न किसी तरह महिलाओं पर होने वाले अत्याचार से ग्रसित है.

पढ़ें- स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: गुलामी की बेड़ियां तोड़ आजाद हुआ भारत...प्रगति के पथ पर यूं बढ़ता रहा आगे

महिलाओं को अभी आजादी मिलने बाकी !
जिस देश में एक तरफ नारी को देवी दुर्गा के रूप में पूजा जाता है. वहीं दूसरी तरफ नारी के साथ हुए दुष्कर्म, दहेज प्रताड़ना, कन्या भ्रूण हत्या, मारपीट, तीन तलाक, हत्या, लूट, छेड़-छाड़ के मामले हर दिन, हर घंटे सामने आते रहते है. ऐसा लगता है जैसे देश को भले ही आजादी मिल गई हो. लेकिन महिलाओं को अभी आजादी मिलने बाकी है. ताकि वो बिना डरे रात में भी घर से बहार जा सकें. आजादी ताकि वो बेखौफ अपने विचार व्यक्त कर सकें. कन्या भ्रूण हत्या के लिए कोई महिला पर दबाव न दाल सकें. महिलाऐं आज भी उस दिन का इंतजार कर रही है जब लड़की के जन्म लेने पर माता पिता के चेहरे पर डर या अफसोस नहीं बल्कि खुशी की लहर होगी.

आज देश में महिलाओं की जो हालात है क्या इसी आजाद भारत का सपना देखा था. उन विरांगनाओं ने जिन्होंने आजादी के लिए अपना जीवन कुर्बानी कर दिया.

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15 अगस्त 1947 की वो सुबह जब आजाद भारत में सूरज की पहली किरण पड़ी. इस आजाद भारत के लिए कई महापुरुषों ने भारत माता के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दिया. लाखों लोगों ने आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी. लेकिन इस लड़ाई में महिलाएं भी पीछे नहीं हटी. भारत की उन वीरांगनाओं ने कंधे से कंधा मिलकर आजादी की इस लड़ाई में भाग लिया.



कैसे भुला जा सकता है महावीरांगना लक्ष्मी बाई के बलिदान को. जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की नींव राखी. जिन्होंने हर महिला के दिल स्वतंत्रता के लिए लड़ने का जोश जगाया. वह वो वीरांगना थी जिनकी साहस का लोहा अंग्रेज भी मानते थे. इसके बाद महिलाओं के दिलों में आजादी पाने की जो ज्वाला जगी उसे कोई ना रोक सका. रानी लक्ष्मी बाई के बाद सरोजनी नायडू, सिस्टर निवेदिता, सुचेता कृपलानी, भीखाजी कामा, मीरा बेन (मैडलिन स्लेड), कस्तूरबा गांधी, ऊषा मेहता, सावित्रीबाई फूले, दुर्गा बाई देशमुख, विजयलक्ष्मी पंडित, कमला नेहरू, ऐनी बेसेंट, बेगम हजरत महल और डॉ. लक्ष्मी सेहगल जैसी कई वीरांगनाओं ने आजादी की इस लड़ाई में अपना योगदान दिया.  

भारत के आज़ाद होने के बाद देश की महिलाओं ने हर क्षेत्र में चाहे वो शिक्षा हो या राजनीति, मीडिया, कला और संस्कृति, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सभी क्षेत्रों में अपने नाम का लोहा मनवाया. देश के आजाद होने के बाद 15 अगस्त 1947 में सरोजनी नायडू देश की पहली राज्यपाल बनी. इसके बाद 24 जनवरी 1966 में इंद्रा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी. इसी के साथ उन्होंने दुनिया की सबसे लंबे समय तक सेवारत महिला प्रधानमंत्री होने का खिताब भी अपने नाम किया. 1972 में किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा में भर्ती होने वाली पहली महिला. साल1997 में कल्पना चावला भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री रही और 2007 प्रतिभा पाटिल भारत की प्रथम भारतीय महिला राष्ट्रपति बनीं.

जहां एक ओर महिलाओं ने स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. स्वतंत्रता के बाद हर क्षेत्र में खुद को लायक साबित किया. वहीं दूसरी ओर महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों में दिनों-दिन बढ़ोतरी हो रही है.  देश में हर घंटे महिलाओं पर अत्याचार के 39 केस दर्ज किये जाते है. प्रदेश की बात करें तो साल 2019 के शुरूआती चार महीने में ही 62,666 केस दर्ज किये जा चुके है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2014 में दी गई रिपोर्ट के अनुसार देश में हर 1 घंटे में  4 दुष्कर्म के मामले सामने आते है. वहीं साल  2016 में 38,947 दुष्कर्म के मामले देश में दर्ज किये गए.  साल 2015 से 2017 में 24,771 दहेज हत्या के मामले सामने आए. साल 2016 की बात की जाए तो हर 1 लाख महिला में 55.2 % किसी न किसी तरह महिलाओं पर होने वाले अत्याचार से ग्रसित है.

जिस देश में एक तरफ नारी को देवी दुर्गा के रूप में पूजा जाता है. वहीं दूसरी तरफ नारी के साथ हुए दुष्कर्म, दहेज प्रताड़ना, कन्या भ्रूण हत्या, मारपीट, तीन तलाक, हत्या, लूट, छेड़-छाड़ के मामले हर दिन, हर घंटे सामने आते रहते है. ऐसा लगता है जैसे देश को भले ही आजादी मिल गई हो. लेकिन महिलाओं को अभी आजादी मिलने बाकी है. ताकि वो बिना डरे रात में भी घर से बहार जा सकें. आजादी ताकि वो बेखौफ अपने विचार व्यक्त कर सकें.  कन्या भ्रूण हत्या के लिए कोई महिला पर दबाव न दाल सकें.  महिलाऐं आज भी उस दिन का इंतजार कर रही है जब लड़की के जन्म लेने पर माता पिता के चेहरे पर डर या अफसोस नहीं बल्कि खुशी की लहर होगी.

आज देश में महिलाओं की जो हालात है क्या इसी आजाद भारत का सपना देखा था. उन विरांगनाओं ने जिन्होंने आजादी के लिए अपना जीवन कुर्बानी कर दिया.


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