जयपुर. राजस्थान का खनिज विभाग सरकार को रेवेन्यू दिलवाने वाला विभाग है, लेकिन इस विभाग के सामने सबसे बड़ी मुसीबत प्रदेश में हो रहा अवैध खनन है. इसमें भी बजरी के अवैध खनन ने विभाग की इमेज को खासा खराब किया है. अब अवैध खनन को रोकने के लिए विभाग ने तय किया है कि वह पुलिस, फॉरेस्ट, जिला कलेक्टर और माइंस विभाग के साथ समन्वय बनाकर काम करेगी ताकि अवैध खनन पर प्रभावी रोक लग सके.
एसीएस माइंस सुबोध अग्रवाल ने कहा कि राजस्थान में अवैध खनन बड़ी समस्या है, लेकिन बजरी के कारण अवैध खनन विकराल रूप ले चुका है. उन्होंने कहा कि राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक और धौलपुर के साथ ही जोधपुर, भरतपुर और दौसा के कुछ इलाके बनास नदी, चंबल, लूणी और बाणगंगा में विभाग अवैध खनन रोकने की ओर काम कर रहा है.
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अग्रवाल ने कहा कि हाल ही में दौसा में जो कार्रवाई की गई उसमें विभाग की तैयारी पूरी नहीं थी और यह अंदाजा नहीं लगाया गया कि माफिया इतना मजबूत है. उन्होंने कहा कि इसी के कारण हमें हमारा एक होमगार्ड खोना पड़ा है. आगे से ऐसा ना हो उसके लिए खनन विभाग कलेक्टर, एसपी, फॉरेस्ट विभाग को साथ लेकर काम करेगा ताकि इसमें हमें सफलता भी मिले और कोई जानहानि भी नहीं हो.
अवैध खनन को रोकने के लिए दूसरे प्रेजेंटेशन की तैयारी...
सुबोध अग्रवाल ने कहा कि अवैध खनन को रोकने के लिए सीईसी के सामने 5 मार्च को ही एक प्रस्ताव रख दिया गया था. अब दूसरे प्रेजेंटेशन की तैयारी हो रही है ताकि सुप्रीम कोर्ट में हमारी बात को समझा जा सके कि अवैध खनन पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक तो लगा दी है, लेकिन खनन एक ऐसी प्रक्रिया है जो इकोनामिक एक्टिविटी के लिए जरूरी है. उन्होंने उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट से इस बात को लेकर उन्हें राहत मिलेगी.
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान सुबोध अग्रवाल ने यह संकेत दिए कि आने वाले कुछ समय में ही राजस्थान की M-sand Policy सामने आ जाएगी, जिससे कि वैध खनन के दौरान भी जिसे वेस्ट समझ कर छोड़ दिया जाता है उसका इस्तेमाल हो सके. एक तो यह बजरी का पर्याय बनेगा और दूसरा एम सैंड के इस्तेमाल से पर्यावरण को भी फायदा मिलेगा.
पूरे प्रदेश में किया जाएगा ड्रोन और GPS का इस्तेमाल...
उन्होंने साफ कहा कि जिस तरीके से राजसमंद में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ड्रोन और जीपीएस का इस्तेमाल किया गया, अब उसका इस्तेमाल पूरे राजस्थान में किया जाएगा क्योंकि आजकल तकनीक काफी विकसित है. उन्होंने कहा कि अगर सैटेलाइट इमेज को हम इंपोर्ट करते हैं तो वह क्लीयरली अवैध खनन की जानकारी दे देती है. सारी मैपिंग जीपीएस पर भी होती है. जीपीएस को सेटेलाइट के साथ ही ड्रोन सिस्टम से भी जोड़ने पर बात चल रही है क्योंकि ड्रोन की खासियत यह है कि सेटेलाइट तो एक ही प्वाइंट पर तस्वीर खींचता है, लेकिन ड्रोन अलग-अलग एंगल पर तस्वीरें ले लेता है.
इस प्रोजेक्ट से विभाग को होता है यह फायदा...
राजसमंद में विभाग पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसका प्रयोग कर चुका है. अग्रवाल ने कहा कि इससे विभाग को यह भी फायदा हो जाता है कि कितना अवैध खनन हुआ है. उन्होंने कहा कि लीडर एक टेक्निक मशीन होती है जिससे बिना फिजिकली उतरे यह पता लग जाता है कि कितने वर्ग मीटर का अवैध खनन हुआ है. उन्होंने कहा कि अगर इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है तो उससे पत्थर की एग्जैक्ट वॉल्यूम भी लिया जा सकता है.
इस तकनीक के इस्तेमाल से बिना किसी ज्यादा मेहनत के विभाग अवैध खनन का सही आकलन कर सकता है और उसे रोक भी सकता है. उन्होंने उदाहरण देकर कहा कि पत्थर जब खान में होता है तो उसका वॉल्यूम अलग होता है और जब वह बाहर निकलता है तो उसका वॉल्यूम बदल जाता है, जिसकी सही जानकारी भी इस तकनीक से लगाई जा सकती है.