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विद्युत विभाग के कर्मचारियों ने RSEB पर लगाया पेंशन नहीं देने का आरोप

विद्युत विभाग के सेवानिवृत और सेवारत कर्मचारियों ने RSEB पर पेंशन को रोक कर रखने का आरोप लगाया है. कर्मचारियों का कहना है कि पेंशन स्कीम 1988, 1995 से 2000 तक मान्य था, लेकिन विभाग ने अचानक 1997 में इस विकल्प को खत्म कर 4000 कर्मचारियों को पेंशन स्कीम में जगह नहीं दी.

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Published : Nov 29, 2020, 9:45 PM IST

Jaipur news,  Pension Scheme 1988
सीपीएफ के अध्यक्ष रमेश मीणा

जयपुर. विद्युत विभाग ने 4 हजार सेवानिवृत और सेवारत कर्मचारियों की पेंशन को अब तक लंबित रखा है. बता दें तत्कालीन RSEB के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर द्वारा जारी की गई पेंशन स्कीम 1988 के तहत लाभान्वित होने वाले कर्मचारियों का पेंशन अब तक रोक कर रखा गया है. जहां विभाग ने पेंशन को सरकार पर पांच हजार करोड़ का वित्तीय भार बताया है, वहीं इन कर्मचारियों ने विभाग के इन दावों पर सवालिया निशान खड़े किए हैं.

सीपीएफ के अध्यक्ष रमेश मीणा

कर्मचारियों का आरोप है कि विभाग की ओर से पेंशन की वित्तीय भार की रिपोर्ट तैयार करने में गड़बड़ी हुई है, क्योंकि जिन कर्मचारियों ने अपने सेवाकाल में 50 लाख से अधिक वेतन नहीं पाया है उनकी औसत पेंशन 1.25 करोड़ कैसे हो सकती हैं. 50,000 बिजली कर्मचारियों के लिए पेंशन फंड टैरिफ में 3.57 पैसा प्रति यूनिट जोड़कर जनरेट किया गया था, लेकिन अक्टूबर 1988 में 1100 इलेक्ट्रिकल और मेकेनिकल के डेपुटेशन पर आए कर्मचारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पेंशन देने का निर्णय सुनाया था. जिसका पैसा राज्य सरकार को देना था परंतु यह धनराशि नहीं दी गई.

पढ़ें- चूरूः विद्युत विभाग के निजीकरण के खिलाफ उठने लगी आवाज, निगम श्रमिक संघ के बैनर तले प्रदर्शन

सीपीएफ के अध्यक्ष रमेश मीणा ने बताया कि, बीओडी की बैठक में पेंशन 1988 स्कीम बिना आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा कर लागू की गई थी. इसे 1995 में फिर से जारी कर 19 फरवरी 2000 तक मान्य किया गया था. लेकिन विभाग ने अचानक 9 जून 1997 में इस विकल्प को खत्म कर दिया और इसे 4000 कर्मचारियों को पेंशन स्कीम में जगह नहीं दी गई. जबकि टैरिफ में प्रभावित कर्मचारी भी शामिल थे. इसके बाद भी विभाग ने बाहरी कर्मचारियों को तो पेंशन दी लेकिन अपने ही विभाग के कर्मचारी को इस दायरे से बाहर रखा, जो कि भेदभाव पूर्ण रवैया है.

जयपुर. विद्युत विभाग ने 4 हजार सेवानिवृत और सेवारत कर्मचारियों की पेंशन को अब तक लंबित रखा है. बता दें तत्कालीन RSEB के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर द्वारा जारी की गई पेंशन स्कीम 1988 के तहत लाभान्वित होने वाले कर्मचारियों का पेंशन अब तक रोक कर रखा गया है. जहां विभाग ने पेंशन को सरकार पर पांच हजार करोड़ का वित्तीय भार बताया है, वहीं इन कर्मचारियों ने विभाग के इन दावों पर सवालिया निशान खड़े किए हैं.

सीपीएफ के अध्यक्ष रमेश मीणा

कर्मचारियों का आरोप है कि विभाग की ओर से पेंशन की वित्तीय भार की रिपोर्ट तैयार करने में गड़बड़ी हुई है, क्योंकि जिन कर्मचारियों ने अपने सेवाकाल में 50 लाख से अधिक वेतन नहीं पाया है उनकी औसत पेंशन 1.25 करोड़ कैसे हो सकती हैं. 50,000 बिजली कर्मचारियों के लिए पेंशन फंड टैरिफ में 3.57 पैसा प्रति यूनिट जोड़कर जनरेट किया गया था, लेकिन अक्टूबर 1988 में 1100 इलेक्ट्रिकल और मेकेनिकल के डेपुटेशन पर आए कर्मचारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पेंशन देने का निर्णय सुनाया था. जिसका पैसा राज्य सरकार को देना था परंतु यह धनराशि नहीं दी गई.

पढ़ें- चूरूः विद्युत विभाग के निजीकरण के खिलाफ उठने लगी आवाज, निगम श्रमिक संघ के बैनर तले प्रदर्शन

सीपीएफ के अध्यक्ष रमेश मीणा ने बताया कि, बीओडी की बैठक में पेंशन 1988 स्कीम बिना आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा कर लागू की गई थी. इसे 1995 में फिर से जारी कर 19 फरवरी 2000 तक मान्य किया गया था. लेकिन विभाग ने अचानक 9 जून 1997 में इस विकल्प को खत्म कर दिया और इसे 4000 कर्मचारियों को पेंशन स्कीम में जगह नहीं दी गई. जबकि टैरिफ में प्रभावित कर्मचारी भी शामिल थे. इसके बाद भी विभाग ने बाहरी कर्मचारियों को तो पेंशन दी लेकिन अपने ही विभाग के कर्मचारी को इस दायरे से बाहर रखा, जो कि भेदभाव पूर्ण रवैया है.

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