जयपुर. कोरोना वायरस का असर देश-दुनिया पर साफ तौर पर देखा जा रहा है. हर दिन कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. राजस्थान की बात करें तो पिछले 2 महीने से पूरे राज्य में लॉकडाउन है और इस लॉकडाउन का असर छोटे प्राइवेट अस्पतालों और क्लिनिक्स पर साफ तौर पर देखने को मिला है.
प्राइवेट अस्पताल और छोटे क्लिनिक्स से जुड़े चिकित्सकों का कहना है कि जिस तरह से कोरोना के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, उसके बाद छोटी-बड़ी समस्याओं से जूझ रहे मरीज अस्पताल में आने से कतरा रहे हैं. उनका कहना है कि ऐसे में पिछले 2 महीने में करीब 70 फीसदी से अधिक मरीजों ने अस्पताल आना बंद कर दिया है. वहीं हालातों को देखते हुए इन अस्पतालों ने अपने स्टाफ में भी कटौती करना शुरू कर दिया है.
कोरोना वायरस का डर
प्राइवेट अस्पताल से जुड़े चिकित्सकों का कहना है कि कोरोना के बढ़ते मामलों के बाद लॉकडाउन लगाया गया. ऐसे में लोग घरों से नहीं निकल पाए. उनका कहना है कि इस दौरान वही लोग अस्पताल पहुंच रहे थे जिन्हें आपातकालीन चिकित्सा सेवा की जरूरत थी. इसके अलावा छोटी-बड़ी समस्याओं से जूझ रहे मरीज सिर्फ इसलिए अपना इलाज कराने अस्पताल नहीं जा रहे थे क्योंकि उन्हें कोरोना का डर सता रहा था.
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राजधानी जयपुर की बात करें तो कुछ इलाकों में छोटे-बड़े क्लीनिक चलाने वाले चिकित्सक और उनका स्टाफ भी पॉजिटिव पाया गया था. ऐसे में लोगों के मन में इस बीमारी को लेकर डर बैठ गया और उन्होंने सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों से दूरी बना ली.
दांतों और डायलिसिस के मरीज परेशान
प्राइवेट अस्पताल बंद होने के कारण डायलिसिस पर चल रहे मरीजों को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. डायलिसिस से जूझ रहे मरीजों का कहना था कि जब भी अस्पताल में इलाज करवाने जाते तो कोरोना रिपोर्ट उनसे मांगी जाती थी. ऐसे में उन्हें सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा. इसके अलावा दांतों और अन्य छोटी-मोटी समस्या से जूझ रहे मरीज भी काफी परेशान रहे.
लॉकडाउन के दौरान दी जा रही ऑनलाइन परामर्श
प्राइवेट अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सकों का कहना है कि छोटी-बड़ी समस्या से जूझ रहे मरीजों को उनकी ओर से ऑनलाइन परामर्श दी जा रही है, ताकि संक्रमण का खतरा ना फैले. निजी अस्पताल से जुड़े चिकित्सक डॉ. अशोक गर्ग का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान करीब 70 फीसदी मरीजों ने प्राइवेट अस्पतालों से दूरी बना ली. उनका कहना है कि कोरोना के डर के कारण वे अस्पताल में इलाज कराने ही नहीं पहुंच पा रहे थे, ऐसे में इमरजेंसी से जुड़े केस ही अस्पताल लाए जा रहे थे.
दंत चिकित्सकों को हुई सबसे अधिक परेशानी
प्रदेश में लगभग 10 हजार दंत चिकित्सकों के सामने लॉकडाउन के दौरान आर्थिक संकट खड़ा हो गया. दंत चिकित्सकों का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान पूरे 2 महीने तक क्लीनिक बंद कर दिए गए. वहीं, इंडियन डेंटल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. समीर शर्मा ने कहा कि अधिकतर दंत चिकित्सक प्राइवेट क्लीनिक चला कर गुजारा करते हैं.
शर्मा ने कहा कि अभी भी सरकार की ओर से जारी की गई एडवाइजरी में सिर्फ परामर्श और आपातकालीन ट्रीटमेंट की अनुमति ही दी गई है. ऐसे में सबसे अधिक परेशानी इस दौरान दंत चिकित्सकों को उठानी पड़ी है. उनका कहना है कि प्राइवेट अस्पतालों और क्लीनिक से जुड़े चिकित्सकों ने आर्थिक सहायता की मांग सरकार से की है.