जयपुर. राजस्थान विधानसभा में सोमवार को इंदिरा गांधी नहर के वार्षिक प्रतिवेदन पर चर्चा में कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा ने भी हिस्सा लिया. मदेरणा ने जहां आईजीएनपी नहर परियोजना को लेकर मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया, तो वहीं एक बार फिर उन्होंने पीएचडी विभाग और मंत्री महेश जोशी पर निशाना साधा. कुछ दिन पहले पीएचइडी की अनुदान मांगों पर बहस के दौरान मदेरणा ने जोशी को रबड़ स्टैंप बताते हुए कह दिया था कि मंत्री शहर से आते हैं और उन्हें रेगिस्तानी इलाकों की परेशानी का कोई अंदाजा नहीं है.
उन्होंने कहा कि 21 से 28 मई तक जो क्लोजर होता है, उसमें पीएचडी का भी रोल होता है और रोक कर डिग्गी और भंडारण का काम करती है. लेकिन क्या पीएचडी यह काम कर पा रहा है? उन्होंने कहा कि मैंने कल एक कटिंग देखी, जिसमें लिखा था कि दौसा के किसी चीफ इंजीनियर को इस मामले में हेड बनाने की बात चल रही है. जबकि उसकी भ्रष्टाचार की फाइल लंबित है और मंत्री महोदय ने उसकी चार्जशीट की फाइल पर साइन भी नहीं किए. पीएचडी का मैनेजमेंट जिस काम में इन्वाल्व है, अगर क्लोजर में ऐसे अधिकारी लगाए जाएंगे तो कैसे काम होगा. मदेरणा ने कहा कि पीएचईडी ने ट्यूबवेल को लेकर अब तक कुछ किया नहीं, अप्रैल-मई में जब पानी के लिए हाहाकार होगा, तब क्या करेंगे? इस पर सवालिया निशान (Divya Maderna questions PHED preparations for water management) है.
राजेंद्र राठौड़ पर साधा निशाना: विधानसभा में कुछ दिन पहले उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा था कि जहां-जहां कांग्रेस सिकुड़ती गई, वहां गधों की संख्या कम होती जा रही है. राठौड़ के इस बयान के जवाब में आज मदेरणा ने कहा कि मैनेजमेंट इन फिनोटिक्स कैरक्टराइजेशन ऑफ डंकी इन राजस्थान की रिपोर्ट में सरदारशहर, चूरू, राजगढ़, सीकर, रतनगढ़ और झुंझुनू में गधों की स्थिति बताई गई है. स्टडी में यह देखा गया कि चूरू में केवल 965 गधे बचे हैं. जबकि वेस्टर्न राजस्थान में अब भी गधे ज्यादा हैं. बाड़मेर में 2659, बीकानेर में 1800 और जैसलमेर में 5000 हैं. ऐसे में मुझे आश्चर्य हुआ की उप नेता प्रतिपक्ष की नाक के नीचे से पहले तो सिंचाई का इतना बड़ा क्षेत्र आईजीएनपी से घट गया और गधे जो माल ढुलाई का काम कर रहे थे, उनकी भी संख्या घट गई.