जयपुर. राजस्थान के 12 जिलों में निकाय चुनाव होना है. इसके लिए बुधवार से जिला प्रभारी पर्यवेक्षक प्रत्याशी नेताओं को सिंबल दे देंगे. विधायकों के कहने पर टिकट वितरण की परंपरा से मंत्री, विधायक सुंतुष्ट हैं लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि इससे संगठन गौण हो जाएगा.
राजस्थान में इनदिनों एक के बाद एक चुनाव संपन्न हो रहे हैं. जहां पहले नगर निगम चुनाव संपन्न हुए तो अब 21 जिलों में पंचायती राज चुनाव का पहला चरण संपन्न हो चुका है. इसी के साथ ही 12 जिलों में होने वाले निकाय चुनाव के लिए भी नामांकन का 27 नवंबर को अंतिम दिन है. ऐसे में जिला पर्यवेक्षक बनाए गए नेता जिनको टिकट देना है, उनके लिए सिंबल भी शुक्रवार तक जिलों में दे देंगे लेकिन नगर निगम चुनाव से राजस्थान में कांग्रेस पार्टी में एक परंपरा बन चुकी है कि टिकट वितरण में विधायक की राय को वरीयता दी जाती है.
मंत्री का कहना विधायक पार्टी कमजोर करना नहीं चाहेगा
इस फैसले से विधायक और मंत्री पूरी तरीके से संतुष्ट हैं. कभी भी कोई विधायक यह नहीं चाहेगा कि उसके क्षेत्र में पार्टी कमजोर हो. ऐसे में अगर विधायक की राय से टिकट दिए जाते हैं तो वह जीतने वाले नेता को ही टिकट देगा. इस टिकट वितरण के फार्मूले में कोई खामी नहीं बताई जा रही है.
इसके साथ ही परिवहन मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास का कहना है कि जो नेता योग्य है, उसका टिकट कोई रोक भी नहीं सकता है. ऐसे में विधायकों पर टिकट वितरण की जिम्मेदारी छोड़ना एक बेहतर फार्मूला है. जिसके नतीजे कांग्रेस के सामने नगर निगम चुनाव में आ भी चुके हैं. खाचरियावास का कहना है कि विधायक फील्ड में रहता है तो उसे जानकारी ज्यादा होती है.
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राजस्थान विधानसभा के मुख्य सचेतक महेश जोशी हो या फिर कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास सभी एक स्वर में विधायकों कि राय पर टिकट देने की पैरवी कर रहे हैं लेकिन इस निर्णय से यह सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि ऐसे में तो संगठन बिल्कुल गौण हो जाएगा. हालांकि, ज्यादातर कार्यकर्ता इस पर बोलने को तैयार नहीं है लेकिन दबी जुबान में कुछ कार्यकर्ता स्वीकार कर रहे हैं कि विधायक आधारित टिकट वितरण पॉलिसी से कांग्रेस को नुकसान हो रहा है. इससे लंबे समय से जो नेता पार्टी के साथ जुड़े हैं, उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ ही रहा है. संगठन भी इसे कमजोर हो रहा है.