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Special: गुलाबीनगरी के हर्बल गुलाल की बढ़ी डिमांड, नहीं है कोई साइड इफेक्ट

रंगों के उत्सव होली के मौके पर उपयोग होने वाले गुलाल की डिमांड काफी अधिक रहती है. हालांकि, इतने साल कृत्रिम रंगों ने हर्बल गुलाल का कारोबार फीका कर दिया था लेकिन सिर्फ यह एक व्यवसाय ऐसा है, जिसको कोरोना के बाद फायदा भी हुआ है. कृत्रिम रंगों के भारत में एक्सपोर्ट नहीं होने के चलते मार्केट में कृत्रिम रंगों के बजाए जयपुर के हर्बल गुलाल की डिमांड बढ़ी है. देखिए एक रिपोर्ट...

Jaipur Herbal Gulal, जयपुर न्यूज
जयपुर के हर्बल गुलाल की मांग तेज
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Published : Mar 28, 2021, 1:30 PM IST

जयपुर. गुलाबीनगरी की हर्बल गुलाल की सुंगन्ध लोगों के मन में उतरती नजर आ रही है. इसी रंग-बिरंगे गुलाल के रंगों से इस बार की होली महकेगी. विभिन्न रंगों के साथ पलाश के फूलों और अरारोट से बने हर्बल गुलाल की डिमांड इस बार चरम पर है. बदलते परिवेश में होली मनाने के तौर-तरीकों में भी बदलाव आया है. पहले होली के नाम पर कृत्रिम रंगों से होली खेला जाता था लेकिन अब इन्ही दुष्प्रभावों को लेकर जागरूकता भी आ रही है. जिसके बाद कृत्रिम रंगों की जगह उसकी जगह हर्बल गुलाल ने ले ली है.

जयपुर के हर्बल गुलाल की मांग तेज

सिंथेटिक रंगों के नुकसान के प्रति बढ़ती जागरूकता को आज हर्बल रंगों की बढ़ती बिक्री के तौर पर देखा जा सकता है. कई पुश्तों से रंगों के इस कारोबार से जुड़े मुकेश जैन बताते है कि वैसे तो रंगों का कारोबार साल के 365 दिन चलता है लेकिन होली के पर्व के दिनों में खुशबूदार अरारोट गुलाल की डिमांड बढ़ जाती है.

यह भी पढ़ें. Special: कोरोना ने कारोबारियों की होली की फीकी, खरीददारी के लिए ग्राहक नहीं आ रहे बाजार

स्वदेशी हर्बल गुलाल का चलन ज्यादा

अरारोट से तैयार असली हर्बल गुलाल लाल, पीला, हरा सहित करीब 10 रंग तैयार होता है. यही रंग-बिरंगे कलर होली पर ज्यादा बिकते हैं. यही नहीं कोरोना काल को देखते हुए भी इसकी अच्छी डिमांड है. पक्के रंगों के बजाए हर्बल गुलाल का प्रचलन बढ़ गया है. इसके पीछे की खास वजह ये है कि जो कच्चे और पक्के रंग चाइना से एक्सपोर्ट होकर भारत आते थे. फिर यहां तैयार होते थे लेकिन चाइनीज गुलाल पर बंदिश के बाद में स्वदेशी हर्बल गुलाल का चलन ज्यादा है.

Jaipur Herbal Gulal, जयपुर न्यूज
अरारोट से बनता है गुलाल

ऐसे तैयार होता है हर्बल गुलाल

वहीं हर्बल गुलाल को बनाने वाले मजदूर वशिष्ट प्रसाद यादव कहते हैं कि पिछले 28 सालों से वो गुलाल बनाने का काम करते आ रहे हैं, जहां पहले मार्बल पत्थरों के पाउडर से गुलाल बनती थी और अब अरारोट से हर्बल गुलाल तैयार कर रहे हैं. इसकी प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कहा कि सबसे पहले अरारोट के पाउडर में कलर मिक्स करके उसको देशी मशीनों में पिसा जाता है. उसके बाद उसे निकालकर तेज धूप में छत के ऊपर घंटों सुखाया जाता है. फिर मजदूरों की मदद से उसको कट्टों में इकठ्ठा कर फिर स्वचालित मशीन में डालकर 10 किलो, 25 किलो और 10 ग्राम की पैकिंग करके मार्किट में भेजा जाता है. इसके लिए उन्हें एक माह का 12 से 15 हजार का मेहनताना मिल जाता है. जिससे घर खर्च चलाने की जद्दोजहद करनी पड़ती है.

यह भी पढ़ें. SPECIAL : पलाश के फूलों से बने हर्बल रंगों से रंगतेरस खेलते हैं आदिवासी....प्रतापगढ़ में बरसते हैं प्राकृतिक रंग

100 प्रतिशत हर्बल का दावा

Jaipur Herbal Gulal, जयपुर न्यूज
तैयार हर्बल गुलाल

25 सालों से पुश्तैनी काम करती आ रही मंजू जैन ने बताया कि ये 100 प्रतिशत हर्बल है. जिसमें कोई केमिकल नहीं है. इसके उपयोग से शरीर की त्वचा को कोई नुकसान नहीं पहुंचता. यही वजह से की कृत्रिम रंगों का असर धीरे-धीरे कम हो रहा है और हर्बल गुलाल का चलन बढ़ रहा है.

अन्य राज्यों में भी होता है एक्सपोर्ट

इसको लेकर लोगों में खासा उत्साह है क्योंकि ये पूजा-पाठ सहित अन्य कामों में पूरे 12 माह चलता है. यही वजह है कि उनकी फैक्ट्री में तैयार हर्बल गुलाल राजस्थान के अलावा उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यो में भी इसकी डिमांड बहुत ज्यादा रहती है.

Jaipur Herbal Gulal, जयपुर न्यूज
गुलाल बनाता श्रमिक

ऐसे में ईटीवी भारत भी आप सभी से अपील करता है कि कोरोना गाइडलाइंस के साथ-साथ परंपरागत तरीकों से शालीनता और सभ्यता के साथ हर्बल गुलाल से होली खेलें.जिससे किसी प्रकार का कोई साइड इफेक्ट भी ना हो और रंगों का ये त्योहार हमारे रिश्तों को और रंगीन करें.

जयपुर. गुलाबीनगरी की हर्बल गुलाल की सुंगन्ध लोगों के मन में उतरती नजर आ रही है. इसी रंग-बिरंगे गुलाल के रंगों से इस बार की होली महकेगी. विभिन्न रंगों के साथ पलाश के फूलों और अरारोट से बने हर्बल गुलाल की डिमांड इस बार चरम पर है. बदलते परिवेश में होली मनाने के तौर-तरीकों में भी बदलाव आया है. पहले होली के नाम पर कृत्रिम रंगों से होली खेला जाता था लेकिन अब इन्ही दुष्प्रभावों को लेकर जागरूकता भी आ रही है. जिसके बाद कृत्रिम रंगों की जगह उसकी जगह हर्बल गुलाल ने ले ली है.

जयपुर के हर्बल गुलाल की मांग तेज

सिंथेटिक रंगों के नुकसान के प्रति बढ़ती जागरूकता को आज हर्बल रंगों की बढ़ती बिक्री के तौर पर देखा जा सकता है. कई पुश्तों से रंगों के इस कारोबार से जुड़े मुकेश जैन बताते है कि वैसे तो रंगों का कारोबार साल के 365 दिन चलता है लेकिन होली के पर्व के दिनों में खुशबूदार अरारोट गुलाल की डिमांड बढ़ जाती है.

यह भी पढ़ें. Special: कोरोना ने कारोबारियों की होली की फीकी, खरीददारी के लिए ग्राहक नहीं आ रहे बाजार

स्वदेशी हर्बल गुलाल का चलन ज्यादा

अरारोट से तैयार असली हर्बल गुलाल लाल, पीला, हरा सहित करीब 10 रंग तैयार होता है. यही रंग-बिरंगे कलर होली पर ज्यादा बिकते हैं. यही नहीं कोरोना काल को देखते हुए भी इसकी अच्छी डिमांड है. पक्के रंगों के बजाए हर्बल गुलाल का प्रचलन बढ़ गया है. इसके पीछे की खास वजह ये है कि जो कच्चे और पक्के रंग चाइना से एक्सपोर्ट होकर भारत आते थे. फिर यहां तैयार होते थे लेकिन चाइनीज गुलाल पर बंदिश के बाद में स्वदेशी हर्बल गुलाल का चलन ज्यादा है.

Jaipur Herbal Gulal, जयपुर न्यूज
अरारोट से बनता है गुलाल

ऐसे तैयार होता है हर्बल गुलाल

वहीं हर्बल गुलाल को बनाने वाले मजदूर वशिष्ट प्रसाद यादव कहते हैं कि पिछले 28 सालों से वो गुलाल बनाने का काम करते आ रहे हैं, जहां पहले मार्बल पत्थरों के पाउडर से गुलाल बनती थी और अब अरारोट से हर्बल गुलाल तैयार कर रहे हैं. इसकी प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कहा कि सबसे पहले अरारोट के पाउडर में कलर मिक्स करके उसको देशी मशीनों में पिसा जाता है. उसके बाद उसे निकालकर तेज धूप में छत के ऊपर घंटों सुखाया जाता है. फिर मजदूरों की मदद से उसको कट्टों में इकठ्ठा कर फिर स्वचालित मशीन में डालकर 10 किलो, 25 किलो और 10 ग्राम की पैकिंग करके मार्किट में भेजा जाता है. इसके लिए उन्हें एक माह का 12 से 15 हजार का मेहनताना मिल जाता है. जिससे घर खर्च चलाने की जद्दोजहद करनी पड़ती है.

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100 प्रतिशत हर्बल का दावा

Jaipur Herbal Gulal, जयपुर न्यूज
तैयार हर्बल गुलाल

25 सालों से पुश्तैनी काम करती आ रही मंजू जैन ने बताया कि ये 100 प्रतिशत हर्बल है. जिसमें कोई केमिकल नहीं है. इसके उपयोग से शरीर की त्वचा को कोई नुकसान नहीं पहुंचता. यही वजह से की कृत्रिम रंगों का असर धीरे-धीरे कम हो रहा है और हर्बल गुलाल का चलन बढ़ रहा है.

अन्य राज्यों में भी होता है एक्सपोर्ट

इसको लेकर लोगों में खासा उत्साह है क्योंकि ये पूजा-पाठ सहित अन्य कामों में पूरे 12 माह चलता है. यही वजह है कि उनकी फैक्ट्री में तैयार हर्बल गुलाल राजस्थान के अलावा उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यो में भी इसकी डिमांड बहुत ज्यादा रहती है.

Jaipur Herbal Gulal, जयपुर न्यूज
गुलाल बनाता श्रमिक

ऐसे में ईटीवी भारत भी आप सभी से अपील करता है कि कोरोना गाइडलाइंस के साथ-साथ परंपरागत तरीकों से शालीनता और सभ्यता के साथ हर्बल गुलाल से होली खेलें.जिससे किसी प्रकार का कोई साइड इफेक्ट भी ना हो और रंगों का ये त्योहार हमारे रिश्तों को और रंगीन करें.

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