जयपुर. भारत सरकार ने रवि की उपजो के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (declaration of msp for rabi produce) की घोषणा की है. केंद्र सरकार की इस घोषणा पर किसान महापंचायत ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है. किसान महापंचायत के अध्यक्ष ने कहा कि खरीद के बिना न्यूनतम समर्थन मूल्य की सार्थकता नहीं. केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (Kisan Mahapanchayat demand for ordinance) के लिए अध्यादेश लेकर आए.
भेदभाव के कारण किसान वंचित
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि दाने-दाने की खरीद के बिना न्यूनतम समर्थन मूल्य की सार्थकता नहीं है. भारत सरकार की आयात-निर्यात नीति किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित करने के लिए उत्तरदायी है. गत वर्ष गेहूं के निर्यात 9 गुणा तक बढ़ने से मूल्यों में बढ़ोतरी हुई तो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त हुआ किंतु उस निर्यात नीति में किसानों के विोध में परिवर्तन के कारण गेहूं के भाव नीचे आए और खरीद हुई नहीं. दलहन और तिलहन के संबंध में वर्ष 2020–21 में खाद्य तेलों का 135.4 लाख टन का आयात किया गया जिसका मूल्य 82.1 हजार करोड़ रुपए था. इसी वर्ष में दलहन का 25 लाख टन का आयात किया गया जिसका मूल्य 12.2 हजार करोड़ था. खरीद नीति में भेदभाव के कारण भी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित किया जाता है.
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खरीद की गारंटी का कानून लागू हो
रामपाल जाट ने कहा कि किसानों के कल्याण के नाम पर प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान 2018 में चालू किया गया जिसमें किसानों की आय के संरक्षण का उल्लेख किया गया, लेकिन जिन उपजों के आयात पर भारी खर्च किया जाता हैं. उन्ही दलहन और तिलहन की 25% तक की खरीद का प्रतिबंध का अर्थ 75% उत्पादो को न्यूनतम समर्थन मूल्य की परिधि से बाहर धकेलना है. 31 अगस्त को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में अरहर, मसूर एवं उड़द में 25 % के प्रतिबंध में ढील देकर 40% तक खरीद का संशोधन किया गया, लेकिन मूंग और चना को छोड़ दिया गया.
देश के कुल उत्पादन में से राजस्थान में आधा मूंग का उत्पादन होता है, इसी प्रकार चना उत्पादन में भी राजस्थान देश में मध्य प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है. दोनों उपजों का किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी प्राप्त नहीं हुआ और गत वर्ष भी ये फसलें घाटे में बेचनी पड़ीं. यह भेदभाव पूर्ण खरीद नीति भी अन्यायकारी है. न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणाओं को पूर्ण करने के लिए सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए और इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून सर्वोतम मार्ग है.
क्रय विक्रय पर लगे रोक
जाट ने कहा कि जब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गठित समिति की रिपोर्ट नहीं आए और सरकार की ओर से सकारात्मक कार्रवाई नहीं की जाए तब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में क्रय-विक्रय को रोकने के लिए प्रभावी कार्रवाई आवश्यक है. इसके लिए भारत सरकार की ओर से तैयार किए गए कृषि उपज एवं पशुपालन अधिनियम 2017 के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य से ही खरीद आरंभ करने के संबंध में तत्काल अध्यादेश लाना चाहिए जिससे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में अपनी उपजों को बेचने पर विवश नहीं होना पड़े, नहीं तो सरकार की कथनी और करनी में तर रहेगा.
400 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कम
रामपाल जाट ने कहा कि अभी सरसों की बुवाई चालू है. चने की तैयारी हो गई है. ऐसी स्थिति में किसान अपने खेतों पर फसलों को बदलने का विचार भी नहीं कर सकता है. पिछले वर्ष सरसों के भाव 8000 प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे और वे 2000 प्रति क्विंटल की गिरावट के साथ नीचे आ गए तो भी किसान सरसों की बुवाई और चने की बुवाई करेंगे. राजस्थान में तो अक्टूबर तक चले बरसात के दौर ने इन दोनों उपजों के लिए विशेष परिस्थिति उत्पन्न की है. न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण के लिये अंतराष्ट्रीय एवं घरेलू मूल्यों के अनुसार सरसों के दाम में 400 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कम है. इसी प्रकार मसूर, गेहूं, चना में भी बढ़ोतरी न्यायोचित नहीं है. 48 प्रतिशत तेल अंश के आधार पर भी सरसों के दाम 6118 रुपये प्रति क्विंटल होने चाहिए.