जयपुर. साइबर ठग इन दिनों एक नया तरीका अपनाकर लोगों को अपनी ठगी का शिकार बना रहे हैं. साइबर ठगों (Cyber Gang) ने इस बार ठगी का जो तरीका अपनाया है, उसके चलते लोग बड़ी आसानी से ठगों के झांसे में आ रहे हैं और लाखों रुपये की राशि गंवा रहे हैं.
साइबर ठग ऐसे लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं जो अपना मकान या फ्लैट किराए पर देना चाहते हैं. जिसके चलते उन्होंने उसका विज्ञापन किसी अखबार में दिया है या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (Social Media) पर डाला हुआ है. ऐसे लोगों को साइबर ठग फोन कर खुद को सैन्य अधिकारी बताते हैं. साथ ही हाल ही में शहर में नई पोस्टिंग होने की बात कहकर किराए पर मकान या फ्लैट लेने की इच्छा जाहिर करते हैं. साइबर ठग खुद को सैन्य अधिकारी बताते हैं, जिसके चलते लोग बड़ी आसानी से उनपर विश्वास कर लेते हैं और अपना मकान या फ्लैट उन्हें किराए पर देने के लिए तैयार हो जाते हैं.
इस तरह से बनाते हैं साइबर ठग लोगों को अपना शिकार...
साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज ने बताया कि साइबर ठग खुद को सैन्य अधिकारी बताने के बाद मकान या फ्लैट किराए पर लेने की बात कहता है. इसके बाद ठग फोटोशॉप से एडिट करे हुए सेना के फर्जी आईकार्ड मकान मालिक के व्हाट्सएप पर भेजते हैं, ताकि उसका विश्वास पूरी तरह से जीता जा सके. इसके बाद ठग 3 से 4 महीने का किराया एडवांस में मकान मालिक के खाते में जमा कराने की बात कहता है. साथ ही एडवांस किराया फोन-पे, गूगल-पे, पेटीएम या अन्य किसी यूपीआई एप के जरिए मकान मालिक के खाते में जमा कराने की बात कही जाती है. इसके बाद मकान मालिक से उसके बैंक खाते की जानकारी मांगी जाती है.
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उसके बाद ठग मकान मालिक के बैंक खाते में 10, 20, 50 या 100 रुपये ट्रांसफर करता है और ट्रांजैक्शन के बारे में पूछता है. जिस पर मकान मालिक उसके खाते में एक छोटा अमाउंट आने की जानकारी देता है. इस पर ठग मकान मालिक को ट्रांजैक्शन के दौरान टेक्निकल एरर आने पर सिर्फ 1 फीसदी राशि जमा होने की बात कहते हैं. साथ ही पूरा अमाउंट प्राप्त करने के लिए मकान मालिक के व्हाट्सएप पर एक क्यूआर कोड भेज कर उस कोड को स्कैन करने के लिए कहते हैं.
जैसे ही ठगों की बातों में आकर मकान मालिक उस क्यूआर कोड को स्कैन करके अपना यूपीआई पिन एंटर करता है, वैसे ही उसके खाते में रुपये आने की बजाय खाते से रुपये कट जाते हैं. इस पर जब मकान मालिक खाते से रुपये कटने की शिकायत करता है तो ठग फिर से टेक्निकल एरर बता कर नया क्यूआर कोड भेजता है और फिर से मकान मालिक के खाते से एक बड़ा अमाउंट निकाल लिया जाता है.
बिना फिजिकल वेरीफिकेशन के खुले खातों में ट्रांसफर होती है ठगी गई राशि...
साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज ने बताया कि लोगों से ठगी गई राशि को साइबर ठग बिना फिजिकल वेरीफिकेशन के खोले गए बैंक खातों (Bank Account) में ट्रांसफर करते हैं. आजकल प्रत्येक बैंक ऑनलाइन बैंक खाता खोलने की सुविधा देता है. जिसमें किसी भी तरह का फिजिकल वेरिफिकेशन (Physical Verification) नहीं होता है. उसका फायदा साइबर ठग उठाते हैं और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ऑनलाइन बैंक खाता खोलकर उसमें ठगी गई राशि को ट्रांसफर करते हैं. फिर उस ठगी गई राशि को बिटकॉइन में कन्वर्ट कर फरार हो जाते हैं. पुलिस भी जब इस तरह के प्रकरणों की जांच करती है और उस व्यक्ति तक पहुंची है, जिसके नाम से बैंक खाता खुलवाया गया है तो उस व्यक्ति का ठगी के प्रकरण में किसी भी तरह का इंवॉल्वमेंट नहीं पाया जाता है.
इस नियम को रखें याद तो नहीं होंगे कभी भी ठगी का शिकार...
साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज ने बताया कि ठगी का शिकार होने से बचने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को यह नियम याद रखना होगा कि क्यूआर कोड (QR Code) को स्कैन करके केवल पेमेंट अदा किया जा सकता है न कि पेमेंट प्राप्त किया जा सकता है. यदि कोई भी व्यक्ति क्यूआर कोड भेज कर उसे स्कैन करने के लिए कह रहा है तो मानसिक रूप से तैयार रहे कि ऐसा करने से आपके खाते से रुपये कटेंगे न की खाते में रुपये जमा होंगे.
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यदि क्यूआर कोड के माध्यम से पेमेंट प्राप्त करना है तो उसके लिए पेमेंट प्राप्त करने वाले व्यक्ति को स्वयं के खाते का क्यूआर कोड जनरेट करके उस व्यक्ति को भेजना होता है. जिससे कि उसे पेमेंट रिसीव करना हो. इसके साथ ही ठगी का शिकार होने से बचने के लिए व्हाट्सएप ब्रॉडकास्ट पर आने वाले अनजान नंबर को रिप्लाई नहीं करना चाहिए और साथ ही उस मैसेज पर भेजे गए लिंक पर क्लिक भी नहीं करना चाहिए.
ठगी का शिकार होने पर तुरंत उठाएं यह कदम...
साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज ने बताया कि साइबर ठगी का शिकार होने के तुरंत बाद बिना वक्त गवाएं इसकी शिकायत संबंधित पुलिस थाने में करें और उस शिकायत की एक कॉपी अपने बैंक में जमा कराएं. इसके साथ ही बैंक के टोल फ्री नंबर पर तुरंत फोन कर अपने बैंक खाते को फ्रीज करवाएं. बैंक अमाउंट को सेटल करने में 24 से 48 घंटे का समय लगता है और यदि ठगी का शिकार हुआ व्यक्ति समय पर रिपोर्ट करा दे तो ऐसा करके ट्रांजैक्शन को रोका जा सकता है. साथ ही ठगी गई राशि को वापस रिकवर किया जा सकता है. इसके साथ ही नेट बैंकिंग और यूपीआई का ज्यादा प्रयोग करने वाले व्यक्तियों को कार्ड प्रोटेक्शन प्लांट एक्टिव रखना चाहिए, ताकि ठगी का शिकार होने पर संबंधित बीमा कंपनी द्वारा उसकी भरपाई की जा सके.