जयपुर. जिले में आगरा रोड पर करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर बांसखोह गांव में स्वयंभू शिवलिंग (Nai Ke Nath temple in Jaipur) के रूप में प्रकट महादेव के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगता है. 'नई के नाथ' धाम के नाम से प्रसिद्ध मंदिर को लेकर कई दंत कथाएं भी हैं. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन के बाद प्रज्ज्वलित धूणे में अगर व्यक्ति हाथ जोड़ता है तो कुष्ठ रोग समेत चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है. सैकड़ों वर्ष पुराने इस मंदिर में दर्शन के लिए जयपुर समेत दूरदराज से भी लोग पहुंचते हैं. खास तौर पर सावन सोमवार और शिवरात्रि पर यहां मेला भी भरता है. इस दौरान कावड़ लेकर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.
नई के नाथ की कथा
बांसखोह गांव का नाम सैकड़ों वर्ष पूर्व बंशीगढ़ हुआ करता था. यहां के राजा सवाई सिंह देवी के उपासक थे लेकिन तीसरी शादी के बाद आईं रानी शिव की उपासक थीं. तीसरी दुल्हन के आने के बाद राज्य में शिव पूजा भी शुरू हुई. बताया जाता है कि सवाई सिंह की तीसरी पत्नी मारवाड़ की भगवतगढ़ ठाकुर की बेटी थीं और भगवान शिव की परम भक्त थीं. वे बिना शिव पूजा के अन्न ग्रहण नहीं किया करती थीं. शादी के बाद जब उन्होंने राजा सवाई सिंह से शिव पूजा के लिए आग्रह किया तो उन्होंने कहा कि वह जल्द ही मंदिर तैयार करवा देंगे. तब तक रानी अपनी हठ छोड़कर भोजन ग्रहण कर लें लेकिन वह नहीं मानीं.
राजा ने कहा कि आप क्यों न अपने शिव से ही कह दें कि वह आपके लिए कोई तत्काल पूजा का प्रबंध कर दें. ऐसा कहा जाता है कि इस वार्तालाप के बाद सवाई सिंह की तीसरी पत्नी को एक सपना आता है तो अगली सुबह वे अपने दृष्टांत को सुनाती हैं और जब उस स्थान पर राजा, रानी और शाही लवाजमा पहुंचता है तो वहां शिवलिंग रहता है. जिले राजा ने एक मंदिर के रूप में निर्मित कर दिया और आज यह 'नई के नाथ' मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है. यहां स्वयंभू शिवलिंग को देखकर सभी आश्चर्यचकित हो जाते हैं. इसके बाद रानी शिव पूजा करती हैं और दीपक जलाती हैं. वह प्रज्ज्वलित दीपक आज भी अखंड ज्योति के रूप में मंदिर में स्थापित है. शिव को भोग लगाने के बाद जिस धूणे में इसे अर्पित किया जाता है, वह स्थान भी आज लोगों की आस्था का केंद्र बिंदु बन चुका है.
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ऐसे पड़ा था मंदिर का नाम
बंशीगढ़ के राजा सवाई सिंह देवी के उपासक थे. यही कारण था कि उनके राज्य में शिव मंदिर नहीं था. जब उनकी तीसरी शादी हुई तो मारवाड़ की बेटी की इच्छा पर उन्होंने इस स्थान पर प्रकट शिवलिंग को मंदिर के रूप में स्थापित किया. इसके बाद नई रानी की इच्छा पर बनाए गए इस मंदिर को लोगों ने 'नई का नाथ' के रूप में मान्यता दी. उन्होंने कहा कि अपने भक्तों के लिए खुद महादेव प्रकट हो गए हैं. ऐसे में महादेव से बड़ा नाथ कोई हो ही नहीं सकता. कहा यह भी जाता है कि इस मंदिर की स्थापना के कुछ समय बाद ही रानी को संतान की प्राप्ति हो गई थी.
घने जंगल में आस्था का केंद्र हैं नई का नाथ
नई का नाथ मंदिर पहुंचने के लिए आगरा हाईवे से करीब 10 किलोमीटर अंदर तक चलना पड़ता है. बांसखो फाटक से आगे निकल कर अरावली की पहाड़ियों के बीच यह मंदिर स्थित है. किसी समय इस घने जंगल में भयानक जीवों का भी यहां डेरा रहा करता था. सावन मास में कावड़ यात्रा लेकर यहां आने वाले श्रद्धारु मनोकामना पूर्ण होने पर धार्मिक आयोजन भी करते हैं. यह मान्यता है कि धूणे में नारियल और घी चढ़ाकर लोग भोलेनाथ के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं. यह धूणा बाबा बालव नाथ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं. हर अमावस्या के पहले चतुर्दशी को बाबा बालव नाथ का मेला भरता है.
पर्यटन केंद्र के रूप में मान्यता देने की मांग
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए नई का नाथ मंदिर ट्रस्ट से जुड़े पुजारी ने कहा कि मंदिर की भौगोलिक स्थिति इसे विशेष पर्यटन स्थल के रूप में भी पहचान दिलाती है परंतु सरकार की तरफ से विकास को लेकर किए गए कार्यों में कमियां रह जाने के कारण लोगों को मंदिर तक पहुंचने में परेशानी होती है. खास तौर पर सावन के महीने में मंदिर के चारों तरफ फैली पहाड़ी हरियाली की चादर ओढ़ कर सौंदर्य को और भी ज्यादा बढ़ा देती है. इस वजह से मंदिर ट्रस्ट की मांग है कि सरकार इसके विकास के लिए और श्रद्धालुओं के हित को ध्यान में रखते हुए नई का नाथ मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में मान्यता दिलाए और प्रचारित करे.