जयपुर. प्रदेश के 4 जिलों कोटा, बारां, करौली और गंगानगर में आज पंचायत चुनाव (Panchayat elections of four districts) का तीसरा और आखिरी चरण का मतदान हो गया है और आज मतगणना जारी है. 4 जिलों में 106 जिला परिषद सदस्य और 568 पंचायत समिति सदस्यों के भाग्य का फैसला आज सामने आ जाएगा. इन सदस्यों के जरिये प्रदेश के इन चारों जिलों में कौन चार जिला प्रमुख और कौन 30 प्रधान बनेंगे इसका फैसला 23 दिसम्बर को होगा.
क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, ऐसे में इन 4 जिलों में जिला प्रमुख और प्रधान बनाने को लेकर कांग्रेस पार्टी के विधायकों, मंत्रियों और नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है. हालांकि चुनाव में जीत की सबसे बड़ी जिम्मेदारी सत्ताधारी दल के संगठन और सरकार पर होती है. इस बार इन 4 जिलों के चुनाव में पहले चरण का मतदान 12 दिसंबर को था लेकिन सरकार हो या संगठन दोनों ही कांग्रेस पार्टी की महंगाई के खिलाफ रैली को सफल बनाने में लगा हुआ था. ऐसे में पहले चरण में तो कांग्रेस को निश्चित तौर पर नुकसान हुआ लेकिन बाकी बचे दो चरण में जीत दिलाने की जिम्मेदारी इन चार जिलों के 13 विधायकों पर है जिनमें तीन मंत्री और एक कांग्रेस समर्थित निर्दलीय भी शामिल हैं.
पंचायच चुनाव में साख दांव पर
राजस्थान में 4 जिलों में चल रहे चुनाव में कुल 20 विधानसभा आती है. तीन मंत्रियों और 1 कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायक समेत 13 विधायकों की साख दांव पर है. इन तीन मंत्रियों में कोटा से शांति धारीवाल, बारां से प्रमोद जैन भाया और करौली जिले से रमेश मीणा आते हैं. इन तीन में से दो मंत्री गहलोत कैबिनेट के सदस्य रहे हैं तो 1 रमेश मीना दोबारा मंत्री बने हैं. चारों जिलों के कांग्रेस मंत्रियों और विधायकों की बात की जाए तो बारा जिले से मंत्री प्रमोद जैन भाया, पानाचंद मेघवाल और निर्मला सहरिया विधायक हैं. कोटा जिले से मंत्री शांति धारीवाल के साथ ही भरत सिंह और रामनारायण मीणा विधायक हैं.
इसी तरीके से करौली जिले की सभी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं. इनमें मंत्री रमेश मीणा समेत लाखन मीणा, पृथ्वीराज मीणा और भरोसी लाल जाटव शामिल हैं. गंगानगर की बात की जाए तो यहां कांग्रेस विधायक गुरमीत सिंह कुन्नर और जगदीश चंद्र हैं तो वहीं एक विधायक राजकुमार गौड़ कांग्रेस समर्थित हैं. ऐसे में कुल 20 विधानसभा सीटों में से 13 सीटों पर कांग्रेस के विधायक या मंत्री काबिज हैं जिससे सत्ताधारी दल होने के साथ ही विधायक ज्यादा होने के चलते भी जीत की जिम्मेदारी सत्ताधारी दल कांग्रेस पर है.
चारों जिलों से जो तीन मंत्री आते हैं उनके पास मंत्री पद है, लेकिन बाकी बचे 10 विधायकों को अगर सत्ता या संगठन में भागीदारी लेनी है तो उन्हें अपने जिले में आने वाली विधानसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी को जीत दिलानी होगी. क्योंकि आने वाले समय में प्रदेश में जो राजनीतिक नियुक्तियां होनी है या फिर कांग्रेस संगठन का विस्तार होना है उसमें उन्हीं विधायकों या उनके समर्थकों को लाभ मिलेगा जो पार्टी को जीत दिलाने बड़ी भूमिका निभाएंगे.