जयपुर. अतिरिक्त सत्र न्यायालय क्रम-4 महानगर प्रथम ने दुष्कर्म मामले में एफआर पेश करने वाले अनुसंधान अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश को गलत माना है. इसके साथ ही अदालत ने एफआईआर दर्ज करने के आदेश को रद्द करते हुए कहा (Court dismissed order of FIR) कि निचली अदालत परिवाद पर सीआरपीसी की धारा 200 और 202 के तहत कार्रवाई जारी रख सकती है. अदालत ने यह आदेश राज्य सरकार व सुरेन्द्र सागर की रिवीजन याचिका पर दिए.
अदालत ने कहा कि रींगस थाने में वर्ष 2017 में दर्ज दुष्कर्म के मामले में दूषित अनुसंधान का आरोप लगाते हुए पहले जांच अधिकारी सीताराम माहिच और फिर दूसरे जांच अधिकारी महेश कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई. वहीं नए साक्ष्य मिले बिना जांच अधिकारी सुरेन्द्र सागर के खिलाफ तीसरा परिवाद तथ्यों को छिपाकर पेश किया करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है. रिवीजन याचिका में कहा गया कि परिवादी महिला ने वर्ष 2017 में रींगस थाने में गैंगरेप सहित अन्य धाराओं में मामला दर्ज कराया गया था. जिसमें कई अनुसंधान अधिकारियों ने जांच कर एफआर पेश कर दी.
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वहीं परिवादी महिला ने कई याचिकाएं दायर कर इसे हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है. वहीं दो एफआईआर ज्योतिनगर थाने में जांच अधिकारियों के खिलाफ दर्ज करा रखी है. याचिका में कहा गया कि वर्तमान प्रकरण में परिवादी महिला ने अपने परिवाद में स्थानीय विधायक महादेव सिंह खंडेला, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, तत्कालीन डीजीपी भूपेन्द्र यादव, सीएम के ओएसडी देवाराम सैनी सहित अन्य के इशारे पर एफआर पेश करने का आरोप लगाया. जबकि इनका मामले के अनुसंधान में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई सरोकार नहीं था.