जयपुर. राजस्थान में 6 जिलों भरतपुर, सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर, जोधपुर और सिरोही में पंचायती राज चुनाव की मतगणना और नतीजे 4 सितंबर शनिवार को आने हैं. राजस्थान भाजपा ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव की तरह पंचायती राज चुनाव को भी दल बदल कानून (defection law) के दायरे में लाने की मांग की है. कांग्रेस ने इस पर पलटवार किया है.
नतीजों से पहले ही सत्ताधारी दल कांग्रेस और विपक्षी दल भाजपा अपने-अपने प्रत्याशियों को बाड़ाबंदी में ले चुके हैं. पंचायती राज चुनाव में भाजपा को यह डर सता रहा है कि कांग्रेस उनके जीते हुए प्रत्याशियों को अपने पाले में न कर ले. यही कारण है कि राजस्थान भाजपा ने पंचायती राज चुनाव (Panchayat elections) में दल बदल कानून लागू करने की मांग की है.
भाजपा की इस मांग पर जयपुर आए कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य राजीव शुक्ला (Rajiv Shukla) ने राजस्थान भाजपा को नसीहत देते हुए कहा कि वे यह मांग उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के सामने रखें. राजीव शुक्ला ने कहा कि यह मांग राजस्थान भाजपा उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार से करें, जहां पुलिस तंत्र के जरिए समाजवादी पार्टी, कांग्रेस पार्टी या अन्य विपक्षी दलों के नामांकन ही खारिज करवा दिए जाते हैं.
इसी मामले में राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा (Govind Singh Dotasara) ने कहा कि जब राजस्थान में 5 साल तक भाजपा का शासन था तो उस समय भारतीय जनता पार्टी ने यह कानून क्यों नहीं बनाया.
यह फर्क है लोकसभा, विधानसभा और पंचायती राज चुनाव के कानून में
दरअसल विपक्ष में रहने वाला दल पंचायत चुनाव या नगर निकाय चुनाव में दल बदल कानून लागू करने की मांग करता ही है. भले विपक्ष में कांग्रेस पार्टी रही हो या फिर भारतीय जनता पार्टी. विपक्ष को इस कानून की याद आती है. लेकिन सत्ता में जाने के बाद वे इस कानून को भूल जाते हैं. लोकसभा, विधानसभा और पंचायती राज चुनाव में फर्क यह होता है कि जहां विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जिस पार्टी का विधायक या सांसद चुनाव में जीत दर्ज करता है वह दूसरी पार्टी को अपना समर्थन नहीं दे सकता.
क्योंकि ऐसा करने से उस पर दल बदल कानून लागू होगा और उसकी सदस्यता छिन जाती है. अगर किसी विधायक या सांसद को दूसरे दल को समर्थन करना है तो इसके लिए उसे अपनी पार्टी के दो तिहाई सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है. जबकि पंचायती राज और नगर निकाय चुनाव में किसी भी पार्टी का प्रत्याशी किसी दूसरी पार्टी के प्रत्याशी को अपना समर्थन और वोट दे सकता है.
ऐसा करने पर उसकी सदस्यता भी नहीं जाती है, क्योंकि पंचायती राज चुनाव में दल बदल कानून लागू नहीं है. यही कारण है कि हर बार सत्ताधारी दल पर ही आरोप लगते हैं कि वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर दूसरी पार्टी के प्रत्याशियों को लालच या डर से अपने साथ मिला सकता है.