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जेके लोन अस्पताल में नवजात शिशुओं की मौत के मामले में गठित कमेटी ने क्या सुझाव दिए ? - rajasthan news

राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने कोटा के जेके लोन अस्पताल में नवजात शिशुओं की मौत के मामले में एक कमेटी गठित की थी. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट आयोग को सौंप दी है. रिपोर्ट में कमेटी ने सरकार को कुछ सुझाव भी दिए हैं.

jk lone hospital,  infant deaths in jk lone hospital
राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के आदेश पर गठित कमेटी ने कोटा में नवजात की मौतों के मामले में अपनी रिपोर्ट सौंप दी है
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Published : Dec 25, 2020, 4:36 AM IST

जयपुर. राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के आदेश पर गठित कमेटी ने कोटा में नवजात की मौतों के मामले में अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. आयोग के सचिव बी.एल मीणा (आईएएस) एवं आयोग के रजिस्ट्रार ओमी पुरोहित कमेटी में शामिल थे. 14 दिसंबर को सचिव बी.एल.मीना और ओमी पुरोहित ने जेके लोन अस्पताल का निरीक्षण किया. कमेटी ने नवजात शिशुओं की मृत्यु के मामले में चिकित्सकों ने लापरवाही की या नहीं इसके लिए चिकित्सकों से रिपोर्ट तलब की और सभी मृत शिशुओं के एडमिशन से लेकर डिस्चार्ज टिकट तलब किए.

पढ़ें: निरोगी राजस्थान अभियान को सफल बनाने के लिए आयुष पद्धतियों की लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा पहुंच जरूरी: अशोक गहलोत

जेके लोन अस्पताल की तरफ से गठित मेडिकल बोर्ड की जांच रिपोर्ट आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई. जिला कलेक्टर कोटा ने भी अपनी रिपोर्ट आयोग के समक्ष पेश की. जहां तक चिकित्सकों व अधिकारियों की लापरवाही का संबंध है. इस संबंध में रिपोर्ट लंबित रखते हुए मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट आने के बाद इस पर रिपोर्ट दी जाएगी.

कोटा जिला कलेक्टर एवं अधीक्षक जेके लोन चिकित्सालय से जो रिपोर्ट प्राप्त हुई है, उसमें मृत्यु का कारण गंभीर बीमारी से मृत्यु होना बताया गया है. रिपोर्ट में अकाल मृत्यु होना जाहिर नहीं किया गया है. जिला कलेक्टर की तरफ से जो रिपोर्ट दी गई है वो भी आयोग को सौंपी गई है.

कमेटी की तरफ से दिए गए सुझाव

  • कोटा डिविजन में नवजात शिशुओं के उपचार के लिए केवल जेके लोन अस्पताल ही है. कोटा डिवीजन के प्रत्येक जिले के राजकीय अस्पताल में नवजात शिशुओं के लिए अलग से विंग स्थापित की जाए और प्रत्येक जिले में नियोंनेटल आधुनिक आईसीयू विंग की स्थापना की जाए जो अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हो.
  • अस्पताल में यह भी सामने आया कि एक वार्मर पर नवजातों को सुलाया गया था. जिससे एक बच्चे से दूसरे बच्चे को संक्रमण फैलने का खतरा रहता है. इस संबंध में राज्य सरकार को निर्देश दिया जाए कि जेके लोन अस्पताल में एक वार्मर पर एक नवजात शिशु को ही सुलाया जाए जो नियमानुसार उचित है. क्योंकि एक वार्मर पर एक बच्चे को सुलाने की स्थिति में वार्मर की संख्या बढ़ानी पड़ेगी. इसके लिए राज्य सरकार को अस्पताल में कम से कम 200 वार्मरों की संख्या बढ़ानी चाहिए.
  • 156 बेड का इंडोर ब्लॉक का काम चल रहा है, जब तक यह स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट तैयार नहीं हो तब तक जेके लोन अस्पताल को अलग से स्थान चिन्हित कर नवजात शिशुओं के इलाज के लिए वार्मर की संख्या चार से पांच गुना बढ़ाई जाए. जिससे एक वार्मर पर एक ही शिशु का इलाज नियमानुसार किया जा सके.
  • निरीक्षण के दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि वार्मर को रिजर्व में रखने की भी आवश्यकता है. क्योंकि इलेक्ट्रिक उपकरण होने के कारण कई बार खराब हो जाने पर उन्हें रिप्लेस करना पड़ता है. राज्य सरकार को अस्पताल में डबल वार्मर की रिजर्व में देने चाहिए, जिससे की रिप्लेस के समय उनका उपयोग हो सके.
  • निरीक्षण में सामने आया कि चिकित्सकों एवं नर्सिंग स्टाफ की कोरोना के समय से नियमित जांच नहीं की जा रही है. इस संबंध में राज्य सरकार दिशा-निर्देश जारी करे कि संबंधित चिकित्सकों, नर्सिंग स्टाफ व अटेंडेंट जो भी बच्चों के संपर्क में आते हैं, उनकी 15 दिन में या साप्ताहिक या आवश्यकता अनुसार कोविड-19 की जांच की जाए उसके बाद ही वे बच्चों के संपर्क में आए.
  • जांच में सामने आया कि उचित साफ-सफाई नियमित रूप से हो. अस्पताल में चूहे सामान्य रूप से पाए जा रहे हैं. उनकी रोकथाम के लिए उपाय किए जाएं, दवा का छिड़काव कराया जाए क्योंकि उनसे भी संक्रमण फैलने की संभावना रहती है.
  • नवजात शिशुओं की इलाज के लिए जो रूम काम में लिए जाएं, उसके रूम टेंपरेचर को भी नियमित रूप से मेंटेन किया जाए.
  • नवजात शिशुओं के इलाज के संबंध में चिकित्सक व नर्सिंग स्टाफ कार्यरत रहे Covid-19 की नियमावली का पालन करते हुए काम करें
  • चिकित्सालय में कंबल बेड चादर नियमित रूप से बदलें. बाथरूम और शौचालय जिस प्रकार से एयरपोर्ट और मॉल्स में साफ रखे जाते हैं. उसी प्रकार से दो-दो घंटे में उनकी सफाई करते हुए बाथरूम और शौचालय को स्वच्छ रखा जाए
  • मीटिंग के दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि अभी अस्पताल में अतिरिक्त चिकित्सक व नर्सिंग स्टाफ उपलब्ध कराया गया है, उसे कंटिन्यू किया जाए हटाने की बजाय
  • आयोग की ओर से यह भी कहा गया है कि नवजात शिशु के इलाज के लिए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत जो 156 बेड तैयार किए जा रहे हैं. उसी के संदर्भ में अभी तुरंत प्रभाव से अंतिम रूप से अलग व्यवस्था कर लगभग 200 बेड की व्यवस्था की जाए. अलग-अलग 20 या 25 की यूनिट में नवजात शिशु को रखा जाए और प्रत्येक यूनिट के लिए इंचार्ज यूनिट चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ दिया जाए.
  • राज्य में जन्म लेने और मरने वाले प्रत्येक बच्चे का पंजीकरण व आकलन जरूरी है. इसके लिए जिलेवार आंकड़े एकत्रित हों. ताकि जिलों को टारगेट करके समस्या का समाधान हो सके
  • शिशु विशेषज्ञ डॉक्टर की उपलब्धता पंचायत स्तर पर सुनिश्चित की जाए. शिशु की देखभाल के लिए विशेष प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ एवं बाइयों की व्यवस्था की जाए, सभी अस्पतालों का सेंट्रलाइज ऑक्सीजन सिस्टम ठीक किया जाए
  • इसके अलावा बच्चों की ठीक से देखभाल करने, इंश्योरेंस क्लेम, गर्भवती महिलाओं की शुरू से ही ध्यान रखने और पोषण आदि की व्यवस्था करने, गर्भवती महिलाओं की तिमाही या आवश्यकता अनुसार जांच करने के लिए भी अनुशंसा की है, महिलाओं को स्वस्थ शिशु पैदा करने की जानकारी भी दी जाए.

जयपुर. राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के आदेश पर गठित कमेटी ने कोटा में नवजात की मौतों के मामले में अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. आयोग के सचिव बी.एल मीणा (आईएएस) एवं आयोग के रजिस्ट्रार ओमी पुरोहित कमेटी में शामिल थे. 14 दिसंबर को सचिव बी.एल.मीना और ओमी पुरोहित ने जेके लोन अस्पताल का निरीक्षण किया. कमेटी ने नवजात शिशुओं की मृत्यु के मामले में चिकित्सकों ने लापरवाही की या नहीं इसके लिए चिकित्सकों से रिपोर्ट तलब की और सभी मृत शिशुओं के एडमिशन से लेकर डिस्चार्ज टिकट तलब किए.

पढ़ें: निरोगी राजस्थान अभियान को सफल बनाने के लिए आयुष पद्धतियों की लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा पहुंच जरूरी: अशोक गहलोत

जेके लोन अस्पताल की तरफ से गठित मेडिकल बोर्ड की जांच रिपोर्ट आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई. जिला कलेक्टर कोटा ने भी अपनी रिपोर्ट आयोग के समक्ष पेश की. जहां तक चिकित्सकों व अधिकारियों की लापरवाही का संबंध है. इस संबंध में रिपोर्ट लंबित रखते हुए मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट आने के बाद इस पर रिपोर्ट दी जाएगी.

कोटा जिला कलेक्टर एवं अधीक्षक जेके लोन चिकित्सालय से जो रिपोर्ट प्राप्त हुई है, उसमें मृत्यु का कारण गंभीर बीमारी से मृत्यु होना बताया गया है. रिपोर्ट में अकाल मृत्यु होना जाहिर नहीं किया गया है. जिला कलेक्टर की तरफ से जो रिपोर्ट दी गई है वो भी आयोग को सौंपी गई है.

कमेटी की तरफ से दिए गए सुझाव

  • कोटा डिविजन में नवजात शिशुओं के उपचार के लिए केवल जेके लोन अस्पताल ही है. कोटा डिवीजन के प्रत्येक जिले के राजकीय अस्पताल में नवजात शिशुओं के लिए अलग से विंग स्थापित की जाए और प्रत्येक जिले में नियोंनेटल आधुनिक आईसीयू विंग की स्थापना की जाए जो अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हो.
  • अस्पताल में यह भी सामने आया कि एक वार्मर पर नवजातों को सुलाया गया था. जिससे एक बच्चे से दूसरे बच्चे को संक्रमण फैलने का खतरा रहता है. इस संबंध में राज्य सरकार को निर्देश दिया जाए कि जेके लोन अस्पताल में एक वार्मर पर एक नवजात शिशु को ही सुलाया जाए जो नियमानुसार उचित है. क्योंकि एक वार्मर पर एक बच्चे को सुलाने की स्थिति में वार्मर की संख्या बढ़ानी पड़ेगी. इसके लिए राज्य सरकार को अस्पताल में कम से कम 200 वार्मरों की संख्या बढ़ानी चाहिए.
  • 156 बेड का इंडोर ब्लॉक का काम चल रहा है, जब तक यह स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट तैयार नहीं हो तब तक जेके लोन अस्पताल को अलग से स्थान चिन्हित कर नवजात शिशुओं के इलाज के लिए वार्मर की संख्या चार से पांच गुना बढ़ाई जाए. जिससे एक वार्मर पर एक ही शिशु का इलाज नियमानुसार किया जा सके.
  • निरीक्षण के दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि वार्मर को रिजर्व में रखने की भी आवश्यकता है. क्योंकि इलेक्ट्रिक उपकरण होने के कारण कई बार खराब हो जाने पर उन्हें रिप्लेस करना पड़ता है. राज्य सरकार को अस्पताल में डबल वार्मर की रिजर्व में देने चाहिए, जिससे की रिप्लेस के समय उनका उपयोग हो सके.
  • निरीक्षण में सामने आया कि चिकित्सकों एवं नर्सिंग स्टाफ की कोरोना के समय से नियमित जांच नहीं की जा रही है. इस संबंध में राज्य सरकार दिशा-निर्देश जारी करे कि संबंधित चिकित्सकों, नर्सिंग स्टाफ व अटेंडेंट जो भी बच्चों के संपर्क में आते हैं, उनकी 15 दिन में या साप्ताहिक या आवश्यकता अनुसार कोविड-19 की जांच की जाए उसके बाद ही वे बच्चों के संपर्क में आए.
  • जांच में सामने आया कि उचित साफ-सफाई नियमित रूप से हो. अस्पताल में चूहे सामान्य रूप से पाए जा रहे हैं. उनकी रोकथाम के लिए उपाय किए जाएं, दवा का छिड़काव कराया जाए क्योंकि उनसे भी संक्रमण फैलने की संभावना रहती है.
  • नवजात शिशुओं की इलाज के लिए जो रूम काम में लिए जाएं, उसके रूम टेंपरेचर को भी नियमित रूप से मेंटेन किया जाए.
  • नवजात शिशुओं के इलाज के संबंध में चिकित्सक व नर्सिंग स्टाफ कार्यरत रहे Covid-19 की नियमावली का पालन करते हुए काम करें
  • चिकित्सालय में कंबल बेड चादर नियमित रूप से बदलें. बाथरूम और शौचालय जिस प्रकार से एयरपोर्ट और मॉल्स में साफ रखे जाते हैं. उसी प्रकार से दो-दो घंटे में उनकी सफाई करते हुए बाथरूम और शौचालय को स्वच्छ रखा जाए
  • मीटिंग के दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि अभी अस्पताल में अतिरिक्त चिकित्सक व नर्सिंग स्टाफ उपलब्ध कराया गया है, उसे कंटिन्यू किया जाए हटाने की बजाय
  • आयोग की ओर से यह भी कहा गया है कि नवजात शिशु के इलाज के लिए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत जो 156 बेड तैयार किए जा रहे हैं. उसी के संदर्भ में अभी तुरंत प्रभाव से अंतिम रूप से अलग व्यवस्था कर लगभग 200 बेड की व्यवस्था की जाए. अलग-अलग 20 या 25 की यूनिट में नवजात शिशु को रखा जाए और प्रत्येक यूनिट के लिए इंचार्ज यूनिट चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ दिया जाए.
  • राज्य में जन्म लेने और मरने वाले प्रत्येक बच्चे का पंजीकरण व आकलन जरूरी है. इसके लिए जिलेवार आंकड़े एकत्रित हों. ताकि जिलों को टारगेट करके समस्या का समाधान हो सके
  • शिशु विशेषज्ञ डॉक्टर की उपलब्धता पंचायत स्तर पर सुनिश्चित की जाए. शिशु की देखभाल के लिए विशेष प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ एवं बाइयों की व्यवस्था की जाए, सभी अस्पतालों का सेंट्रलाइज ऑक्सीजन सिस्टम ठीक किया जाए
  • इसके अलावा बच्चों की ठीक से देखभाल करने, इंश्योरेंस क्लेम, गर्भवती महिलाओं की शुरू से ही ध्यान रखने और पोषण आदि की व्यवस्था करने, गर्भवती महिलाओं की तिमाही या आवश्यकता अनुसार जांच करने के लिए भी अनुशंसा की है, महिलाओं को स्वस्थ शिशु पैदा करने की जानकारी भी दी जाए.
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