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कभी गहलोत से नाराज होकर छोड़ी थी कांग्रेस, आज धनखड़ को लेकर सीएम बोले यह विचारधारा की जंग

एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन दाखिल कर दिया है. राजस्थान से आने वाले धनखड़ पहले कांग्रेस में ही थे लेकिन सीएम गहलोत से नाराजगी के बाद वह भाजपा में शामिल हो गए थे. आज सीएम गहलोत एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ (Cm gehlot speak on Jagdeep dhankhad) को लेकर कहा है कि यह विचारधारा की जंग है.

Cm gehlot speak on Jagdeep dhankhad
धनखड़ को लेकर बोले गहलोत
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Published : Jul 18, 2022, 6:10 PM IST

जयपुर. सोमवार को उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के प्रत्याशी के रूप में जगदीप धनखड़ ने अपना नामांकन भर दिया है. जनता दल से कांग्रेस में जाने के बाद बीजेपी का दामन थामने वाले धनखड़ के मुरीद हर राजनीतिक दल में हैं. सीएम गहलोत से नाराजगी के कारण ही धनखड़ कांग्रेस से अलग हुए थे. आज उनको उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार (Cm gehlot speak on Jagdeep dhankhad) बनाए जाने पर गहलोत ने कहा कि यह विचारधाना की लड़ाई है.

राजस्थान में राजनीति के पंडित बताते हैं कि किसी दौर में ओबीसी और खास तौर पर जाट समाज के राजनीति में हाशिए पर होने के बाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता जगदीप धनखड़ ने चौधरी देवी लाल के जरिए अपनी सियासी पारी की शुरुआत की थी. इसके बाद मंडल कमीशन का दौर आया और धनखड़ जैसे कई जाट युवाओं को एहसास हुआ कि अब उनके लिए जनता दल में कुछ खास नहीं बचा है. लिहाजा धनखड़ ने कांग्रेस का दामन थाम कर अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ा. हालांकि इसमें उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा. इससे पहले धनखड़ झुंझुनू से सांसद रह चुके थे.

उनके राजनीतिक करिअर की शुरुआत 1989 में हुई जब वे जनता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव में झुंझुनू से चुनाव जीते. उन्हें चुनाव का टिकट मुख्य रूप से उनके गुरु देवीलाल के साथ उनके संबंधों के कारण दिया गया था. इसके बाद वे 1990 में संसदीय मामलों के राज्य मंत्री बने. हालांकि उन्होंने इसके बाद जनता दल को छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था और साल 1993 में वह कांग्रेस के टिकट पर किशनगढ़ से चुनाव लड़े और जीते भी. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व अधिवक्ता धनखड़ वर्ष 2003 में बीजेपी में शामिल हुए थे. उनके भाई रणदीप धनखड़ अभी भी कांग्रेस में हैं और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी हैं जबकि इसी दौर में धनखड़ ने अशोक गहलोत से ही नाराज होकर कांग्रेस छोड़ी थी.

Cm gehlot speak on Jagdeep dhankhad
सलमान का भी केस लड़ा

पढ़ें. NDA उपराष्ट्रपति प्रत्याशी जगदीप धनखड़ को अपने गृह राज्य में गहलोत सरकार का नहीं मिलेगा समर्थन, मुख्यमंत्री ने दिया ये बयान...

गहलोत से हुए थे नाराज
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने साल 1998 में पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली थी. उस दौर में कांग्रेस में जाट नेतृत्व और राजनीति पर परवान पर थी. तब नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, परसराम मदेरणा, शीशराम ओला, नारायण सिंह और रामनारायण चौधरी जैसे दिग्गज जाट नेताओं की तूती बोलती थी. ऐसे में चुनाव से पहले परसराम मदेरणा को भी बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया जाना भी तब कांग्रेस की बड़ी जीत का संकेत था. लिहाजा मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत का आना जाट नेताओं और खासतौर पर युवा जाट नेताओं को रास नहीं आया. 5 साल के कार्यकाल के दौरान अशोक गहलोत से मनमुटाव और बयानबाजी का दौर भी जारी रहा. इस बीच हरि सिंह विजय पूनिया और जगदीप धनखड़ जैसे नेताओं ने खुलकर अशोक गहलोत के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की. उन्हें कांग्रेस के साथ अपना भविष्य नजर नहीं आया और विकल्प की तलाश शुरू की.

पढ़ें. Presidential Election : राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान समाप्त, कांग्रेस के भंवर लाल शर्मा और BTP के राजकुमार रोत ने नहीं डाला वोट...

वाजपेयी ने दिखाया विकल्प
साल 2003 में जगदीप धनखड़ के बीजेपी का दामन थामने से पहले गहलोत से उनकी नाराजगी का दौर लंबा चला था. इस बीच शेखावाटी में एक जनसभा के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने जाट समाज के लिए ओबीसी के आरक्षण की बात रखी तो धनखड़ को अपना विकल्प नजर आ गया और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को चुन लिया. इस दौरान वह संघ की नजरों में भी आए. बतौर वकील उन्होंने इंद्रेश कुमार के खिलाफ लगे आतंकी षड्यंत्र वाले मामले में केस लड़ा और खुद को काबिल वकील के तौर पर भी बीजेपी में स्थापित किया. यही वजह रही कि अमित शाह ने उन्हें अपनी टीम में लीगल हेड के रूप में रखा और फिर बंगाल की जिम्मेदारी सौंपी. इससे पहले हिरण शिकार मामले में जगदीप धनखड़ ने सलमान खान को भी जमानत दिलवाई थी.

कांग्रेस विरोधी राजनीति में रहे हैं धनखड़
कांग्रेस के साथ राजनीतिक पारी जगदीप धनखड़ के लिए एक स्थाई रास्ता नहीं रहा था. उन्होंने छात्र जीवन के बाद वकालत के दौरान जब अपनी सियासी पारी को शुरू किया, अपने समाज के उत्थान के लिए उन्हें जनता दल नजर आया और बाद में जाट समाज के लिए आरक्षण की लड़ाई लड़कर बीजेपी और आरएसएस को करीब से समझते हुए खुद को स्थापित किया. कांग्रेस में दलित और मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के बीच हाशिए पर आते ओबीसी वोट बैंक को लेकर पार्टी की नीतियों के कारण माना जाता है कि जगदीप धनखड़ के लिए कांग्रेस के विरुद्ध वैकल्पिक राजनीति ही मुख्य जरिया रही थी.

जयपुर. सोमवार को उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के प्रत्याशी के रूप में जगदीप धनखड़ ने अपना नामांकन भर दिया है. जनता दल से कांग्रेस में जाने के बाद बीजेपी का दामन थामने वाले धनखड़ के मुरीद हर राजनीतिक दल में हैं. सीएम गहलोत से नाराजगी के कारण ही धनखड़ कांग्रेस से अलग हुए थे. आज उनको उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार (Cm gehlot speak on Jagdeep dhankhad) बनाए जाने पर गहलोत ने कहा कि यह विचारधाना की लड़ाई है.

राजस्थान में राजनीति के पंडित बताते हैं कि किसी दौर में ओबीसी और खास तौर पर जाट समाज के राजनीति में हाशिए पर होने के बाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता जगदीप धनखड़ ने चौधरी देवी लाल के जरिए अपनी सियासी पारी की शुरुआत की थी. इसके बाद मंडल कमीशन का दौर आया और धनखड़ जैसे कई जाट युवाओं को एहसास हुआ कि अब उनके लिए जनता दल में कुछ खास नहीं बचा है. लिहाजा धनखड़ ने कांग्रेस का दामन थाम कर अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ा. हालांकि इसमें उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा. इससे पहले धनखड़ झुंझुनू से सांसद रह चुके थे.

उनके राजनीतिक करिअर की शुरुआत 1989 में हुई जब वे जनता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव में झुंझुनू से चुनाव जीते. उन्हें चुनाव का टिकट मुख्य रूप से उनके गुरु देवीलाल के साथ उनके संबंधों के कारण दिया गया था. इसके बाद वे 1990 में संसदीय मामलों के राज्य मंत्री बने. हालांकि उन्होंने इसके बाद जनता दल को छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था और साल 1993 में वह कांग्रेस के टिकट पर किशनगढ़ से चुनाव लड़े और जीते भी. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व अधिवक्ता धनखड़ वर्ष 2003 में बीजेपी में शामिल हुए थे. उनके भाई रणदीप धनखड़ अभी भी कांग्रेस में हैं और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी हैं जबकि इसी दौर में धनखड़ ने अशोक गहलोत से ही नाराज होकर कांग्रेस छोड़ी थी.

Cm gehlot speak on Jagdeep dhankhad
सलमान का भी केस लड़ा

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गहलोत से हुए थे नाराज
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने साल 1998 में पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली थी. उस दौर में कांग्रेस में जाट नेतृत्व और राजनीति पर परवान पर थी. तब नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, परसराम मदेरणा, शीशराम ओला, नारायण सिंह और रामनारायण चौधरी जैसे दिग्गज जाट नेताओं की तूती बोलती थी. ऐसे में चुनाव से पहले परसराम मदेरणा को भी बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया जाना भी तब कांग्रेस की बड़ी जीत का संकेत था. लिहाजा मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत का आना जाट नेताओं और खासतौर पर युवा जाट नेताओं को रास नहीं आया. 5 साल के कार्यकाल के दौरान अशोक गहलोत से मनमुटाव और बयानबाजी का दौर भी जारी रहा. इस बीच हरि सिंह विजय पूनिया और जगदीप धनखड़ जैसे नेताओं ने खुलकर अशोक गहलोत के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की. उन्हें कांग्रेस के साथ अपना भविष्य नजर नहीं आया और विकल्प की तलाश शुरू की.

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वाजपेयी ने दिखाया विकल्प
साल 2003 में जगदीप धनखड़ के बीजेपी का दामन थामने से पहले गहलोत से उनकी नाराजगी का दौर लंबा चला था. इस बीच शेखावाटी में एक जनसभा के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने जाट समाज के लिए ओबीसी के आरक्षण की बात रखी तो धनखड़ को अपना विकल्प नजर आ गया और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को चुन लिया. इस दौरान वह संघ की नजरों में भी आए. बतौर वकील उन्होंने इंद्रेश कुमार के खिलाफ लगे आतंकी षड्यंत्र वाले मामले में केस लड़ा और खुद को काबिल वकील के तौर पर भी बीजेपी में स्थापित किया. यही वजह रही कि अमित शाह ने उन्हें अपनी टीम में लीगल हेड के रूप में रखा और फिर बंगाल की जिम्मेदारी सौंपी. इससे पहले हिरण शिकार मामले में जगदीप धनखड़ ने सलमान खान को भी जमानत दिलवाई थी.

कांग्रेस विरोधी राजनीति में रहे हैं धनखड़
कांग्रेस के साथ राजनीतिक पारी जगदीप धनखड़ के लिए एक स्थाई रास्ता नहीं रहा था. उन्होंने छात्र जीवन के बाद वकालत के दौरान जब अपनी सियासी पारी को शुरू किया, अपने समाज के उत्थान के लिए उन्हें जनता दल नजर आया और बाद में जाट समाज के लिए आरक्षण की लड़ाई लड़कर बीजेपी और आरएसएस को करीब से समझते हुए खुद को स्थापित किया. कांग्रेस में दलित और मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के बीच हाशिए पर आते ओबीसी वोट बैंक को लेकर पार्टी की नीतियों के कारण माना जाता है कि जगदीप धनखड़ के लिए कांग्रेस के विरुद्ध वैकल्पिक राजनीति ही मुख्य जरिया रही थी.

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