जयपुर. देवशयनी एकादशी के साथ ही मंगलवार से चातुर्मास का आगाज हो गया है. अब अगले चार महीने तक मांगलिक कार्यों पर विराम रहेगा. चातुर्मास के दौरान भगवान की भक्ति और सत्संग आदि का विशेष फल प्राप्त होता है. इस दौरान खान-पान का भी विशेष ध्यान रखा जाता है. पत्तेदार सब्जियों का ज्यादा से ज्यादा सेवन इस दौरान फायदेमंद माना गया है.
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ज्योतिषाचार्य पंडित पुरुषोत्तम गौड़ का कहना है कि देवशयनी एकादशी पर मंगलवार को शुक्ल और ब्रह्मयोग का संयोग बन रहा है. यह दोनों योग ज्योतिष में बड़े शुभ माने जाते हैं. इनमें किए हुए कार्य लाभदायक होते हैं और कार्य सिद्ध होते हैं. शुक्ल और ब्रह्मयोग में किए गए कार्य चिरस्थायी स्थिरता देने वाले होते हैं. देवशयनी एकादशी (20 जुलाई) से देव प्रबोधिनी एकादशी (14 नवंबर) तक चातुर्मास रहेगा.
इस दौरान भगवान श्रीहरि पाताल लोक में विश्राम करेंगे. चातुर्मास के साथ ही शुभ और मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है. इस अवधि में शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे. इसके साथ ही मुंडन और उपनयन (जनेऊ) संस्कार आदि भी नहीं होते हैं. चातुर्मास में भगवान का ध्यान करना, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना और भगवान का नाम जप करना और श्रीमद्भागवत का श्रवण करना, यज्ञ-हवन और पूजा पाठ करना बड़े ही शुभ माने जाते हैं.
उनका कहना है कि इस अवधि में सात्विकता धारण करने का शुभ फल मिलता है. इस दौरान मांस-मदिरा के सेवन से परहेज करना चाहिए. यह समय केवल भगवान के संकीर्तन और पूजा पाठ के लिए शुभ माना जाता है. चातुर्मास के दौरान पत्तेदार सब्जियों का सेवन अधिक से अधिक करना चाहिए. बैंगन और दही के सेवन से इस अवधि में विशेष रूप से परहेज करना चाहिए.
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ज्योतिषाचार्य पंडित पुरुषोत्तम गौड़ का कहना है कि चातुर्मास के दौरान शहनाइयां नहीं बजेंगी. इन चार महीनों में शादी विवाह का कोई सावा नहीं है. देव प्रबोधिनी एकादशी (14 नवंबर) से एक बार फिर शादी विवाह शुरू होंगे. उनका कहना है कि नवंबर के अंतिम सप्ताह में शादियों के सात सावे हैं. यानि नवंबर के अंतिम सप्ताह में हर दिन सावा होगा. दिसंबर के प्रथम पखवाड़े में छह सावे होंगे.