जयपुर. कोरोना संकट के बीच 19 जून को होने वाले राज्यसभा के चुनाव में इस बार भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. दांव पर इसलिए क्योंकि भाजपा ने प्रदेश के 3 में से 2 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि विधायकों की संख्या बल और सियासी समीकरणों के आधार पर बीजेपी केवल एक ही सीट पर जीतने का दम रखती है.
केंद्र की ओर से तय हुए पहले प्रत्याशी राजेंद्र गहलोत को जीताकर भेजना ही प्रदेश भाजपा की पहली प्राथमिकता होगी. ऐसे में दूसरी सीट पर उतारे गए वरिष्ठ भाजपा नेता ओंकार सिंह लखावत को जीत का स्वाद चखाना अब भाजपा नेताओं के लिए चुनौती बन गया है.
ये है सियासी गणित, क्रॉस वोटिंग की संभावना कम
प्रदेश की राज्यसभा सीट पर जीत के लिए हर सीट पर प्रथम वरीयता के 51 वोटों की दरकार है. ये वोट विधायक डालेंगे और विधायकों की संख्या के आधार पर प्रदेश में सभी 200 विधायकों के वोट मान्य हैं. कांग्रेस के पास खुद के 107 विधायक हैं, जबकि आरएलडी के 1, सीपीएम के 2, बीटीपी के 2 और 13 निर्दलीय विधायकों में से अधिकतर का समर्थन उसे प्राप्त है.
वहीं, भाजपा के पास खुद के 72 विधायक हैं, जबकि आरएलपी के 3 विधायकों का भी भाजपा को समर्थन प्राप्त है. राज्यसभा चुनाव के नियम के तहत हर मतदाता को वोट देने से पहले पार्टी की ओर से अधिकृत व्यक्ति को दिखाना पड़ता है. ऐसे में क्रॉस वोटिंग करके कोई भी विधायक पार्टी से बाहर निकलने की रिस्क नहीं लेगा.
जोड़तोड़ की गणित से भाजपा दूर
निर्दलीय विधायक हमेशा सत्ता के साथ रहते हैं, इसलिए भाजपा ने यदि उनमें जोड़तोड़ की गणित बैठाई भी तो उसका कुछ खास फायदा बीजेपी को नहीं मिलने वाला है. ऐसे में यदि कोई बहुत बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो भाजपा के 1 प्रत्याशी को तो हार का मुंह देखना पड़ेगा ही और वो प्रत्याशी ओंकार सिंह लखावत ही होंगे. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि सियासी तिकड़म की संभावना के चलते भाजपा ने राज्यसभा चुनाव रूपी बिसात पर लखावत को महज मोहरा बनाकर उतारा था.