जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार को कहा है कि वह तीन माह में बेसिक पैथोलॉजी लैब के लिए न्यूनतम शैक्षणिक अर्हता तय करने को कहा है. वहीं अदालत ने राज्य सरकार को लैब संचालकों के पंजीकरण नहीं करने पर 27 नवंबर तक जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.
न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायाधीश नरेन्द्र सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश मामले में लिए गए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए.
केन्द्र सरकार की ओर से एएसजी आरडी रस्तोगी ने बताया कि पूर्व में पैथ लैब संचालक और रिपोर्ट देने वालों के लिए कोई तय मानक नहीं थे. केन्द्र सरकार ने 2012 में क्लिनिकल एस्टैबलिशमेंट एक्ट और नियम बनाकर पैथ लैब को तीन श्रेणियों में बांट दिया. इनके संचालक और रिपोर्ट देने वालों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता भी तय कर दी.
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इनके अनुसार बेसिक लैब के लिए एमबीबीएस डिग्रीधारी का होना वांछनीय बताया. मिडियम लैब के लिए एमडी पैथोलॉजी या एनबीडी से पैथोलॉजी, बॉयो-केमेस्ट्री या मेडिकल माइक्रो बॉयोलॉजी में डिप्लोमा होना तय किया. तीसरी श्रेणी की एडवांस पैथ लैब के लिए एमडी पैथौलॉजी या डीएनडी डिप्लोमा होना निर्धारित किया. जबकि बेसिक लैब के मामले में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय नहीं की गई और एमबीबीएस को भी वांछनीय बताया है.
इससे बेसिक लैब वालों के सामने रजिस्ट्रेशन की समस्या हो रही है. वहीं बेसिक लैब संचालकों की ओर से प्रार्थना पत्र पेश कर कहा गया कि सरकार ने उन्हें अस्थाई रजिस्ट्रेशन करवाने वरना कार्रवाई करने के नोटिस दिए थे.
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संचालकों ने आवेदन कर दिए और कानूनी तौर पर सरकार को दस दिन में आवेदनों पर निर्णय करना था, लेकिन सरकार ने अब तक कुछ नहीं किया और अब कार्रवाई की चेतानवी दी जा रही है. इसलिए जब तक बेसिक लैब के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता का मुद्दा तय नहीं होता तब तक अस्थाई रजिस्ट्रेशन किए जाए और कोई कार्रवाई ना की जाए.