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Positive News On Cancer: तीन बार कैंसर को हराया, अब उपचार में अपनाई बीएमटी प्रकिया...रोगी ने खुद के Bone Marrow से करवाया ट्रांसप्लांट

डॉ गुप्ता की ओर से नॉन हॉजकिन लिंफोमा के रोगी का उसके खुद के बोन मेरो से ट्रांसप्लांट कर उपचार किया गया. बीएमसीएचआरसी में पहला बोन मेरो ट्रांसप्लांट (Cancer Patient Self Bone Marrow Transplant In Jaipur) बगैर किसी जटिलता के सफलतापूर्ण किया गया.

Positive News On Cancer
रोगी ने खुद के Bone Marrow से करवाया ट्रांसप्लांट
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Published : May 1, 2022, 2:08 PM IST

Updated : May 1, 2022, 3:06 PM IST

जयपुर. ब्लड कैंसर के कुछ रोगियों में कैंसर मुक्त होने के बाद दोबारा कैंसर होने की संभावना होती है. ऐसे में जरूरी है उन रोगियों के उपचार में रोग के अनुसार उपलब्ध श्रेष्ठ उपचार पद्धति को अपनाया जाए. यह कहना है भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल के मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ दीपक गुप्ता का. डॉ गुप्ता की ओर से नॉन हॉजकिन लिंफोमा के रोगी का उसके खुद के बोन मेरो से ट्रांसप्लांट (Cancer Patient Self Bone Marrow Transplant In Jaipur) किया है. बीएमसीएचआरसी में पहला बोन मेरो ट्रांसप्लांट बगैर किसी जटिलता के सफलतापूर्ण किया गया.

डॉ. गुप्ता ने बताया कि जयपुर निवासी इस रोगी में नॉन हॉजकिन लिंफोमा (रक्त कैंसर का एक प्रकार) की पहचान 2019 में हुई. रोगी को उपचार के लिए बीएमटी का सुझाव दिया गया, लेकिन कोविड संक्रमण का दौर और पारिवारिक कारणों के कारण रोगी ने बीएमटी नहीं करवाया. तीन बार उपचार पूर्ण करने के बाद रोगी ने बीएमटी करवाने का निर्णय लिया. रोगी का ऑटोलॉगस ट्रांसप्लांट किया गया जिसके काफी अच्छे परिणाम सामने आए है. तीन सप्ताह तक चले इस उपचार के बाद रोगी स्वस्थ है, लेकिन करीब एक साल रोगी को मेंटेनेंस ट्रीटमेंट पर रखा जाएगा.

कैंसर उपचार में बीएमटी प्रक्रिया

पढ़ें- Cancer Treatment in AIIMS Jodhpur: पेट में फैले कैंसर का जोधपुर एम्स में HIPEC तकनीक से हुआ उपचार, जानिए पूरी डिटेल

इन रोगियों में बीएमटी की आवश्यकता :डॉ गुप्ता ने बताया कि नॉन हॉजकिन लिंफोमा, हॉजकिन लिंफोमा और मल्टीपल माइलोमा, ब्लड कैंसर के रोगियोें में उपचार के लिए बोन मेरो ट्रांसप्लांट करवाने का सुझाव दिया जाता है. मुख्य तौर पर बीएमटी दो तरह से होता है जिसमें ऑटोलॉगस ट्रांसप्लांट (रोगी की स्वयं की बोन मेरो से ट्रांसप्लांट) और दूसरा ऐलोजेनिक ट्रांसप्लांट (रोगी के रक्तसंबधि से बोने मेरो मैच करवाकर ट्रांसप्लांट) है. रोगी और उसकी बीमारी की स्थिति के आधार पर ट्रांसप्लांट की प्रकिया का चयन किया जाता है.

जयपुर. ब्लड कैंसर के कुछ रोगियों में कैंसर मुक्त होने के बाद दोबारा कैंसर होने की संभावना होती है. ऐसे में जरूरी है उन रोगियों के उपचार में रोग के अनुसार उपलब्ध श्रेष्ठ उपचार पद्धति को अपनाया जाए. यह कहना है भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल के मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ दीपक गुप्ता का. डॉ गुप्ता की ओर से नॉन हॉजकिन लिंफोमा के रोगी का उसके खुद के बोन मेरो से ट्रांसप्लांट (Cancer Patient Self Bone Marrow Transplant In Jaipur) किया है. बीएमसीएचआरसी में पहला बोन मेरो ट्रांसप्लांट बगैर किसी जटिलता के सफलतापूर्ण किया गया.

डॉ. गुप्ता ने बताया कि जयपुर निवासी इस रोगी में नॉन हॉजकिन लिंफोमा (रक्त कैंसर का एक प्रकार) की पहचान 2019 में हुई. रोगी को उपचार के लिए बीएमटी का सुझाव दिया गया, लेकिन कोविड संक्रमण का दौर और पारिवारिक कारणों के कारण रोगी ने बीएमटी नहीं करवाया. तीन बार उपचार पूर्ण करने के बाद रोगी ने बीएमटी करवाने का निर्णय लिया. रोगी का ऑटोलॉगस ट्रांसप्लांट किया गया जिसके काफी अच्छे परिणाम सामने आए है. तीन सप्ताह तक चले इस उपचार के बाद रोगी स्वस्थ है, लेकिन करीब एक साल रोगी को मेंटेनेंस ट्रीटमेंट पर रखा जाएगा.

कैंसर उपचार में बीएमटी प्रक्रिया

पढ़ें- Cancer Treatment in AIIMS Jodhpur: पेट में फैले कैंसर का जोधपुर एम्स में HIPEC तकनीक से हुआ उपचार, जानिए पूरी डिटेल

इन रोगियों में बीएमटी की आवश्यकता :डॉ गुप्ता ने बताया कि नॉन हॉजकिन लिंफोमा, हॉजकिन लिंफोमा और मल्टीपल माइलोमा, ब्लड कैंसर के रोगियोें में उपचार के लिए बोन मेरो ट्रांसप्लांट करवाने का सुझाव दिया जाता है. मुख्य तौर पर बीएमटी दो तरह से होता है जिसमें ऑटोलॉगस ट्रांसप्लांट (रोगी की स्वयं की बोन मेरो से ट्रांसप्लांट) और दूसरा ऐलोजेनिक ट्रांसप्लांट (रोगी के रक्तसंबधि से बोने मेरो मैच करवाकर ट्रांसप्लांट) है. रोगी और उसकी बीमारी की स्थिति के आधार पर ट्रांसप्लांट की प्रकिया का चयन किया जाता है.

Last Updated : May 1, 2022, 3:06 PM IST
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