जयपुर. 25 अप्रेल 2018 को जोधपुर हाईकोर्ट ने 2013 में आश्रम की एक लड़की से दुष्कर्म के मामले में आसाराम को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. आसाराम को जोधपुर पुलिस ने 31 अगस्त 2013 को छिंदवाड़ा आश्रम से गिरफ्तार किया था. दुष्कर्मी को गिरफ्तार करने और जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले डीआईजी अजय पाल लांबा ने आसाराम दुष्कर्म प्रकरण को लेकर एक किताब लिखी है. जिसका टाइटल 'गनिंग फॉर द गॉडमैन' रखा गया है. आसाराम दुष्कर्म प्रकरण से जुड़े हर पहलू और उसके पीछे छिपी हुई सच्चाई को बयां करती यह किताब उन तमाम प्रश्नों के जवाब देगी, जो आसाराम की गिरफ्तारी से लेकर उसे सजा दिलाने तक का संघर्ष है.
10 दिन के अंदर हुई थी गिरफ्तारी...
आसाराम बापू को साल 2013 में FIR दर्ज होने के 10 दिन के अंदर गिरफ्तार किया गया. उस दौरान मिलने वाली धमकियों को नजरअंदाज करते हुए खुद को और पूरी पुलिस टीम को मोटिवेट करते हुए प्रकरण से जुड़े हुए हर एक एविडेंस को कैसे कलेक्ट किया गया? इस दौरान किस तरह की परेशानियों का सामना पुलिस टीम ने किया, इन तमाम पहलुओं का जिक्र किताब में किया गया है.
'गनिंग फॉर द गॉडमैन' किताब के बारे में ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान डीआईजी अजय पाल लांबा ने बताया कि किस तरह से FIR दर्ज होने के बाद आसाराम को गिरफ्तार कर जोधपुर लाया गया और कोर्ट में चालान पेश कर आसाराम को सजा दिलाई गई. प्रकरण को लेकर पूरे देश भर में प्रदर्शन हुए और प्रकरण की गहनता से जांच में जुटी हुई पुलिस टीम को धमकियां दी गईं.
आश्रम में किया गया था ढोंग...
डीआईजी बताते हैं कि किस तरह जोधपुर पुलिस टीम जब उनसे पूछताछ करने आश्रम पहुंची, तो आसाराम ने सत्संग शुरू कर दिया. सत्संग समाप्त होने पर वह आराम करने चले गए. मगर, पुलिस की टीम भी डटी रही. दो दिन तक पुलिस के साथ आंख-मिचौली के बाद आसाराम को पुलिस ने शनिवार आधी रात यानी 31 अगस्त 2013 को इंदौर में गिरफ्तार किया था.
जोधपुर पुलिस आसाराम को लेकर जैसे ही इंदौर के आश्रम से बाहर निकली तो आसाराम के सैकड़ों समर्थकों ने उनके समर्थन में और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करना शुरू कर दिया.
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जब आसाराम ने खुद को बता दिया नपुंसक...
डीआईजी के मुताबिक पुलिस की शुरुआती जांच में आसाराम ने दावा किया कि वह तो नपुंसक है, लेकिन इसके बाद जब उनका पोटेंसी (मर्दानगी) टेस्ट कराया गया तो उनका ये दावा पूरी तरह झूठा पाया गया.
इसके बाद कई बार उन्होंने तबीयत खराब होने की बात करके जमानत लेने की कोशिश की लेकिन उन्हें जमानत न मिल सकी. आसाराम की गिरफ्तारी से लेकर अब 25 अप्रेल को उनके खिलाफ बलात्कार मामले में अदालत का फैसला आने तक उनके भक्तों ने तमाम तरह से अपने बापू को जमानत दिलाने की कोशिशें की. सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर प्रदर्शन किए गए.
'द टफ 20' का हुआ गठन...
डीआईजी लांबा बताते हैं कि पुलिस की 'द टफ 20' टीम ने आसाराम को गिरफ्तार किया था. इस दौरान उन्हें किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा, किस तरह के दबाव झेलने पड़े, इन सारी बातों की जिक्र इस किताब में है. इस पूरे प्रकरण से जुड़े हुए एक-एक सबूत को कैसे इकठ्ठा किया गया और आसाराम को गिरफ्तार करते हुए पॉक्सो एक्ट के तहत सजा दिलाई गई. यह सब आसान काम नहीं था. काफी मशक्कतों के बाद दुष्कर्मी को उसके पापों की सजा मिली थी.
भक्तों और समर्थकों का आक्रोश बना मुसीबत...
डीआईजी अजय पाल लांबा ने बताया कि आसाराम दुष्कर्म प्रकरण से जुड़ा हुआ एक स्मरण ऐसा भी है, जिसको याद कर आज भी उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं. जब आसाराम को गिरफ्तार करने के लिए स्पेशल टीम आसाराम के इंदौर स्थित पैतृक आश्रम पहुंचे और जब आसाराम को गिरफ्तार किया गया तो इस दौरान वहां पर खींचतान और विरोध का माहौल था.
स्पेशल टीम के अन्य अधिकारी आसाराम को आश्रम से गिरफ्तार करने के बाद तुरंत एयरपोर्ट की तरफ भागे, लेकिन एक महिला ऑफिसर आश्रम में ही फंस गई. ऐसे नाजुक समय में भी महिला पुलिस अधिकारी ने हिम्मत नहीं हारी और पूरी बहादुरी के साथ सूझबूझ से काम लेते हुए सुरक्षित आश्रम से बाहर निकलने में कामयाब रही. इस पूरे प्रकरण में पुलिस के सामने यही सबसे ज्यादा संवेदनशील और डरावना रहा है.
गवाहों की ले ली गई जान...
डीआईजी अजय पाल लांबा बताते हैं कि आसाराम को गिरफ्तार करने के बाद जब पूरा प्रकरण कोर्ट में चल रहा था. इस दौरान केस से जुड़े हुए तमाम पुलिसकर्मी और गवाहों को लगातार आसाराम के भक्तों और अन्य लोगों के माध्यम से धमकियां मिल रही थी. इस दौरान कई गवाहों को मौत के घाट भी उतार दिया गया और कई लोगों पर जानलेवा हमले किए गए. इसके बावजूद भी प्रकरण से जुड़े हुए पुलिस टीम के अधिकारी व कर्मचारी पूरी निडरता से डटे रहे.
कोर्ट में ट्रायल के दौरान और जिस दिन कोर्ट द्वारा फैसला सुनाया गया, उस दिन आसाराम के भक्तों द्वारा जोधपुर में किसी भी तरह का प्रदर्शन पुलिस ने नहीं होने दिया. इस प्रकरण के हर मोड़ पर पुलिस एक मजबूत दीवार की तरह खड़ी रही और दुष्कर्मी आसाराम को सजा दिलाकर ही दम लिया.
टीम लीडर और पुलिस के निष्पक्ष जांच को दर्शाती है किताब...
डीआईजी अजय पाल लांबा ने बताया कि आसाराम दुष्कर्म प्रकरण के तमाम पहलुओं को उजागर करती हुई 'गनिंग फॉर द गॉडमैन' उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा का एक बड़ा जरिया है, जो टीम वर्क में काम करते हैं. इस किताब में उन तमाम पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि किस तरह से एक टीम को मोटिवेट किया जाता है, एक टीम को बनाया जाता है और एक अच्छे लीडर के लिए क्या क्वॉलिटी होनी चाहिए.
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डीआईजी अजय पाल लांबा ने कहा कि जिस तरह से पुलिस के अनुसंधान पर अनेक तरह के सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन इस पूरे प्रकरण में किया गया पुलिस का अनुसंधान एक निष्पक्ष जांच का बेहतरीन उदाहरण है. जिसकी बारीकियों का जिक्र इस किताब में किया गया है. इसके साथ ही कोर्ट में लंबे ट्रायल के दौरान किस तरह से गवाह को पेश करना होता है और उससे किस तरह से एग्जामिन करना होता है, इन तमाम बारीकियों का जिक्र भी इस किताब में किया गया है.