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BJP in Rajasthan : चुनाव जीते, लेकिन बढ़ती गई कमजोर बूथों की संख्या...सांसदों को दिया टारगेट - अल्पसंख्यक क्षेत्रों में बूथ

बूथ स्तर पर भाजपा ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सांसदों को टारगेट दिया है. पार्टी ने कमजोर बूथों की सूची बनाई और सांसदों को इन्हें मजबूत करने की जिम्मेदारी दी है. मिशन 2023 और साल 2024 में होने वाले चुनावों के लिए इसे बेसिक तैयारी माना जा रहा (BJP plans to strengthen booth for upcoming elections) है.

BJP plans to strengthen booth for upcoming elections
चुनाव जीते, लेकिन बढ़ती गई कमजोर बूथों की संख्या, अब भाजपा सांसद इस रणनीति से अल्पसंख्यक क्षेत्रों में बूथ करेंगे मजबूत
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Published : Jun 19, 2022, 3:33 PM IST

जयपुर. मिशन 2023 और साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा पूरी तरह चुनावी मोड में आ गई है. पार्टी चाहती है कि बूथ स्तर तक बीजेपी मजबूत रहे और बूथ मजबूती के सहारे ही अजेय बने. इसके लिए सांसदों को उनके क्षेत्र में अति कमजोर बूथों को मजबूत करने का टारगेट दिया गया है. हालांकि, अधिकतर कमजोर बूथ अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्रों (BJP to target booths in minority areas) में है जो कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है.

2014 और 19 में जीते चुनाव लेकिन लगातार बढ़ रही कमजोर बूथों की संख्या: पाली में पार्टी ने सर्वे करावा कर भाजपा के लिहाज से कमजोर पड़े बूथ चिन्हित किए थे. राजस्थान में कमजोर बूथों की संख्या करीब 6 हजार है. यहां पर गौर करने वाली बात यह भी है कि साल 2014 में भाजपा के जिन सांसदों ने चुनाव लड़ा और जीते तब उनके क्षेत्र में कमजोर बूथ की संख्या कम थी जो साल 2019 के चुनाव में बढ़ गई और आज वो संख्या पहले से अधिक है. पार्टी के नजरिए से जो बूथ कमजोर हैं. उनमें अधिकतर बूथ अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्रों में ही है.

BJP plans to strengthen booth for upcoming elections
बीजेपी सांसदों को मिली बूथ मजबूत करने की जिम्मेदारी

जयपुर शहर संसदीय क्षेत्र का ही उदाहरण ले लें तो साल 2014 में भाजपा ने यहां महज 37 अति कमजोर बूथ चिन्हित किए थे, जिनकी संख्या 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान 142 पहुंच गई. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि इन कमजोर बूथ में मतदाताओं का वोटिंग प्रतिशत साल 2014 में 40 से 55 प्रतिशत ही था. 2019 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 80 से 90 प्रतिशत तक हो गया है. हालांकि साल 2014 की तुलना में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सांसद को करीब 1 लाख वोट अधिक मिले थे, लेकिन बढ़े हुए वोट दूसरे क्षेत्रों के हैं. आज जयपुर शहर संसदीय क्षेत्र में 146 अति कमजोर भाजपा के बूथ हैं.

पढ़ें: बीजेपी ने की 74 हजार कमजोर बूथों की पहचान, जानिए क्‍या है पार्टी का प्‍लान

राजस्थान में 24 सांसदों को 2400 कमजोर बूथों की मिली जिम्मेदारी: राजस्थान में भाजपा के 24 लोकसभा सांसद हैं जिन्हें हाल ही में बूथ सशक्तिकरण अभियान के तहत 240 कमजोर बूथों को मजबूत करने का टारगेट दिया गया (BJP MPs given target to empowerment booth) है. हर सांसद के क्षेत्र में कमजोर 100 बूथ की सूची पार्टी ने सौंपी है, जिन्हें विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए भाजपा के लिहाज से मजबूत करना है. सांसदों की परेशानी यह है की जो सूची उन्हें मिली है उनमें अधिकतर कमजोर बूथ उन इलाकों में है जहां अल्पसंख्यक आबादी ज्यादा है और भाजपा जमीनी स्तर पर कमजोर स्थिति में है.

अब सांसद स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं की मदद से इन कमजोर बूथ को मजबूत करने में जुटे हैं. जयपुर शहर सांसद रामचरण बोहरा ने तो 146 कमजोर बूथों को मजबूत करने की जिम्मेदारी पार्टी से ली है. इसके लिए इन क्षेत्रों में 40 वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारियां भी दी गई है और खुद बोहरा इन कमजोर बूथ में आने वाले परिवारों से संपर्क के लिए घर-घर जनसंपर्क करेंगे.

पढ़ें: Panna pramukh campaign: सतीश पूनिया श्रीगंगानगर से करेंगे पन्ना प्रमुख अभियान का आगाज, 52 हजार बूथों पर 11 लाख पन्ना प्रमुखों की होगी नियुक्ति

अल्पसंख्यक कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक, सेंध लगाना मुश्किल: राजनीति में अल्पसंख्यक वोटर कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है. यही कारण है कि जयपुर शहर में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने किशनपोल और आदर्श नगर विधानसभा क्षेत्र में अल्पसंख्यक प्रत्याशियों को ही टिकट दिया जबकि भाजपा ने पूरे जयपुर शहर के किसी भी विधानसभा सीट पर अल्पसंख्यक प्रत्याशी को मौका नहीं दिया. आलम यह रहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में 200 विधानसभा सीटों में से एक मात्र यूनुस खान को ही बीजेपी ने टिकट दिया जो अल्पसंख्यक कोटे से आते हैं. ऐसे में अल्पसंख्यकों मतदाताओं का झुकाव बीजेपी की तरफ ज्यादा ना रहकर उन राजनीतिक दलों की तरफ रहा जो चुनावों में टिकट के माध्यम से अल्पसंख्यकों को राजनीतिक भागीदारी देते रहे हैं.

पढ़ें: शासन और संगठन में प्रयोगों के लिए भाजपा की प्रयोगशाला है गुजरात: नड्डा

केंद्र की योजनाओं के जरिए अल्पसंख्यकों को पार्टी से जोड़ने पर फोकस: सांसदों को जो जिम्मेदारी मिली है उसे पूरा करने में काफी पसीना बहाना पड़ेगा. लेकिन उसके बाद भी परिणाम सुखद रहें इसकी संभावना कम ही है. हालांकि पिछले 8 साल में केंद्र की मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए जो भी कल्याणकारी फैसले और योजनाएं शुरू की हैं, उन्हीं को अब भाजपा के कार्यकर्ता इन कमजोर बूथ वाले क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों तक लेकर जा रहे हैं. वहीं पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे के जरिए भी कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश भाजपा कर रही है लेकिन उसमें कितनी सफलता मिलेगी यह तो समय ही बताएगा.

जयपुर. मिशन 2023 और साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा पूरी तरह चुनावी मोड में आ गई है. पार्टी चाहती है कि बूथ स्तर तक बीजेपी मजबूत रहे और बूथ मजबूती के सहारे ही अजेय बने. इसके लिए सांसदों को उनके क्षेत्र में अति कमजोर बूथों को मजबूत करने का टारगेट दिया गया है. हालांकि, अधिकतर कमजोर बूथ अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्रों (BJP to target booths in minority areas) में है जो कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है.

2014 और 19 में जीते चुनाव लेकिन लगातार बढ़ रही कमजोर बूथों की संख्या: पाली में पार्टी ने सर्वे करावा कर भाजपा के लिहाज से कमजोर पड़े बूथ चिन्हित किए थे. राजस्थान में कमजोर बूथों की संख्या करीब 6 हजार है. यहां पर गौर करने वाली बात यह भी है कि साल 2014 में भाजपा के जिन सांसदों ने चुनाव लड़ा और जीते तब उनके क्षेत्र में कमजोर बूथ की संख्या कम थी जो साल 2019 के चुनाव में बढ़ गई और आज वो संख्या पहले से अधिक है. पार्टी के नजरिए से जो बूथ कमजोर हैं. उनमें अधिकतर बूथ अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्रों में ही है.

BJP plans to strengthen booth for upcoming elections
बीजेपी सांसदों को मिली बूथ मजबूत करने की जिम्मेदारी

जयपुर शहर संसदीय क्षेत्र का ही उदाहरण ले लें तो साल 2014 में भाजपा ने यहां महज 37 अति कमजोर बूथ चिन्हित किए थे, जिनकी संख्या 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान 142 पहुंच गई. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि इन कमजोर बूथ में मतदाताओं का वोटिंग प्रतिशत साल 2014 में 40 से 55 प्रतिशत ही था. 2019 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 80 से 90 प्रतिशत तक हो गया है. हालांकि साल 2014 की तुलना में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सांसद को करीब 1 लाख वोट अधिक मिले थे, लेकिन बढ़े हुए वोट दूसरे क्षेत्रों के हैं. आज जयपुर शहर संसदीय क्षेत्र में 146 अति कमजोर भाजपा के बूथ हैं.

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राजस्थान में 24 सांसदों को 2400 कमजोर बूथों की मिली जिम्मेदारी: राजस्थान में भाजपा के 24 लोकसभा सांसद हैं जिन्हें हाल ही में बूथ सशक्तिकरण अभियान के तहत 240 कमजोर बूथों को मजबूत करने का टारगेट दिया गया (BJP MPs given target to empowerment booth) है. हर सांसद के क्षेत्र में कमजोर 100 बूथ की सूची पार्टी ने सौंपी है, जिन्हें विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए भाजपा के लिहाज से मजबूत करना है. सांसदों की परेशानी यह है की जो सूची उन्हें मिली है उनमें अधिकतर कमजोर बूथ उन इलाकों में है जहां अल्पसंख्यक आबादी ज्यादा है और भाजपा जमीनी स्तर पर कमजोर स्थिति में है.

अब सांसद स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं की मदद से इन कमजोर बूथ को मजबूत करने में जुटे हैं. जयपुर शहर सांसद रामचरण बोहरा ने तो 146 कमजोर बूथों को मजबूत करने की जिम्मेदारी पार्टी से ली है. इसके लिए इन क्षेत्रों में 40 वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारियां भी दी गई है और खुद बोहरा इन कमजोर बूथ में आने वाले परिवारों से संपर्क के लिए घर-घर जनसंपर्क करेंगे.

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अल्पसंख्यक कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक, सेंध लगाना मुश्किल: राजनीति में अल्पसंख्यक वोटर कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है. यही कारण है कि जयपुर शहर में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने किशनपोल और आदर्श नगर विधानसभा क्षेत्र में अल्पसंख्यक प्रत्याशियों को ही टिकट दिया जबकि भाजपा ने पूरे जयपुर शहर के किसी भी विधानसभा सीट पर अल्पसंख्यक प्रत्याशी को मौका नहीं दिया. आलम यह रहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में 200 विधानसभा सीटों में से एक मात्र यूनुस खान को ही बीजेपी ने टिकट दिया जो अल्पसंख्यक कोटे से आते हैं. ऐसे में अल्पसंख्यकों मतदाताओं का झुकाव बीजेपी की तरफ ज्यादा ना रहकर उन राजनीतिक दलों की तरफ रहा जो चुनावों में टिकट के माध्यम से अल्पसंख्यकों को राजनीतिक भागीदारी देते रहे हैं.

पढ़ें: शासन और संगठन में प्रयोगों के लिए भाजपा की प्रयोगशाला है गुजरात: नड्डा

केंद्र की योजनाओं के जरिए अल्पसंख्यकों को पार्टी से जोड़ने पर फोकस: सांसदों को जो जिम्मेदारी मिली है उसे पूरा करने में काफी पसीना बहाना पड़ेगा. लेकिन उसके बाद भी परिणाम सुखद रहें इसकी संभावना कम ही है. हालांकि पिछले 8 साल में केंद्र की मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए जो भी कल्याणकारी फैसले और योजनाएं शुरू की हैं, उन्हीं को अब भाजपा के कार्यकर्ता इन कमजोर बूथ वाले क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों तक लेकर जा रहे हैं. वहीं पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे के जरिए भी कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश भाजपा कर रही है लेकिन उसमें कितनी सफलता मिलेगी यह तो समय ही बताएगा.

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