जयपुर. प्रदेश में राजसमंद, सहाड़ा और सुजानगढ़ सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए 17 अप्रैल को मतदान होना है. उपचुनाव भले ही छोटा है, लेकिन साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस उपचुनाव को सत्ता के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है. इस बार उपचुनाव में ऐसे कई मुद्दे रहे जिससे भाजपा भयभीत है, तो वहीं कुछ मुद्दें ऐसे भी है जो कांग्रेस को परेशान कर सकते हैं.
ये हैं मुद्दे
नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया का महाराणा प्रताप को लेकर आए विवादित शब्दों का मामला प्रमुख है. हालांकि, गुलाबचंद कटारिया ने अपने शब्दों के लिए सार्वजनिक रूप से 2 बार माफी मांग ली है, वहीं यह भी साफ है कि उन्होंने कुंवारिया जनसभा में जो भी कुछ बोला उसका भावार्थ महाराणा प्रताप की वीरता और त्याग को बताना था, लेकिन उसके लिए शब्दों का चयन गलत कर लिया गया, इससे राजपूत समाज नाराज है. कोई पूर्व में एक कार्यक्रम में महाराणा प्रताप के मोमेंटो को नीचे धरातल पर रखने के मामले में भी राजपूत समाज ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का विरोध किया था. अब इस उपचुनाव में भाजपा को इसी बात की चिंता है.
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उप चुनाव प्रक्रिया में प्रचार से वसुंधरा राजे की दूरी भाजपा के लिए दूसरी बड़ी परेशानी बन सकता है, हालांकि वसुंधरा राजे निजी कारणों से चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हुईं, लेकिन कांग्रेस के नेता इसे भाजपा की फूट के नाम पर भुनाने की भरपूर कोशिश कर चुके हैं. भाजपा इसे चुनाव से जुड़ा कोई मुद्दा नहीं मानती. पार्टी नेता यह भी चुके हैं कि वसुंधरा राजे भाजपा की वरिष्ठ नेता हैं और सबकी सम्मानीय भी हैं. राजे अपनी बहू निहारिका के खराब स्वास्थ्य के चलते उपचुनाव से दूर रहे लेकिन सियासी गलियारों में इसे खेमेबाजी के रूप में देखा जा रहा है.
लादू लाल पितलिया मामला भी इस उपचुनाव में बड़ा सियासी फैक्टर बन गया है. खासतौर पर सहाड़ा सीट पर जिस तरह पिपलिया ने निर्दलीय के रूप में पर्चा दाखिल किया और फिर वापस उठाने के बाद ऑडियो वायरल हुए, वो चर्चा में रहे. हालांकि बाद में नामांकन पत्र वापस ले लिया गया, लेकिन कांग्रेस की ओर से अमित शाह और भाजपा पर कई आरोप भी लगाए गए. सचेतक जोगेश्वर गर्ग का एक ऑडियो भी वायरल हुआ, जिसकी उन्होंने स्वयं पुष्टि कर ली जो भाजपा के लिए नुकसानदायक था. खैर सतीश पूनिया के साथ मीडिया के सामने आकर पितलिया ने इसका पटाक्षेप तो कर दिया, लेकिन उसके बाद उन्हें होम क्वॉरेंटाइन का नोटिस मिलना और कोरोना नेगेटिव आने के बाद भी चुनाव प्रचार में शामिल नहीं होना चर्चा का विषय रहा, जो सीधे तौर पर भाजपा के लिए यहां सियासी फायदे का सौदा शायद ही साबित हो. वहीं, कांग्रेस इसे अपने लिए फायदे का सौदा मान रही है. हालांकि, चुनाव प्रचार के अंतिम दिन अंत में पितलिया कुछ समय के लिए चुनाव प्रचार करते नजर आए, लेकिन सियासी गलियारों में उसे महज खानापूर्ति कहा जा रहा है.
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महुआ में पुजारी की मौत का प्रकरण भी इस उपचुनाव में सियासी रूप से एक बड़ा मुद्दा माना जा सकता है. हालांकि, तीनों उपचुनाव क्षेत्रों से इसका कोई ताल्लुक नहीं है, लेकिन मंदिर माफी की जमीन से अतिक्रमण हटाने को लेकर भाजपा ने जो आक्रमक रुख अपनाया उसमें सरकार को समझौते के लिए आगे आना पड़ा. राज्य सरकार का डैमेज कंट्रोल कहा जा सकता है, लेकिन इस पूरे प्रकरण के बाद उपचुनाव में ब्राह्मण समाज के वोटों का किसे फायदा होगा इस पर भी दोनों ही दलों की नजर है, लेकिन भाजपा के नेता ज्यादा आश्वस्त हैं.
बारां दंगे भी इस उपचुनाव के दौरान ही हुए हैं, जिसको लेकर भाजपा ने प्रदेश सरकार पर जमकर जुबानी हमला भी बोला और मामला राजभवन तक भी लेकर गई. हालांकि, दंगे होने के बाद उस पर कंट्रोल करने में राज्य सरकार की प्रभावी भूमिका रही, लेकिन भाजपा ने इस पूरे घटनाक्रम को लेकर जिस प्रकार से सियासी बयानबाजी की वह भी कहीं ना कहीं राजनीतिक हथियार के रूप में देखी जा रही है.
पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा के नाथी का बाड़ा के बयान से जुड़े वायरल वीडियो का मामला भी इसी उपचुनाव के दौरान चर्चाओं में आया. भाजपा के छोटे से लेकर बड़े नेता इस मामले में आक्रमक दिखाई दिए और डोटासरा पर जुबानी हमला भी बोला. वहीं, कर्मचारी संगठनों ने डोटासरा का पुतला भी फूंका. भाजपा को लगता है की जिस प्रकार की भाषा शिक्षा मंत्री और प्रदेश कांग्रेस के मुखिया की रही उससे कर्मचारी वर्ग आहत है. खासतौर पर शिक्षक जो इस उपचुनाव में कांग्रेस के लिए परेशानी बनेंगे.
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सरकार में अटकी राजनीतिक नियुक्ति इस उपचुनाव में बड़ा विषय मानी जा रही है. भाजपा को लगता है सरकारी नियुक्तियां नहीं होने से कांग्रेस और सरकार के भीतर ही असंतोष है और यह असंतोष कई नेताओं के बयानों में साफ तौर पर चलता है उसका फायदा उपचुनाव में भाजपा को ही होगा, यह भाजपा का सोचना है.
दरअसल, यह वो मुद्दे हैं जो उपचुनाव के दौरान प्रदेश में किसी ना किसी घटनाक्रम या मामले को लेकर हावी रहे और प्रदेश की सियासत इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आई. हालांकि, इनमें से कौनसा मुद्दा किस पार्टी के लिए फायदेमंद और किसके लिए सियासी रूप से घाटे का सौदा साबित होगा, यह तो 2 मई को उपचुनाव के आने वाले परिणाम के बाद ही साफ हो पाएगा.