जयपुर. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों की ओर से कानून बनाने जाने के ऐलान के बाद पूरे देश में इन दिनों लव जिहाद को लेकर खासी चर्चा है. राजस्थान के मुख्यमंत्री लव जिहाद शब्द को भाजपा का इजाद किया हुआ शब्द बता रहे हैं. लेकिन, आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि राजस्थान की तत्कालीन भजपा सरकार करीब 14 साल पहले ही विधानसभा में इस तरह का विधेयक पास करवाकर उसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेज चुकी है. राजस्थान सरकार की ओर से पारित इस बिल को "राजस्थान धर्म स्वतंत्रता विधेयक 2008" नाम दिया गया है. इसमें जबरन या प्रलोभन के जरिए धर्म परिवर्तन करने वालों के खिलाफ 3 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.
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दरअसल, राजस्थान सरकार 2006 में इस बिल को तैयार करके विधानसभा से पारित करवा चुकी है, जिसे उस समय हंगामे के बीच राजस्थान विधानसभा ने पास कर दिया. लेकिन, 2 साल बाद भी जब तत्कालीन राज्यपाल से इसकी मंजूरी नहीं मिली और इसके संवैधानिक प्रारूप पर ही सवाल उठने लगे तो तत्कालीन वसुंधरा राज्य सरकार ने दूसरी बार नया बिल लाकर फिर से इस विषय को विधानसभा में नए रंग रूप में पेश किया और उसे भी विपक्ष के बायकाट के बावजूद बहुमत के साथ पारित करवा दिया.
कांग्रेस विधायकों ने बाद में इसके प्रावधानों के दुरुपयोग होने की आशंका को लेकर राज्यपाल के साथ ही राष्ट्रपति तक को ज्ञापन भेजा था. वहीं, दूसरी तरफ सत्ता में रहने के दौरान राजभवन से लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय और फिर राष्ट्रपति तक से जल्दी मंजूर करवाने की वसुंधरा राजे सरकार ने भी गुहार लगानी शुरू कर दी, हालांकि 21 मार्च 2008 में राज्य सरकार द्वारा पुराने विधायक के स्थान पर नया विधेयक पारित किए जाने के बाद उसे भी राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया, लेकिन तब से लेकर अब तक इसकी मंजूरी नहीं हो पाई. तो कभी राष्ट्रपति भवन तो कभी केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा टिप्पणी मांगी जाती है. अभी गृह मंत्रालय में ये विधेयक अटका हुआ है.
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हालांकि बार-बार इस विधेयक को लेकर उठे सवालों पर राजस्थान सरकार की तरफ से उस समय यह सफाई भी दी गई कि हिमाचल प्रदेश में लागू कानून के आधार पर ही विधायक बनाया गया है, जिसमें बिना जिला कलेक्टर की मंजूरी के धर्म परिवर्तन नहीं हो सकेगा. प्रावधान बनाया गया कि यदि कोई व्यक्ति स्वयं अपनी इच्छा से धर्म बदल रहा है तो कलेक्टर को 30 दिन के अंदर इसकी जानकारी देनी होगी. ऐसा नहीं करने पर धर्म परिवर्तन करने वाले पर जुर्माना लगाया जा सकेगा. लेकिन, इस तरीके की कोई सफाई अब तक इसे मंजूरी देने की राह में रोड़े खत्म नहीं कर पाई है.
बिल में ये था प्रावधान
तत्कालीन वसुंधरा राज्य सरकार द्वारा पास किए गए इस विधेयक में जबरन अथवा प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने को दंडनीय एवं गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रखते हुए 1 से 3 साल तक की सजा और 25 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया था. साथ ही ये वयस्क महिला अथवा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के धर्म परिवर्तन करवाने पर 2 से 5 साल की सजा और 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान था. इस तरह करवाए गए धर्म परिवर्तन को मान्यता भी नहीं मिलने की बात कही गई है. विधेयक में कहा गया कि धर्म परिवर्तन करने का इच्छुक व्यक्ति कम से कम 30 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट को सूचना देगा, किंतु मूल धर्म में वापस लौटने पर सूचना देने की कोई जरूरत नहीं है.
इस तरह के प्रावधानों के चलते और मूल धर्म में लौटने संबंधी इसी प्रावधान पर ऐतराज उठने लगा. उस समय आरोप लगा कि ये प्रावधान हिंदूवादी संगठनों द्वारा घर वापसी कार्यक्रम के तहत चलाए जाने वाले धर्म परिवर्तन अभियान को मदद देने के लिए किया गया है. इस बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय और अटॉर्नी जनरल ने फिर से इस पर आपत्ति लगा दी. दशकों से यह बिल अभी भी मंजूरी के इंतजार में है. विधानसभा में पारित विधेयक तो अब तक कानून का रूप नहीं ले सका है, लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार के कानून लाने के बाद राजस्थान के बीजेपी के नेता भी इस तरह के कानून बनाने की मांग करने लगे हैं. उनका कहना है कि उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, जो कभी इस बिल को मंजूरी देने के लिए गंभीर नहीं रही.