जयपुर. 3 मई को कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दूसरे भाग का अंत हो जाएगा. इस बीच रेड जोन में आने वाले जयपुर शहर में गरीब और मजदूर वर्ग की स्थिति को जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम विश्वकर्मा औद्योगिक क्षेत्र पहुंची. बता दें कि इस क्षेत्र में बड़ी तादाद में छोटी और बड़ी इकाइयां स्थापित हैं. इनमें बड़े पैमाने पर प्रवासी श्रमिक काम करते हैं. यह मजदूर आसपास के इलाकों में ही किराए के कमरे लेकर गुजर बसर भी करते हैं. अब काम बंद होने से इनके आगे आर्थिक संकट खड़ा हो चुका है. इन हालात में दो जून की रोटी जुटा पाना इन लोगों के लिए मुश्किल काम हो चुका है.
कलेक्टर के दावे खोखले...
ईटीवी भारत की टीम ने जब वीकेआई इंडस्ट्रियल एरिया का नजारा देखा तो समझ में आया कि, यहां से 6 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद जिला कलेक्ट्रेट पर बैठे कलेक्टर साहब के दावे कितने खोखले हैं. जयपुर जिला प्रशासन के मुताबिक करीब 2.50 लाख लोगों को रोजाना खाना उपलब्ध करवाया जा रहा है और कोई भी भूखा नहीं रहे इसके लिए सरकार प्रतिबद्ध है. लेकिन जब लोगों से पूछा गया तो पता चला कि यह सिर्फ दावे किए जा रहे हैं, इसकी जमीनी हकीकत कुछ और है. मजदूरों का कहना है कि प्रशासन की ओर से थोड़ी मात्रा में मिलने वाला खाना भी बड़ी मशक्कत के बाद जुटाया जाता है.
साहब, किसी तरह घर पहुंचा दो...
वहां रह रहे एक बुजुर्ग के मुताबिक कई बार हेल्पलाइन पर फोन करने के बावजूद उन्हें राहत नहीं मिली. इसके बाद नजदीक में सामाजिक कार्यकर्ताओं की तरफ से बांटे जाने वाले भोजन से ही उनका गुजारा हो रहा है. इस दौरान सामने आए प्रवासी श्रमिकों ने अपनी फाकाकशी के किस्से बयां किए और ईटीवी भारत से गुहार लगाते हुए कहा कि उन्हें किसी तरह से घर भिजवा दिया जाए, वरना भूखे ही मर जाएंगे. लोगों का कहना है कि संसाधन नहीं होने के कारण वह लोग फंस चुके हैं. ऐसे में सरकार ही उनकी उम्मीद है जो जल्द साधन उपलब्ध करवाकर उन्हें घर भिजवा दें.
हेल्पलाइन पर नहीं मिल रही राहत
वहीं, जब इलाके के किराना व्यापारी से ईटीवी भारत की टीम ने बात की तो पता लगा कि 70 फीसदी कारोबार कम हो चुका है. उनका कहना है कि जो लोग आ रहे हैं वह भी ज्यादातर उधार में सामान लेकर जा रहे हैं. इस दौरान कुछ श्रमिकों ने यह भी बताया कि सरकारी हेल्पलाइन या तो व्यस्त आती हैं या फिर किस्मत से फोन लग जाए तो नंबर पर नंबर मिलते हैं, जहां फोन करने के बावजूद मदद नहीं मिलती. इन प्रवासी श्रमिकों की वर्तमान स्थिति भयावह प्रतीत होती है. ऐसे में इन लोगों की मदद के लिए लगाए गए संसाधनों की कमियां और उनकी वास्तविक स्थिति का भी अंदाजा इन लोगों की बातों में साफ पता चलता है.
भूख के कारण हम मर रहें हैं...
जयपुर शहर में ही अलग-अलग हिस्सों में स्थापित औद्योगिक इकाइयों में इस वक्त 8 से 10 हजार प्रवासी श्रमिक फंसे हुए हैं. इन श्रमिकों के हालात ये हैं कि इनमें से अधिकांश को सरकार की तरफ से मिलने वाली खाने और अन्य सुविधाओं का अंदाजा तक नहीं है. वहीं, अधिकांश ऐसे भी हैं जो सरकार से गुहार लगाकर थक चुके हैं. श्रमिकों का बस यही कहना है कि भूख के कारण हम मर रहे हैं, हमें घर भिजवा दो.