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प्रदेश की बहुओं को पंचायत चुनाव और नौकरी में आरक्षण का लाभ नहींः HC

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रदेश की बहुओं को पंचायत चुनाव और नौकरी में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है.

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राजस्थान हाईकोर्ट
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Published : Sep 24, 2020, 8:41 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रदेश में विवाह कर बसने वाली बाहरी राज्यों की महिलाओं को पंचायत चुनाव और सरकारी नौकरी में एससी और ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है. भले ही वह अपने दूसरे राज्य में भी समान आरक्षित वर्ग की रही हो. इसके साथ ही अदालत ने अन्य सरकारी योजनाओं को लेकर प्रवासियों को जारी होने वाले जाति प्रमाण पत्र में यह अंकित करने को कहा है कि यह प्रमाण पत्र सरकारी नौकरी और चुनाव लड़ने के लिए मान्य नहीं होगा.

न्यायाधीश सतीश कुमार शर्मा ने यह आदेश आशा देवी और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए दिए. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि खंडपीठ की ओर से पूर्व में दिए आदेश के तहत राज्य सरकार विवाह कर प्रदेश में आई महिलाओं को जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए बाध्य है, लेकिन इसका लाभ नौकरी और चुनाव में ना होकर केवल सीमित कार्यों के लिए ही हो सकता है. इसलिए इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए इन पर इसका अंकन किया जाना जरूरी है.

पढ़ें- अभियोजन निदेशालय के कर्मचारियों को दिए अतिरिक्त वेतन की वसूली पर रोक

याचिकाओं में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं का जन्म दूसरे राज्यों में हुआ था, जहां वे एससी और ओबीसी वर्ग में आती थी. वहीं बाद में उनका विवाह प्रदेश में समान वर्ग वाले व्यक्ति से हो गया. ऐसे में उन्हें अन्य सरकारी लाभों और पंचायत चुनाव में भाग लेने के लिए जाति प्रमाण पत्र जारी किया जाए.

इसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका है कि आरक्षण का लाभ केवल प्रदेश के मूल निवासी को ही मिल सकता है. चाहे ऐसा व्यक्ति दोनों राज्यों में एक ही वर्ग में क्यों नहीं आता हो. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने याचिकाओं को खारिज कर राज्य सरकार को कहा है कि वह अन्य सीमित लाभों के लिए ही इन प्रमाण पत्रों को जारी करें.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रदेश में विवाह कर बसने वाली बाहरी राज्यों की महिलाओं को पंचायत चुनाव और सरकारी नौकरी में एससी और ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है. भले ही वह अपने दूसरे राज्य में भी समान आरक्षित वर्ग की रही हो. इसके साथ ही अदालत ने अन्य सरकारी योजनाओं को लेकर प्रवासियों को जारी होने वाले जाति प्रमाण पत्र में यह अंकित करने को कहा है कि यह प्रमाण पत्र सरकारी नौकरी और चुनाव लड़ने के लिए मान्य नहीं होगा.

न्यायाधीश सतीश कुमार शर्मा ने यह आदेश आशा देवी और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए दिए. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि खंडपीठ की ओर से पूर्व में दिए आदेश के तहत राज्य सरकार विवाह कर प्रदेश में आई महिलाओं को जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए बाध्य है, लेकिन इसका लाभ नौकरी और चुनाव में ना होकर केवल सीमित कार्यों के लिए ही हो सकता है. इसलिए इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए इन पर इसका अंकन किया जाना जरूरी है.

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याचिकाओं में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं का जन्म दूसरे राज्यों में हुआ था, जहां वे एससी और ओबीसी वर्ग में आती थी. वहीं बाद में उनका विवाह प्रदेश में समान वर्ग वाले व्यक्ति से हो गया. ऐसे में उन्हें अन्य सरकारी लाभों और पंचायत चुनाव में भाग लेने के लिए जाति प्रमाण पत्र जारी किया जाए.

इसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका है कि आरक्षण का लाभ केवल प्रदेश के मूल निवासी को ही मिल सकता है. चाहे ऐसा व्यक्ति दोनों राज्यों में एक ही वर्ग में क्यों नहीं आता हो. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने याचिकाओं को खारिज कर राज्य सरकार को कहा है कि वह अन्य सीमित लाभों के लिए ही इन प्रमाण पत्रों को जारी करें.

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