देवघर/ जयपुर. सावन में कावरीयों के बोलबम-बोलबम के गुंज से पूरा देवघर भक्तिमय हो गया है. पुराणों और शास्त्रों में बाबा बैद्यनाथ के बारे में एक दिलचस्प लोकोक्ति यह है कि अगर देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता नहीं रोका होता, तो त्रेता युग में बाबा बैद्यनाथ लंका में स्थापित हो जाते.
शास्त्रों के मुताबिक, त्रेता युग में जब रावण भोलेनाथ को प्रसन्न कर लंका लेकर चला था. उसी वक्त स्वयं देवी कामाख्या नील पर्वत के चक्र पर सावर होकर रावण का रास्ता रोक लिया था. माता पार्वती के ह्रदय स्थल यानी ह्रदय पीठ बाबाधाम में शिवलिंग को स्थापित कर दिया था. यही वजह है कि देवनगरी में बाबा बैद्यनाथ के मंदिर के ठीक बाहर स्थापित उस चक्र की भी बड़ी ही आस्था भाव से पूजा अर्चना की जाती है. मना जाता है कि भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए नीलचक्र की पूजा भी उतनी ही जरूरी है जितनी महादेव की.
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मां कामाख्या के इस कार्य से देवलोक के तमाम देवताओं ने राहत की सांस ली थी. बता दें कि बैद्यनाथ धाम के मंदिर प्रांगण में 22 देवी देवताओं के मंदिर स्थापित हैं.