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लंका में स्थापित होते बाबा बैद्यनाथ अगर देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता ना रोका होता - RAJASTHAN

सावन के पावन महीनें में बाबा बैद्यनाथ के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में शिवभक्त रोजाना देवघर आ रहे हैं. शास्त्रों में बताया गया है कि अगर मां कामाख्या ने रावण का रास्ता नहीं रोका होता, तो बाबा बैद्यनाथ लंका में स्थापित हो जाते.

लंका में स्थापित होते बाबा बैद्यनाथ अगर देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता ना रोका होता.
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Published : Jul 22, 2019, 2:03 PM IST

देवघर/ जयपुर. सावन में कावरीयों के बोलबम-बोलबम के गुंज से पूरा देवघर भक्तिमय हो गया है. पुराणों और शास्त्रों में बाबा बैद्यनाथ के बारे में एक दिलचस्प लोकोक्ति यह है कि अगर देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता नहीं रोका होता, तो त्रेता युग में बाबा बैद्यनाथ लंका में स्थापित हो जाते.

लंका में स्थापित होते बाबा बैद्यनाथ अगर देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता ना रोका होता.

शास्त्रों के मुताबिक, त्रेता युग में जब रावण भोलेनाथ को प्रसन्न कर लंका लेकर चला था. उसी वक्त स्वयं देवी कामाख्या नील पर्वत के चक्र पर सावर होकर रावण का रास्ता रोक लिया था. माता पार्वती के ह्रदय स्थल यानी ह्रदय पीठ बाबाधाम में शिवलिंग को स्थापित कर दिया था. यही वजह है कि देवनगरी में बाबा बैद्यनाथ के मंदिर के ठीक बाहर स्थापित उस चक्र की भी बड़ी ही आस्था भाव से पूजा अर्चना की जाती है. मना जाता है कि भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए नीलचक्र की पूजा भी उतनी ही जरूरी है जितनी महादेव की.

ये भी पढ़ें- कोटा को पांच साल से कम समय में मिल जाएगा नया एयरपोर्ट : ओम बिरला

मां कामाख्या के इस कार्य से देवलोक के तमाम देवताओं ने राहत की सांस ली थी. बता दें कि बैद्यनाथ धाम के मंदिर प्रांगण में 22 देवी देवताओं के मंदिर स्थापित हैं.

देवघर/ जयपुर. सावन में कावरीयों के बोलबम-बोलबम के गुंज से पूरा देवघर भक्तिमय हो गया है. पुराणों और शास्त्रों में बाबा बैद्यनाथ के बारे में एक दिलचस्प लोकोक्ति यह है कि अगर देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता नहीं रोका होता, तो त्रेता युग में बाबा बैद्यनाथ लंका में स्थापित हो जाते.

लंका में स्थापित होते बाबा बैद्यनाथ अगर देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता ना रोका होता.

शास्त्रों के मुताबिक, त्रेता युग में जब रावण भोलेनाथ को प्रसन्न कर लंका लेकर चला था. उसी वक्त स्वयं देवी कामाख्या नील पर्वत के चक्र पर सावर होकर रावण का रास्ता रोक लिया था. माता पार्वती के ह्रदय स्थल यानी ह्रदय पीठ बाबाधाम में शिवलिंग को स्थापित कर दिया था. यही वजह है कि देवनगरी में बाबा बैद्यनाथ के मंदिर के ठीक बाहर स्थापित उस चक्र की भी बड़ी ही आस्था भाव से पूजा अर्चना की जाती है. मना जाता है कि भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए नीलचक्र की पूजा भी उतनी ही जरूरी है जितनी महादेव की.

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मां कामाख्या के इस कार्य से देवलोक के तमाम देवताओं ने राहत की सांस ली थी. बता दें कि बैद्यनाथ धाम के मंदिर प्रांगण में 22 देवी देवताओं के मंदिर स्थापित हैं.

Intro:देवघर 'नीलचक्र' पर सावर देवी ने रोका था 'रावण का रास्ता', वरना लंका में स्थापित हो जाते रावणेश्वर महादेव।


Body:एंकर- कहते हैं अगर देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता नहीं रोका होता तो, त्रेता युग मे महादेव बाबा बैद्यनाथ लंका में स्थापित हो जाते। शास्त्रों के मुताबिक, त्रेता युग मे जब रावण भोलेनाथ को प्रसन्न कर लंका लेकर चला तब, नील पर्वत के चक्र पर सावर होकर स्वयं देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता रोक लिया था। आए माता पार्वती के ह्रदय स्थल यानी, ह्रदय पीठ बाबाधाम में शिवलिंग को स्थापित कर दिया था। माता कामाख्या के इस कार्य से देवलोक के तमाम देवताओं ने राहत की सांस ली थी। यही वजह है कि, देवनगरी में बाबा बैद्यनाथ के मंदिर के ठीक बाहर स्थापित उस चक्र की भी बड़े ही आस्था भाव से पूजा अर्चना की जाती है।


Conclusion:आपको बता दें कि, बैधनाथ धाम के मंदिर प्रांगण में 22 देवी देवताओं के मंदिर स्थापित हैं लेकिन, भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए उन तमाम नीलचक्र की पूजा भी उतनी ही ज़रूरी है जितनी महादेव की।

बाइट दुर्लभ मिश्रा, तीर्थ पुरोहित बाबा मंदिर।
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