जयपुर. आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. आजादी के यादगार 75 साल से जुड़े जयपुर के सवाई मानसिंह टाउन हॉल या राजस्थान की पुरानी विधानसभा के इतिहास को भी समझना जरूरी है. इस इमारत का इतिहास जितना रोचक रहा है, आजादी के बाद के किस्से भी उतने ही दिलचस्प हैं. कैसे इस इमारत को एक महल से विधानसभा में तब्दील किया गया? कैसे इस इमारत में ही जयपुर को राजस्थान की राजधानी बनाने का फैसला लिया गया और कैसे करीब साढ़े 4 दशक तक इस विधानसभा से राजस्थान की जनता का हर मुद्दा जनप्रतिनिधियों ने करीब से देखा. पुरानी विधानसभा को हालांकि सरकार एक म्यूजियम के रूप में स्थापित करने का फैसला ले चुकी है. आइए सुनते हैं अतीत के झरोखों से इस इमारत से जुड़े इतिहास के किस्से...
पुरानी विधानसभा का इतिहास : जयपुर शहर की बड़ी चौपड़ पर हवा महल के ठीक बगल में स्थित इमारत का नाम है सवाई मानसिंह टाउन हॉल. आजादी के पहले जयपुर की जनता इसे नए महल के नाम से पहचानती थी. साल 1880 में महाराजा राम सिंह ने अपनी महारानी के लिए हवा महल के बगल में खाली पड़ी जगह पर महल के निर्माण का फैसला किया था. हालांकि राजा राम सिंह की माता चाहती थीं कि इस जगह पर कोई भव्य मंदिर तैयार हो. महाराजा रामसिंह ने बाद में उनकी इच्छा पर मृत्यु उपरांत सवाई मानसिंह टाउन हॉल (Sawai Mansingh Town Hall) के सामने रामचंद्र जी का मंदिर बनाया, जहां कृष्ण जी की मूर्ति भी स्थापित की गई.
1880 से 1883 तक राजा राम सिंह की पत्नी चंद्रावती ने इस काम को आगे बढ़ाने का फैसला लिया, परंतु उनका भी निधन हो गया. आखिरकार महाराजा राम सिंह ने इस इमारत को आधा-अधूरा छोड़कर अपना फैसला त्याग दिया. उनके बाद महाराजा माधो सिंह ने इस काम को पूरा किया और इस इमारत को एक महल का रूप दिया. इस निर्माण कार्य में सवाई माधो सिंह ने अंग्रेजी वास्तुकार कर्नल जैकब की मदद ली थी, जिन्होंने सवाई मानसिंह टाउन हॉल को राजस्थानी और भारतीय शैली के अनुसार बेहतरीन इमारत के रूप में ढालने का काम किया. यही वजह थी कि हवा महल के बगल में बनी बिल्डिंग को लोग नए महल के नाम से जानते थे.
दौर बदला और सवाई मानसिंह टाउन हॉल को जयपुर के राजनीतिक फैसलों के केंद्र के रूप में जाना जाने लगा. शुरुआत में यहां काउंसिल की बैठकों का आयोजन किया गया. इसमें रियासत काल में अंग्रेज अधिकारी और जयपुर दरबार से जुड़े लोग फैसले लिया करते थे. हीरालाल शास्त्री (Changemakers) की आवाज पर इस काउंसिल में जनप्रतिनिधियों को शामिल किया गया, जिसमें जयपुर शहर की जुड़ी रियासतों के सामंतों के बाद शहर के गणमान्य लोगों को भी जगह दी गई. आजादी के बाद इसी इमारत को राजस्थान की विधानसभा (Old Vidhansabha of Rajasthan) के रूप में पहचान मिली.
यहीं पर फैसला हुआ कि जयपुर होगी राजस्थान की राजधानी: सवाई मानसिंह टाउन हॉल में राजपूताना की जयपुर रियासत काउंसिल के अलावा हाई कोर्ट भी लगा करती थी. आजादी के बाद जब राजस्थान में राजधानी के लिए शहरों को विकल्प के रूप में तलाशा गया तब जोधपुर, उदयपुर, कोटा, अजमेर और जयपुर में से किस शहर का चुनाव हो, इसे लेकर एक आयोग का गठन किया गया था. शुरुआत में अजमेर को राजधानी बनाने की बात सामने आई थी. लेकिन अजमेर शहर में बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं (History of Sawai Mansingh Town Hall) था, जहां विधानसभा और सचिवालय का संचालन किया जा सके. ऐसे में विकल्प तलाशने के लिए गठित फजल आयोग की टीम जयपुर आई. जिन्हें टी होम पार्टी के लिए सवाई मानसिंह टाउन हॉल के ऊपर वाले गलियारे में आमंत्रित किया गया.
तब के जानकार बताते हैं कि इस कमेटी को गलियारे में से दिखी जयपुर की तस्वीरें खासा रास आईं. एक तरफ बरसात के बीच गढ़ गणेश के दर्शन, तो दूसरी ओर शहर की आबादी का नजारा यहां से साफ दिख रहा था. ऐसे में फजल कमेटी को विधानसभा के लिए सवाई मानसिंह टाउन हॉल एक उपयुक्त इमारत के रूप में नज़र आया. इसके बाद यह फैसला लिया गया कि जयपुर को राजस्थान की राजधानी बनाया जाएगा. साथ ही राजधानी के लोगों के लिए पेयजल की सप्लाई रामगढ़ बांध से की जाएगी.
जनप्रतिनिधि झरोखों से देखते थे जनता को: जयपुर की पुरानी विधानसभा कई ऐतिहासिक पलों की गवाह रही है. सर मिर्जा इस्माइल ने एक वैश्विक साहित्य सम्मेलन का आयोजन साल 1945 में इसी जगह पर किया था. जिसमें शिरकत करने के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरोजिनी नायडू भी जयपुर आए और एक-एक सत्र में भाग लिया. यही वजह थी कि आजादी से पहले ही सवाई मानसिंह टाउन हॉल ने देशभर के अखबारों में जगह बना ली थी. साल 1952 में नरोत्तम लाल जोशी की अगुवाई में पहली बार विधानसभा के रूप में 176 सदस्य इसी सवाई मानसिंह टाउन हॉल के सभागार में आयोजित बैठक में शामिल हुए थे. इसके बाद वर्तमान राजनीति के दौर में इस विधानसभा ने अपनी पहचान कायम की है. जहां सभाओं के बीच जनता अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करती और ऊपर बने झरोखों से जनप्रतिनिधि जनता के मुद्दों को देखते-समझते.
जयनारायण व्यास, बरकतुल्लाह खान, मोहनलाल सुखाड़िया, हरिदेव जोशी, शिवचरण माथुर और भैरों सिंह शेखावत (Changemakers) जैसे नेताओं ने भी इस विधानसभा में जनता की आवाज को सुना है और फैसले लिए हैं. वहीं साल 2000 में जब ज्योति नगर में नई विधानसभा में भवन शिफ्ट हुआ, इससे पहले 2 साल के लिए अशोक गहलोत ने भी बतौर मुख्यमंत्री पुरानी विधानसभा से ही अपने कार्यकाल का एक दौर पूरा किया था. वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र सिंह बताते हैं कि 1970 में जब कर्मचारी आंदोलन को लेकर लेबर लीडर बिशन सिंह शेखावत के नेतृत्व में प्रदेशभर से लोग बड़ी चौपड़ से सिरहड्योढी पर जमा हुए, तो सरकार को उनकी मांगों के आगे झुकना पड़ा था.
इसी तरह से वे अपनी आंखों देखी घटना का जिक्र करते हुए जयपुर के सफाई कर्मियों के आंदोलन की बात करते हैं. पूरा जयपुर कचरे की सड़ांध से परेशान था, वहीं विधानसभा को घेरने के लिए एकजुट होकर सफाई कर्मी जब पहुंचे, तो उन पर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागे गए. जितेंद्र सिंह बताते हैं कि पुरानी विधानसभा के दौर में बड़ी चौपड़ हमेशा विपक्ष के आंदोलनों का केंद्र भी रहा है. यहां देश के कई दिग्गज नेताओं ने जनसभाओं को संबोधित किया है. जितेंद्र सिंह कहते हैं कि पंडित जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री भी यहां सभा में भाषण देने के लिए आए हुए हैं.
किसी दौर में बिल्लियां करती थी परेशान: वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र सिंह बताते हैं कि राजस्थान की पुरानी विधानसभा में शुरुआत से ही बिल्लियों ने स्थानीय नगर परिषद को परेशान किया हुआ था. यहां कबूतरों के जमावड़े के कारण उनके शिकार की फिराक में बिल्लियों का कुनबा इतना बढ़ गया कि सभा भवन के अंदर ही अक्सर बिल्ली के बच्चों की चहल कदमी देखी जा सकती थी. इसके बाद तत्कालीन नगर परिषद जोकि विधानसभा के नजदीक जलेब चौक में स्थित थी, वहां के अधिकारियों ने रामपुर से बिल्ली पकड़ने के एक्सपर्ट की टीम को बुलाया और बिल्लियों को पकड़ने के बाद जंगल में भी छुड़वाया. लेकिन विधानसभा परिसर के अंदर इन्हें खत्म नहीं किया जा सका, लिहाजा आज भी यहां बिल्लियों की हुकूमत क़ायम है.