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Autistic Akshay The Role Model: ऑटिस्टिक्स के रोल मॉडल अक्षय सामान्य अधिकारों से अब भी महरूम, जीत गए कानूनी जंग...फिर भी संघर्ष जारी है

प्रदेश के एक ऐसे ऑटिस्टिक शख्सियत का नाम है अक्षय भटनागर (Autism affected Akshay Bhatnagar) जिनके परिवार ने कानूनी लड़ाई लड़ उनको उनका हक दिलवाया और सालों की कठिन तपस्या के बाद उन्होंने अपने बूते प्रदेश सचिवालय के कार्मिक विभाग में कनिष्ठ लिपिक की नौकरी हासिल की. ये सब जंग तो जीत ली लेकिन एक अब भी बाकी है!

Autistic Akshay The Role Model
ऑटिस्टिक्स के रोल मॉडल अक्षय
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Published : Jun 21, 2022, 10:22 AM IST

जयपुर. पहले स्कूल , फिर कॉलेज उसके बाद खेल और सरकारी नौकरी में अपना और अपने जैसे सैकड़ों साथियों के लिए राह बना चुके ऑटिस्टिक अक्षय भटनागर (Autism affected Akshay Bhatnagar) अब सामान्य अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. कानून से तो अधिकार मिल गए , लेकिन कई बार जागरूकता के अभाव में इस युवा को भेदभाव का सामना करना पड़ता है . अक्षय और उनकी मां अब ऑटिस्टिक बच्चों के साथ होने वाले व्यवहार को लेकर समाज एवं सरकारी सिस्टम को जागरूक कर रहे हैं.

राजस्थान का पहला ऑटिस्टिक ग्रेजुएट: अक्षय भटनागर राजस्थान सचिवालय में कार्मिक विभाग के कनिष्ठ लिपिक हैं. राजस्थान के पहले ऑटिस्टिक ग्रेजुएट होने के साथ अक्षय सामान्य प्रतिभागी की तरह प्रतियोगी परीक्षा पास कर सरकारी नौकरी हासिल करने वाले न सिर्फ प्रदेश के बल्कि पूरे देश के पहले ऑर्टिस्टिक शख्स के रूप में अपनी अनूठी पहचान भी रखते हैं. अक्षय स्कूल, कॉलेज, खेल और सरकारी नौकरी के इम्तिहान में खुद को साबित कर चुके हैं. फिर भी एक कसक बाकी है. समाज में अपनी Acceptability यानी स्वीकार्यता की. इसका संघर्ष जारी है. अक्षय की मां प्रतिभा भटनागर का दर्द छलकता है. कहती हैं ऑटिज्म डिसऑर्डर के बारे में जागरूकता का अभाव है. अक्षय ने अपनी प्रतिभा के दम पर सरकारी नौकरी तो हासिल कर ली, लेकिन सहकर्मियों की अल्प जानकारी दुश्वारियां पैदा कर देती हैं.

ऑटिस्टिक्स के रोल मॉडल अक्षय

क्या है ऑटिज्म डिसऑर्डर?: अक्षय की मां प्रतिभा भटनागर कहती हैं कि अक्षय एकमात्र ऑटिस्टिक बच्चा नहीं है राजस्थान में और देश में कई बच्चे हैं जिन्हें इस तरह के डिसऑर्डर है. ऑटिज़्म को मेडिकल भाषा में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर (ASD) कहते हैं. यह डेवलपमेंटल डिसेबिलिटी है. लक्षण बचपन से ही दिखने लगते हैं. इससे प्रभावित बच्चे को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में परेशानियां आती हैं. ऑटिज़्म एक ऐसी स्थिति है जिससे पीड़ित व्यक्ति का दिमाग अन्य लोगों के दिमाग की तुलना में अलग तरीके से काम करता है, वहीं इन बच्चों में कुछ बेहद खास योग्यताएं भी होती है. जैसे वो किसी भी तरह के काम को अगर करने लगते हैं तो उससे पूरी लगन के साथ करते हैं. यही वजह है कि अक्षय ऑटिज्म डिसऑर्डर होने के बावजूद सामान्य प्रतियोगी परीक्षा पास होकर पहले ऑटिज्म डिसऑर्डर सरकारी कर्मचारी बन गया.

पढ़ें-Fathers Day 2022 : ऑटिस्टिक बेटे की खातिर छोड़ दी लाखों के पैकेज की मल्टी नेशनल कंपनी की नौकरी, अब और बच्चों को भी दे रहे ट्रेनिंग

राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान: अक्षय जैसा ऑल राउंडर ऑटिस्टिक युवक (Akshay Bhatnagar is Role Model) पूरे देश में ASD शिकार बच्चों और बड़ों के लिए मिसाल हैं. ऑटिज्म होने के बावजूद स्कूल से कॉलेज तक और फिर नौकरी हासिल करने तक असीमित प्रतिभा का लोहा मनवा चुके अक्षय को राष्ट्रीय स्तर पर कई अवॉर्ड मिल चुके हैं. देश भर में रोल मॉडल ऑटिज्म श्रेणी में स्थापित अक्षय भटनागर को 2017 में विशेष योग्यजन निदेशालय, राजस्थान सरकार की ओर से रोल मॉडल (ऑटिज्म श्रेणी) सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ अरुण चतुर्वेदी ने सम्मानित किया. 3 दिसंबर, 2018 में विश्व विकलांगता दिवस पर अक्षय को रोल मॉडल ( ऑटिज्म श्रेणी) राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया. 2019 में ही चेन्नई में एक अत्यंत प्रतिष्ठित अवार्ड केविनकेयर एबिलिटी मास्टरी अवार्ड से सम्मानित किया गया. 2019 में ही राजस्थान राज्य में लोकसभा चुनाव हेतु निर्वाचन विभाग, राजस्थान की ओर से जयपुर जिले का ब्रांड एंबेसडर मनोनीत किया गया. 2019 में ही स्वतंत्रता दिवस पर कलेक्टर ने इन्हें सम्मानित किया गया. अक्षय अब तक 4 मेडल राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक चैंपियनशिप में 2019 से 2021 तक प्राप्त कर चुके हैं. इसके साथ ही स्टेट पैरा एथलेटिक्स में अक्षय के पास छह स्वर्ण पदक हैं और 2019 से 2022 तक यह राजस्थान राज्य का शॉट पुट गोल्ड मेडलिस्ट हैं.

मां ने छोड़ी सरकारी नौकरी: बेटे अक्षय की खातिर मां ने अपने हर सपने को पीछे छोड़ दिया. ऑटिस्टिक बेटे को उसके अधिकार मिले इसके लिए मां ने सरकारी नौकरी छोड़ी . प्रतिभा बताती हैं- अक्षय चार साल का था तब पता चला की वो सामान्य नहीं ऑटिज्म का शिकार है. हमें लग गया था कि आगे का जीवन उसे विशेष योग्यजन के रूप में ही जीना होगा जो बेहद मुश्किलों भरा होगा. चूंकि बच्चे में ऑटिज्म डिसऑर्डर सामने आया तो लगा कि अब इसी पर पूरा ध्यान देना है. प्रतिभा कहती हैं कि ऑटिस्टिक के रूप में किसी बच्चे के लिए सामान्य पढ़ाई-लिखाई आसान नहीं होती. तो अपनी सरकारी नौकरी छोड़ कर अक्षय की देखभाल में जुट गई. बेटे की हौसला अफजाई के साथ समाज में उसे उसके अधिकार दिलाना भी संघर्ष पूर्ण रहा. पहले स्कूल में दाखिले को लेकर तो फिर कॉलेज में पढ़ाई के लिए लड़ना पड़ा. कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती तो जयपुर के एक कॉलेज में सामान्य बच्चों के बीच पढ़ने का मौका मिला. मां-बेटे का ये संघर्ष रंग लाया और अक्षय सामान्य प्रक्रिया के तहत प्रतियोगी परीक्षा पास कर सरकारी नौकरी हासिल करने वाला पहला ऑटिस्टिक बना.

संघर्ष अब भी जारी: प्रतिभा भटनागर कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि अक्षय की सरकारी नौकरी के साथ ही संघर्ष खत्म हो गया हो. संघर्ष अभी भी लगातार जारी है. अक्षय को ऑटिज्म है ऐसे में सामान्य लोगों के साथ सचिवालय में काम करता है कई बार अपने डिसऑर्डर की वजह से वो सामान्य लोगों की तरह रिएक्ट नही करता. किसी साथी ने अच्छे से बात नही की या उसकी कोई बात को नहीं सुना तो वह हर्ट हो जाता है. उसे लगता है कि उसकी बात को क्यों नही सुना जा रहा? अक्सर ऑटिज्म डिसऑर्डर में ये दिक्कत आती है. सहकर्मियों को इस बारे में जानकारी नहीं होती और उन्हें लगता है कि वह उन्हें परेशान करता है. ऐसे में इस बात को समझने की जरूरत है कि वह मन में किसी तरह की लाग लपेट या किसी तरह के बुरे इंटेंशन से नही कर रहा है.

सचिवालय में कर्मचारियों को किया जागरूक: प्रतिभा भटनागर ने बताया- ऑटिज्म डिसऑर्डर को कानूनी रूप से सरकारी नौकरी में आरक्षण का अधिकार मिला है तो आज अक्षय है, कल को अक्षय की तरह कई और भी बच्चे आएंगे जो ऑटिज्म डिसऑर्डर होंगे जो सरकारी नौकरी करेंगे. कर्मचारियों या अधिकारियों को इस बारे में जानकारी होना जरूरी है कि इन बच्चों के साथ में किस तरह का व्यवहार किया जाए इसलिए सचिवालय में काम करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के साथ में लगातार इस तरह की वर्कशॉप की जाएगी , ताकि वो ऑटिज्म के बारे में अधिक से अधिक जागरूक हो सकें.

फाउंडेशन ने उठाया बीड़ा: ऑटिज्म पर काम करने वाली सपोर्ट फाउंडेशन फॉर ऑटिज्म एंड डेवलपमेंटल डिसेबिलिटीज की अध्यक्ष कविता बोहरा कहती हैं कि लोगों में जागरूकता का बहुत ज्यादा अभाव है. फाउंडेशन के जरिए हम अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. इन बच्चों को सिर्फ प्यार की भाषा समझ में आती है, लोगों को इनकी इस चाह को समझना जरूरी है.

जयपुर. पहले स्कूल , फिर कॉलेज उसके बाद खेल और सरकारी नौकरी में अपना और अपने जैसे सैकड़ों साथियों के लिए राह बना चुके ऑटिस्टिक अक्षय भटनागर (Autism affected Akshay Bhatnagar) अब सामान्य अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. कानून से तो अधिकार मिल गए , लेकिन कई बार जागरूकता के अभाव में इस युवा को भेदभाव का सामना करना पड़ता है . अक्षय और उनकी मां अब ऑटिस्टिक बच्चों के साथ होने वाले व्यवहार को लेकर समाज एवं सरकारी सिस्टम को जागरूक कर रहे हैं.

राजस्थान का पहला ऑटिस्टिक ग्रेजुएट: अक्षय भटनागर राजस्थान सचिवालय में कार्मिक विभाग के कनिष्ठ लिपिक हैं. राजस्थान के पहले ऑटिस्टिक ग्रेजुएट होने के साथ अक्षय सामान्य प्रतिभागी की तरह प्रतियोगी परीक्षा पास कर सरकारी नौकरी हासिल करने वाले न सिर्फ प्रदेश के बल्कि पूरे देश के पहले ऑर्टिस्टिक शख्स के रूप में अपनी अनूठी पहचान भी रखते हैं. अक्षय स्कूल, कॉलेज, खेल और सरकारी नौकरी के इम्तिहान में खुद को साबित कर चुके हैं. फिर भी एक कसक बाकी है. समाज में अपनी Acceptability यानी स्वीकार्यता की. इसका संघर्ष जारी है. अक्षय की मां प्रतिभा भटनागर का दर्द छलकता है. कहती हैं ऑटिज्म डिसऑर्डर के बारे में जागरूकता का अभाव है. अक्षय ने अपनी प्रतिभा के दम पर सरकारी नौकरी तो हासिल कर ली, लेकिन सहकर्मियों की अल्प जानकारी दुश्वारियां पैदा कर देती हैं.

ऑटिस्टिक्स के रोल मॉडल अक्षय

क्या है ऑटिज्म डिसऑर्डर?: अक्षय की मां प्रतिभा भटनागर कहती हैं कि अक्षय एकमात्र ऑटिस्टिक बच्चा नहीं है राजस्थान में और देश में कई बच्चे हैं जिन्हें इस तरह के डिसऑर्डर है. ऑटिज़्म को मेडिकल भाषा में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर (ASD) कहते हैं. यह डेवलपमेंटल डिसेबिलिटी है. लक्षण बचपन से ही दिखने लगते हैं. इससे प्रभावित बच्चे को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में परेशानियां आती हैं. ऑटिज़्म एक ऐसी स्थिति है जिससे पीड़ित व्यक्ति का दिमाग अन्य लोगों के दिमाग की तुलना में अलग तरीके से काम करता है, वहीं इन बच्चों में कुछ बेहद खास योग्यताएं भी होती है. जैसे वो किसी भी तरह के काम को अगर करने लगते हैं तो उससे पूरी लगन के साथ करते हैं. यही वजह है कि अक्षय ऑटिज्म डिसऑर्डर होने के बावजूद सामान्य प्रतियोगी परीक्षा पास होकर पहले ऑटिज्म डिसऑर्डर सरकारी कर्मचारी बन गया.

पढ़ें-Fathers Day 2022 : ऑटिस्टिक बेटे की खातिर छोड़ दी लाखों के पैकेज की मल्टी नेशनल कंपनी की नौकरी, अब और बच्चों को भी दे रहे ट्रेनिंग

राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान: अक्षय जैसा ऑल राउंडर ऑटिस्टिक युवक (Akshay Bhatnagar is Role Model) पूरे देश में ASD शिकार बच्चों और बड़ों के लिए मिसाल हैं. ऑटिज्म होने के बावजूद स्कूल से कॉलेज तक और फिर नौकरी हासिल करने तक असीमित प्रतिभा का लोहा मनवा चुके अक्षय को राष्ट्रीय स्तर पर कई अवॉर्ड मिल चुके हैं. देश भर में रोल मॉडल ऑटिज्म श्रेणी में स्थापित अक्षय भटनागर को 2017 में विशेष योग्यजन निदेशालय, राजस्थान सरकार की ओर से रोल मॉडल (ऑटिज्म श्रेणी) सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ अरुण चतुर्वेदी ने सम्मानित किया. 3 दिसंबर, 2018 में विश्व विकलांगता दिवस पर अक्षय को रोल मॉडल ( ऑटिज्म श्रेणी) राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया. 2019 में ही चेन्नई में एक अत्यंत प्रतिष्ठित अवार्ड केविनकेयर एबिलिटी मास्टरी अवार्ड से सम्मानित किया गया. 2019 में ही राजस्थान राज्य में लोकसभा चुनाव हेतु निर्वाचन विभाग, राजस्थान की ओर से जयपुर जिले का ब्रांड एंबेसडर मनोनीत किया गया. 2019 में ही स्वतंत्रता दिवस पर कलेक्टर ने इन्हें सम्मानित किया गया. अक्षय अब तक 4 मेडल राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक चैंपियनशिप में 2019 से 2021 तक प्राप्त कर चुके हैं. इसके साथ ही स्टेट पैरा एथलेटिक्स में अक्षय के पास छह स्वर्ण पदक हैं और 2019 से 2022 तक यह राजस्थान राज्य का शॉट पुट गोल्ड मेडलिस्ट हैं.

मां ने छोड़ी सरकारी नौकरी: बेटे अक्षय की खातिर मां ने अपने हर सपने को पीछे छोड़ दिया. ऑटिस्टिक बेटे को उसके अधिकार मिले इसके लिए मां ने सरकारी नौकरी छोड़ी . प्रतिभा बताती हैं- अक्षय चार साल का था तब पता चला की वो सामान्य नहीं ऑटिज्म का शिकार है. हमें लग गया था कि आगे का जीवन उसे विशेष योग्यजन के रूप में ही जीना होगा जो बेहद मुश्किलों भरा होगा. चूंकि बच्चे में ऑटिज्म डिसऑर्डर सामने आया तो लगा कि अब इसी पर पूरा ध्यान देना है. प्रतिभा कहती हैं कि ऑटिस्टिक के रूप में किसी बच्चे के लिए सामान्य पढ़ाई-लिखाई आसान नहीं होती. तो अपनी सरकारी नौकरी छोड़ कर अक्षय की देखभाल में जुट गई. बेटे की हौसला अफजाई के साथ समाज में उसे उसके अधिकार दिलाना भी संघर्ष पूर्ण रहा. पहले स्कूल में दाखिले को लेकर तो फिर कॉलेज में पढ़ाई के लिए लड़ना पड़ा. कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती तो जयपुर के एक कॉलेज में सामान्य बच्चों के बीच पढ़ने का मौका मिला. मां-बेटे का ये संघर्ष रंग लाया और अक्षय सामान्य प्रक्रिया के तहत प्रतियोगी परीक्षा पास कर सरकारी नौकरी हासिल करने वाला पहला ऑटिस्टिक बना.

संघर्ष अब भी जारी: प्रतिभा भटनागर कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि अक्षय की सरकारी नौकरी के साथ ही संघर्ष खत्म हो गया हो. संघर्ष अभी भी लगातार जारी है. अक्षय को ऑटिज्म है ऐसे में सामान्य लोगों के साथ सचिवालय में काम करता है कई बार अपने डिसऑर्डर की वजह से वो सामान्य लोगों की तरह रिएक्ट नही करता. किसी साथी ने अच्छे से बात नही की या उसकी कोई बात को नहीं सुना तो वह हर्ट हो जाता है. उसे लगता है कि उसकी बात को क्यों नही सुना जा रहा? अक्सर ऑटिज्म डिसऑर्डर में ये दिक्कत आती है. सहकर्मियों को इस बारे में जानकारी नहीं होती और उन्हें लगता है कि वह उन्हें परेशान करता है. ऐसे में इस बात को समझने की जरूरत है कि वह मन में किसी तरह की लाग लपेट या किसी तरह के बुरे इंटेंशन से नही कर रहा है.

सचिवालय में कर्मचारियों को किया जागरूक: प्रतिभा भटनागर ने बताया- ऑटिज्म डिसऑर्डर को कानूनी रूप से सरकारी नौकरी में आरक्षण का अधिकार मिला है तो आज अक्षय है, कल को अक्षय की तरह कई और भी बच्चे आएंगे जो ऑटिज्म डिसऑर्डर होंगे जो सरकारी नौकरी करेंगे. कर्मचारियों या अधिकारियों को इस बारे में जानकारी होना जरूरी है कि इन बच्चों के साथ में किस तरह का व्यवहार किया जाए इसलिए सचिवालय में काम करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के साथ में लगातार इस तरह की वर्कशॉप की जाएगी , ताकि वो ऑटिज्म के बारे में अधिक से अधिक जागरूक हो सकें.

फाउंडेशन ने उठाया बीड़ा: ऑटिज्म पर काम करने वाली सपोर्ट फाउंडेशन फॉर ऑटिज्म एंड डेवलपमेंटल डिसेबिलिटीज की अध्यक्ष कविता बोहरा कहती हैं कि लोगों में जागरूकता का बहुत ज्यादा अभाव है. फाउंडेशन के जरिए हम अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. इन बच्चों को सिर्फ प्यार की भाषा समझ में आती है, लोगों को इनकी इस चाह को समझना जरूरी है.

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