जयपुर. राजस्थान सरकार और पुलिस प्रशासन भले ही महिला अधिकारों और महिला सशक्तिकरण की बात करे लेकिन प्रदेश में आज महिलाओं की जो स्थिति है उससे साफ है कि उनपर लगातार अत्याचार बढ़ रहे हैं. प्रदेश में महिला अत्याचार के प्रकरण कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. कोरोना काल में राजस्थान में लगातार महिला अपराधों के प्रकरणों में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. इस संबंध में राष्ट्रीय महिला आयोग का एक प्रतिनिधि मंडल प्रदेश में लगातार बढ़ रहे महिला अत्याचारों के संबंध में जयपुर पुलिस मुख्यालय में डीजीपी व अन्य अधिकारियों से मुलाकात कर ठोस कदम उठाने के लिए चर्चा भी करके गया है.
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वहीं प्रदेश में राज्य महिला आयोग में अध्यक्ष का पद काफी लंबे समय से खाली चल रहा है. इसको लेकर भी राष्ट्रीय महिला आयोग के प्रतिनिधि मंडल की ओर से आपत्ति दर्ज करवाई गई है. प्रदेश में महिला अत्याचारों को लेकर प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कार्यशैली पर भी अनेक सवाल खड़े किए हैं.
राजस्थान में महिलाओं पर अत्याचार किस कदर बढ़ रहा है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वर्ष 2018 में शुरुआती 3 महीने जनवरी से मार्च तक महिला अत्याचारों के कुल 5683 प्रकरण सामने आए. वहीं वर्ष 2019 में शुरुआती 3 महीने जनवरी से मार्च तक महिला अत्याचारों के कुल 7987 प्रकरण सामने आए. वहीं वर्ष 2020 में शुरुआती 3 महीने जनवरी से मार्च तक महिला अत्याचारों के कुल 8327 प्रकरण सामने आए.
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वहीं वर्ष 2021 में शुरुआती 3 महीने जनवरी से मार्च तक महिला अत्याचारों के कुल 10593 प्रकरण सामने आए हैं. इन आंकड़ों से साफ जाहिर होता है कि किस तरह से राजस्थान में प्रतिवर्ष महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के प्रकरण बढ़ रहे हैं. वर्ष 2020 की तुलना में वर्ष 2021 में शुरुआती 3 महीने जनवरी से मार्च माह तक महिला अत्याचारों के प्रकरणों में 27% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
महिला अत्याचारों के प्रकरण बढ़े, एफआर प्रतिशत भी बढ़ा
एडीजी क्राइम डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा ने बताया कि वर्ष 2021 के शुरुआती 3 महीनों में महिलाओं से संबंधित अपराधों के प्रकरणों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. जहां वर्ष 2020 में शुरुआती 3 महीनों में दहेज हत्या के 92, दहेज हत्या का दुष्प्रेरण के 29, महिला उत्पीड़न के 3545, बलात्कार के 1230, छेड़छाड़ के 1943, अपहरण के 1212 और अन्य धाराओं में 276 प्रकरण दर्ज किए गए थे.
वहीं वर्ष 2021 में शुरुआती 3 महीनों में इन तमाम प्रकरणों में 27% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है और कुल 10593 प्रकरण अब तक विभिन्न धाराओं में दर्ज किए जा चुके हैं. हालांकि वर्ष 2021 के शुरुआती 3 माह में दर्ज हुए महिला अत्याचारों के प्रकरणों में 51% एफआर पुलिस की ओर से कोर्ट में पेश की गई है. यानी कि दर्ज हुए महिला अत्याचारों के आधे से ज्यादा प्रकरणों को झूठा या गलत मान कर पुलिस ने कोर्ट में एफआर पेश की है.
प्रकरण में एफआर लगने के अनेक कारण
एडीजी क्राइम डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा ने बताया कि महिला अत्याचारों से संबंधित प्रकरणों में एफआर पेश करने के पीछे प्रकरण का झूठा होना या गलत होना ही एकमात्र कारण नहीं है बल्कि एफआर पेश करने के पीछे अनेक कारण हैं. महिला उत्पीड़न के 498-ए के तहत जितने भी प्रकरण दर्ज होते हैं, उनमें अधिकांश में राजीनामा होने के चलते पुलिस की ओर से कोर्ट में एफआर पेश की जाती है. वहीं इस तरह के अनेक प्रकरण भी होते हैं जिसमें पुलिस में प्रकरण दर्ज होने से पहले ही समझाइश की गई है और प्रकरण दर्ज होने के बाद जांच में दोनों पक्षों में पारिवारिक कारणों व समाज के दबाव के चलते राजीनामे के कारण एफआर पेश की जाती है.
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वहीं प्रदेश में फ्री एफआईआर रजिस्ट्रेशन के चलते भी महिला अत्याचारों के दर्ज होने वाले प्रकरणों में काफी इजाफा देखने को मिला है. इसके चलते बलात्कार और छेड़छाड़ के दर्ज होने वाले प्रकरणों में भी इजाफा हुआ है. हालांकि इनमें एफआर का प्रतिशत भी पहले की तुलना में काफी बढ़ा है. बलात्कार और छेड़छाड़ के कई प्रकरण गलत पाए जाते हैं जिसके चलते पुलिस उनमें एफआर पेश करती है.
सामाजिक तौर पर यदि विश्लेषण किया जाए तो महिलाओं से संबंधित अपराध में एफआईआर दर्ज कराने वाली पीड़िता के पीछे कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बढ़ा चढ़ाकर प्रकरण को मजबूत बनाने के लिए झूठी बातें एफआईआर में दर्ज कराकर विभिन्न धाराएं लगवाते हैं, लेकिन जांच में वह तमाम आरोप बेबुनियाद पाए जाते हैं. ऐसे में इन प्रकरणों में कम धाराओं में चालान पेश होता है या फिर प्रकरण के झूठा पाए जाने पर एफआर पेश की जाती है.