जयपुर. पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा उत्साहित है, लेकिन पंजाब चुनाव परिणाम से वे राजनीतिक दल उत्साहित हैं, जो राजस्थान में जनता को तीसरे मोर्चे का विकल्प देने का दावा करते आए हैं. आम आदमी पार्टी (आप) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल (आरएलपी) साल 2023 के विधानसभा चुनाव में जनता को तीसरा विकल्प देने और सरकार बनाने का दावा कर रहे (Third front possibilities in Rajasthan) हैं, लेकिन राजस्थान के सियासी इतिहास को देखें तो यहां के दो दलीय व्यवस्था में तीसरा विकल्प आज तक परवान नहीं चढ़ पाया है.
राजस्थान में कई दिग्गजों ने की कोशिश, लेकिन नहीं चल पाया जादू : राजस्थान के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो तीसरा विकल्प या मोर्चा खड़ा करने की कोशिश कई धुरंधर राजनेताओं ने की है. लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पाई. प्रदेश की राजनीति में 1967 के विधानसभा चुनाव में पहली बार इसका प्रयास दिग्गज कुंभाराम आर्य, दौलतराम सारण और नाथूराम मिर्धा ने की. इन जाट नेताओं ने किसान मुख्यमंत्री के मुद्दे पर कांग्रेस को चुनौती देने के लिए चुनाव मैदान का सहारा लिया, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई. साल 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा की जंग में लोकदल ने भी ताल ठोकी, लेकिन तब इस तीसरे विकल्प को 27 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. हालांकि, साल 1990 में जनता दल ने 55 सीटें जीतकर अपनी प्रभावशाली उपस्थिति जरूर दर्ज कराई.
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भाटी, मीणा, तिवाड़ी और बेनीवाल की चुनौती का ये रहा हश्र : राजस्थान भाजपा के ऐसे कई दिग्गज नेता रहे जिन्होंने प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच जनता को तीसरा विकल्प देने का दावा किया और चुनाव मैदान में खूब पसीना भी बहाया, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई. साल 2003 के विधानसभा चुनाव में राजपूत समाज से आने वाले कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी ने सामाजिक न्याय मंच बनाकर कांग्रेस और भाजपा का विकल्प देने का दावा किया. चुनाव में उम्मीदवार भी खड़े किए गए, लेकिन भाटी के अलावा और कोई जीत दर्ज नहीं कर पाया. मतलब तीसरी शक्ति का दावा खोखला रहा. जिसके चलते 2008 के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को तीसरे मोर्चे की शक्ति के रूप में चुनौती देने की हिमाकत कोई नहीं कर पाया.
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हालांकि, साल 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के बागी किरोड़ी लाल मीणा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी के बैनर पर कई जगह उम्मीदवार उतारे और धुआंधार प्रचार भी किया, लेकिन मीणा और उनकी पत्नी गोलमा देवी के साथ ही दो और विधायक ही चुनाव जीत पाए. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में किरोड़ी लाल मीणा भाजपा के ही बागी हनुमान बेनीवाल के साथ मिलकर तीसरे मोर्चे का दावा करते रहे, लेकिन इन दोनों नेताओं के बीच ये जुगलबंदी ज्यादा दिन बैठ नहीं पाई. हालांकि इन्हीं चुनावों में बेनीवाल ने जयपुर में किसान हुंकार रैली कर तीसरे मोर्चे का ऐलान कर दिया. इसमें भाजपा से अलग होकर अपनी पार्टी भारत वाहिनी बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी के साथ राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी और समाजवादी पार्टी के संजय लाठर भी मौजूद रहे. लेकिन तीसरे विकल्प का दावा यहां भी सिरे नहीं चढ़ पाया.
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राजस्थान की दो दलीय व्यवस्था में तीसरे विकल्प की जगह नहीं-तिवाड़ी : पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा नेता घनश्याम तिवाड़ी ने भारत वाहिनी पार्टी बनाकर उम्मीदवारों को चुनाव तो लड़वाया, लेकिन अन्य के साथ खुद भी हारे और फिर कांग्रेस में चले गए. हालांकि संघ विचारधारा के चलते अब भाजपा में उनकी घर वापसी हुई है. खुद तिवाड़ी अब इस बात को स्वीकार करते हैं कि राजस्थान में तीसरे दल का कोई विकल्प नहीं दे सकता. क्योंकि यहां दो दलीय व्यवस्था है और चुनाव में संघर्ष भी दो दलों बीच ही होता है.
'आप' आरएलपी का तीसरे विकल्प का दावा, भाजपा ने कहा संघर्ष दो दलों के बीच ही रहेगा : पंजाब में आम आदमी पार्टी की हुई जीत के बाद राजस्थान में पार्टी के प्रदेश सचिव देवेंद्र शास्त्री अगले विधानसभा चुनाव में राजस्थान की जनता को आम आदमी पार्टी के रूप में तीसरा विकल्प देने का संकेत देते हुए अगला चुनाव राजस्थान में बदलाव के लिए लड़ने की बात कही. यही दावा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल भी कर रहे हैं, लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ने राजस्थान में तीसरे दल या मोर्चे के दावे को ही सिरे से खारिज कर दिया. परनामी ने कहा कि राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला रहता है और अगला चुनाव भाजपा जीतेगी.
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