जयपुर. राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव का रंग दिखने (student union Election) लगा है. दो साल बाद हो रहे छात्र संघ चुनाव में इस बार दोनों प्रमुख छात्र संगठन एबीवीपी और एनएसयूआई हार के सिलसिले को खत्म करने के लिए तैयारियों में जुटी है. बीते चार सालों से इन दोनों संगठनों को हार का सामना करना पड़ा है. वहीं इस बार भी एसएफआई, इनसो, हिंदवी स्वराज जैसे छात्र संघ चुनावी मैदान में एबीवीपी और एनएसयूआई को चुनौती देने को तैयार हैं.
दरअसल, बीते 4 छात्रसंघ चुनाव में निर्दलीयों ने जीत का परचम फहराया है. साल 2016 में एबीवीपी बागी अंकित थायल ने निर्दलीय के रूप में जीत हासिल की. इसके बाद 2017 में एबीवीपी से ही बागी पवन यादव ने निर्दलीय के रूप में जीत हासिल की. 2018 में एनएसयूआई बागी विनोद जाखड़ ने निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज की. फिर 2019 में एनएसयूआई बागी पूजा वर्मा ने निर्दलीय के रूप में जीत हासिल की. लेकिन इस बार ऐसा कोई उलटफेर न हो इसके लिए एबीवीपी और एनएसयूआई दोनों फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं. कोरोना काल में छात्रों के बीच सक्रिय रहने की बात कहते हुए, इस बार वापसी के साथ अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं.
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वहीं दूसरी ओर दोनों ही छात्र संगठनों को कड़ी टक्कर देने के लिए एसएफआई और इनसो चुनावी मैदान में उतर चुके हैं. उनका दावा है कि राजस्थान विश्वविद्यालय के (Election in Rajasthan University) छात्र एबीवीपी और एनएसयूआई से ऊब चुके हैं. अब छात्र पूंजीवादी राजनीति को खत्म कर छात्र हितों की बात करने और काम करने वालों को चुनते हैं. इस बार भी छात्र संघ चुनाव में ऐसा ही होगा. वहीं नया छात्र संगठन हिंदवी स्वराज छात्रसंघ अभी से एबीवीपी को बागी तेवर का आभास करा रहा है. इस संगठन को एबीवीपी के ही पूर्व पदाधिकारियों ने बेरुखी के चलते तैयार किया है. साथ ही चुनाव में अलग पैनल उतारने का एलान भी किया है. इनके अलावा निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर निर्मल चौधरी पहले ही चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं. छात्र संघ चुनाव का असर मुख्यधारा की राजनीति पर भी पड़ता है, ऐसे में राजनीतिक दलों की निगाहें भी इन चुनावों पर टिकी हुई हैं.