ETV Bharat / city

Special: जयपुर में कोरोना काल के समय 4 बाल श्रमिकों ने तोड़ा दम, नहीं ली किसी ने सुध - Child workers died in Jaipur

वैश्विक महामारी कोरोना काल के दौरान राजधानी जयपुर में 4 बाल श्रमिकों ने दम तोड़ा, लेकिन किसी भी राजनेता ने हमदर्दी नहीं जताई. बच्चों को ना तो वोट देने का अधिकार होता है और ना ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने का, जिसके चलते बच्चे किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए पॉलीटिकल एजेंडा नहीं है. पढ़ें पूरी खबर...

Leader silent on death of child workers,  4 child workers died in the Corona period
बच्चे पॉलिटिकल मुद्दा नहीं इसलिए नेता मौन
author img

By

Published : Dec 20, 2020, 2:35 PM IST

जयपुर. वैश्विक महामारी कोरोना काल के दौरान राजधानी जयपुर में 4 बाल श्रमिकों ने दम तोड़ा, लेकिन इस ओर सरकार की तरफ से बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया. ना ही बच्चों की मौत पर किसी भी राजनीतिक पार्टी या राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए नेताओं की ओर से कोई संवेदना जाहिर की गई. बच्चों से किसी भी राजनीतिक पार्टी को कोई लाभ नहीं होता है, जिसके चलते बच्चों की मौत को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया गया.

बच्चे पॉलिटिकल मुद्दा नहीं इसलिए नेता मौन

हालांकि, कागजों में सरकार की ओर से बाल श्रमिकों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं और राजस्थान को बालश्रम से मुक्त करने के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद भी स्थिति कुछ और ही है.

राजस्थान की राजधानी जयपुर में बाल श्रम बेधड़क चल रहा है और प्रशासन की ओर से समय-समय पर कार्रवाई कर बाल श्रमिकों को मुक्त भी करवाया जाता है, लेकिन जिस स्तर पर कार्रवाई की जानी चाहिए उस स्तर पर कार्रवाई नहीं की जा रही है. बचपन बचाओ आंदोलन समिति के प्रोजेक्ट ऑफिसर देशराज सिंह ने बताया कि राजधानी जयपुर में बड़ी तादाद में अवैध रूप से चूड़ी बनाने और आरा तारी का काम करवाने के कारखानों का संचालन किया जा रहा है.

पढ़ें- SPECIAL : कभी कहलाते थे राज परिवारों के उमरयार...आज रूप बदलकर भी तकदीर नहीं बदल पा रहे बहरूरिये

राजधानी के शास्त्री नगर, भट्टा बस्ती, ब्रह्मपुरी, सांगानेर और विभिन्न इलाकों में किराए पर कारखाने चल रहे हैं, जहां पर बच्चों से बाल श्रम करवाया जा रहा है. सरकार की नाक तले राजधानी जयपुर में जब बाल श्रम की यह स्थिति है तो पूरे प्रदेश में किस पैमाने पर मासूमों को यातनाएं देकर बाल श्रम के दलदल में धकेला गया है, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता.

इन तारीखों पर हुई राजधानी जयपुर में बाल श्रमिकों की मौत...

बचपन बचाओ आंदोलन के प्रोजेक्ट ऑफिसर देशराज सिंह ने बताया कि राजधानी जयपुर में बाल श्रमिकों की मौत के 4 प्रकरण सामने आए हैं. जिसमें पहला प्रकरण भट्टा बस्ती थाना क्षेत्र में 13 जुलाई को सामने आया, जहां एक चूड़ी कारखाने में एक बाल श्रमिक की बीमारी के चलते मौत हो गई. वहीं, बाल श्रमिक की मौत का दूसरा प्रकरण 16 जुलाई को शास्त्री नगर थाना इलाके में सामने आया, जहां एक चूड़ी कारखाने में बाल श्रमिक ने बीमारी के चलते दम तोड़ दिया.

इसके बाद उसी कारखाने में एक अन्य बाल श्रमिक काफी बीमार स्थिति में मिला, जिसे पुलिस प्रशासन की ओर से एसएमएस अस्पताल में भर्ती कराया गया. जहां पर उसकी स्थिति बेहद खराब होने के चलते 4 अगस्त को उसकी मौत हो गई. वहीं बाल श्रमिक की मौत का चौथा प्रकरण भट्टा बस्ती थाना इलाके में 23 अक्टूबर को सामने आया, जहां एक चूड़ी कारखाने में बीमारी के चलते एक बाल श्रमिक ने दम तोड़ा.

3 कारखाना संचालकों को गिरफ्तार कर खानापूर्ति

बाल श्रमिकों की मौत हो जाने पर पुलिस की ओर से कार्रवाई करते हुए महज तीन कारखाना संचालकों को गिरफ्तार कर खानापूर्ति कर ली गई. 13 जुलाई को जिस बाल श्रमिक की मौत हुई उसका अंतिम संस्कार जयपुर में ही किया गया क्योंकि बिहार में रहने वाले उसके परिजनों ने बच्चे का शव लेने से इनकार कर दिया. वहीं, जिन तीन अन्य बाल श्रमिकों की मौत हुई उनके शव को प्रशासन की ओर से बिहार भिजवाया गया.

कारखाना संचालक में नहीं कानून का खौफ

बचपन बचाओ आंदोलन के प्रोजेक्ट ऑफिसर देशराज सिंह ने बताया की राजधानी जयपुर में अवैध रूप से चूड़ी और आरा तारी के कारखानों का संचालन किया जा रहा है, जहां पर सैकड़ों की संख्या में मासूम बच्चों को यातनाएं देकर उनसे काम करवाया जा रहा है. यदि कारखाने में कोई बच्चा बीमार हो जाता है तो उसके स्वास्थ्य का भी ख्याल कारखाना संचालक की ओर से नहीं रखा जाता है.

पढ़ें- Special : अजमेर में गिरा सड़क हादसों में मरने वालों का ग्राफ....जागरूकता का नहीं, ये कोरोना का असर

अवैध रूप से कारखानों का संचालन करने वाले कारखाना संचालक बच्चों को एक मशीन के रूप में काम लेते हैं और उनसे उनका बचपन व मासूमियत छीन लेते हैं. वहीं, कारखाना संचालकों में कानून का जरा सा भी खौफ नहीं है. प्रशासन की ओर से बरती जा रही ढिलाई के चलते कारखाना संचालकों के हौंसले लगातार बुलंद होते जा रहे हैं. वहीं, जिन मकानों को किराए पर लेकर अवैध रूप से कारखानों का संचालन किया जा रहा है, उन तमाम मकानों का और मकान किराए पर किन लोगों को दिए गए हैं इसका वेरिफिकेशन भी पुलिस की ओर से नहीं किया जा रहा है.

राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए किसी भी नेता ने नहीं जताई संवेदना

बचपन बचाओ आंदोलन के प्रोजेक्ट ऑफिसर देशराज सिंह का कहना है कि बच्चों को ना तो वोट देने का अधिकार होता है और ना ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने का, जिसके चलते बच्चे किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए पॉलीटिकल एजेंडा नहीं है. राजस्थान में हाल ही में कई ऐसे प्रकरण सामने आए थे जब कुछ लोगों की मौत हो जाने पर शव के साथ प्रदर्शन किया गया था और वहां पर राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए लोगों ने भी अपना समर्थन जताया था.

मृतकों के परिजनों को सरकारी नौकरी और लाखों रुपए का मुआवजा देने को लेकर सरकार पर दबाव बनाया गया. वहीं, राजधानी जयपुर में 4 मासूमों की मौत पर किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़े नेता ने संवेदना तक व्यक्त नहीं की. वहीं जिन चार बाल श्रमिकों की मौत हुई है, उनके परिजनों को अब तक किसी भी तरह का कोई मुआवजा या सहायता राशि देने का आश्वासन तक नहीं मिला है.

जयपुर. वैश्विक महामारी कोरोना काल के दौरान राजधानी जयपुर में 4 बाल श्रमिकों ने दम तोड़ा, लेकिन इस ओर सरकार की तरफ से बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया. ना ही बच्चों की मौत पर किसी भी राजनीतिक पार्टी या राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए नेताओं की ओर से कोई संवेदना जाहिर की गई. बच्चों से किसी भी राजनीतिक पार्टी को कोई लाभ नहीं होता है, जिसके चलते बच्चों की मौत को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया गया.

बच्चे पॉलिटिकल मुद्दा नहीं इसलिए नेता मौन

हालांकि, कागजों में सरकार की ओर से बाल श्रमिकों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं और राजस्थान को बालश्रम से मुक्त करने के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद भी स्थिति कुछ और ही है.

राजस्थान की राजधानी जयपुर में बाल श्रम बेधड़क चल रहा है और प्रशासन की ओर से समय-समय पर कार्रवाई कर बाल श्रमिकों को मुक्त भी करवाया जाता है, लेकिन जिस स्तर पर कार्रवाई की जानी चाहिए उस स्तर पर कार्रवाई नहीं की जा रही है. बचपन बचाओ आंदोलन समिति के प्रोजेक्ट ऑफिसर देशराज सिंह ने बताया कि राजधानी जयपुर में बड़ी तादाद में अवैध रूप से चूड़ी बनाने और आरा तारी का काम करवाने के कारखानों का संचालन किया जा रहा है.

पढ़ें- SPECIAL : कभी कहलाते थे राज परिवारों के उमरयार...आज रूप बदलकर भी तकदीर नहीं बदल पा रहे बहरूरिये

राजधानी के शास्त्री नगर, भट्टा बस्ती, ब्रह्मपुरी, सांगानेर और विभिन्न इलाकों में किराए पर कारखाने चल रहे हैं, जहां पर बच्चों से बाल श्रम करवाया जा रहा है. सरकार की नाक तले राजधानी जयपुर में जब बाल श्रम की यह स्थिति है तो पूरे प्रदेश में किस पैमाने पर मासूमों को यातनाएं देकर बाल श्रम के दलदल में धकेला गया है, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता.

इन तारीखों पर हुई राजधानी जयपुर में बाल श्रमिकों की मौत...

बचपन बचाओ आंदोलन के प्रोजेक्ट ऑफिसर देशराज सिंह ने बताया कि राजधानी जयपुर में बाल श्रमिकों की मौत के 4 प्रकरण सामने आए हैं. जिसमें पहला प्रकरण भट्टा बस्ती थाना क्षेत्र में 13 जुलाई को सामने आया, जहां एक चूड़ी कारखाने में एक बाल श्रमिक की बीमारी के चलते मौत हो गई. वहीं, बाल श्रमिक की मौत का दूसरा प्रकरण 16 जुलाई को शास्त्री नगर थाना इलाके में सामने आया, जहां एक चूड़ी कारखाने में बाल श्रमिक ने बीमारी के चलते दम तोड़ दिया.

इसके बाद उसी कारखाने में एक अन्य बाल श्रमिक काफी बीमार स्थिति में मिला, जिसे पुलिस प्रशासन की ओर से एसएमएस अस्पताल में भर्ती कराया गया. जहां पर उसकी स्थिति बेहद खराब होने के चलते 4 अगस्त को उसकी मौत हो गई. वहीं बाल श्रमिक की मौत का चौथा प्रकरण भट्टा बस्ती थाना इलाके में 23 अक्टूबर को सामने आया, जहां एक चूड़ी कारखाने में बीमारी के चलते एक बाल श्रमिक ने दम तोड़ा.

3 कारखाना संचालकों को गिरफ्तार कर खानापूर्ति

बाल श्रमिकों की मौत हो जाने पर पुलिस की ओर से कार्रवाई करते हुए महज तीन कारखाना संचालकों को गिरफ्तार कर खानापूर्ति कर ली गई. 13 जुलाई को जिस बाल श्रमिक की मौत हुई उसका अंतिम संस्कार जयपुर में ही किया गया क्योंकि बिहार में रहने वाले उसके परिजनों ने बच्चे का शव लेने से इनकार कर दिया. वहीं, जिन तीन अन्य बाल श्रमिकों की मौत हुई उनके शव को प्रशासन की ओर से बिहार भिजवाया गया.

कारखाना संचालक में नहीं कानून का खौफ

बचपन बचाओ आंदोलन के प्रोजेक्ट ऑफिसर देशराज सिंह ने बताया की राजधानी जयपुर में अवैध रूप से चूड़ी और आरा तारी के कारखानों का संचालन किया जा रहा है, जहां पर सैकड़ों की संख्या में मासूम बच्चों को यातनाएं देकर उनसे काम करवाया जा रहा है. यदि कारखाने में कोई बच्चा बीमार हो जाता है तो उसके स्वास्थ्य का भी ख्याल कारखाना संचालक की ओर से नहीं रखा जाता है.

पढ़ें- Special : अजमेर में गिरा सड़क हादसों में मरने वालों का ग्राफ....जागरूकता का नहीं, ये कोरोना का असर

अवैध रूप से कारखानों का संचालन करने वाले कारखाना संचालक बच्चों को एक मशीन के रूप में काम लेते हैं और उनसे उनका बचपन व मासूमियत छीन लेते हैं. वहीं, कारखाना संचालकों में कानून का जरा सा भी खौफ नहीं है. प्रशासन की ओर से बरती जा रही ढिलाई के चलते कारखाना संचालकों के हौंसले लगातार बुलंद होते जा रहे हैं. वहीं, जिन मकानों को किराए पर लेकर अवैध रूप से कारखानों का संचालन किया जा रहा है, उन तमाम मकानों का और मकान किराए पर किन लोगों को दिए गए हैं इसका वेरिफिकेशन भी पुलिस की ओर से नहीं किया जा रहा है.

राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए किसी भी नेता ने नहीं जताई संवेदना

बचपन बचाओ आंदोलन के प्रोजेक्ट ऑफिसर देशराज सिंह का कहना है कि बच्चों को ना तो वोट देने का अधिकार होता है और ना ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने का, जिसके चलते बच्चे किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए पॉलीटिकल एजेंडा नहीं है. राजस्थान में हाल ही में कई ऐसे प्रकरण सामने आए थे जब कुछ लोगों की मौत हो जाने पर शव के साथ प्रदर्शन किया गया था और वहां पर राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए लोगों ने भी अपना समर्थन जताया था.

मृतकों के परिजनों को सरकारी नौकरी और लाखों रुपए का मुआवजा देने को लेकर सरकार पर दबाव बनाया गया. वहीं, राजधानी जयपुर में 4 मासूमों की मौत पर किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़े नेता ने संवेदना तक व्यक्त नहीं की. वहीं जिन चार बाल श्रमिकों की मौत हुई है, उनके परिजनों को अब तक किसी भी तरह का कोई मुआवजा या सहायता राशि देने का आश्वासन तक नहीं मिला है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.