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Special : बीकानेर में बनती है लकड़ी की गणगौर, हाथों के हुनर से जीवंत हो उठती हैं प्रतिमाएं

बीकानेर अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए पहचान रखता है. त्यौहार और परंपराओं के निर्वहन के लिए बीकानेर का एक अलग स्थान है. होली के बाद हमारी मान्यताओं में गणगौर का पर्व (Gangaur Celebration in Bikaner) महिलाओं के लिए खास महत्व रखता है. गणगौर पर्व को लेकर बीकानेर की अलग पहचान है. यहां लकड़ी की गणगौर बनाई जाती है. इसकी ख्याती देश के विभिन्न हिस्सों तक फैली हुई है.

Bikaner Wooden Gangaur
बीकानेर में बनती लकड़ी की गणगौर
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Published : Mar 29, 2022, 7:31 PM IST

Updated : Apr 6, 2022, 2:29 PM IST

बीकानेर. भुजिया के तीखेपन और रसगुल्ला की मिठास के साथ ही अपने सांस्कृतिक ऐतिहासिक विरासत को समेटे बीकानेर शहर अपनी अलग पहचान रखता है. तीज-त्यौहर को मनाने के मामले में भी इस शहर का अलग अंदाज दिखाई देता है. इसी कड़ी में धुलंडी के बाद से 16 दिन तक महिलाओं की ओर से (Bikaner Wooden Gangaur) मनाई जाने वाली गणगौर को लेकर भी बीकानेर की खास पहचान है. खास तौर पर बीकानेर में बनने वाली लकड़ी के गणगौर को लेकर. बीकानेर में लकड़ी पर हस्त निर्मित गणगौर पूरे देश में प्रसिद्ध है.

महिलाओं के लिए खास उत्साह वाला गणगौर त्यौहार होली के अगले दिन यानि की धुलंडी के साथ ही शुरू होता है. अगले 16 दिन तक महिलाएं अपने घर में एकल और सामूहिक रूप से गणगौर का पूजन करती हैं. लगातार 16 दिन तक गणगौर की पूजा-र्चना के साथ ही महिलाएं दिनभर गणगौर के गीत घरों गाती हैं. सामूहिक रूप से परिवार में गणगौर की पूजा-अर्चना कर अपने परिवार की मंगल की कामना करती है. गणगौर की पूजा में 16 दिन तक हर दिन गणगौर के बासा देने की परंपरा है. मान्यता है कि इस दौरान जो भी मन्नत हो वो पूरी होती है. बीकानेर में राजपरिवार की ओर से भी गणगौर की खोल भराई की रस्म की जाती है और गणगौर की शाही सवारी भी निकाली जाती है.

क्या कहते हैं कारीगर

सागवान की लकड़ी से बनती है गणगौरः बीकानेर में लकड़ी की गणगौर (प्रतिमा) बनाई जाती है. यहां बनी लकड़ी की हस्त निर्मित गणगौर पूरे देश में विख्यात है. सागवान की लकड़ी से हाथ से बनी गणगौर (Wooden Gangaur is Made in Bikaner) कुछ खास तरीके और करीने से बीकानेर में बनाया जाता है. पूरी गणगौर के तैयार होने के बाद सोलह सिंगार के बाद ऐसा लगता है कि कोई महिला ही श्रृंगार किए खड़ी है. पीढ़ियों से काम कर रहे गिरधारी कहते हैं कि वह चौथी पीढ़ी में है जो इस काम को कर रहे हैं. उनसे पहले उनके पूर्वज गणगौर बनाने का काम करते थे और पूरे साल में सिर्फ इसी काम में जुटे हुए रहते हैं.

देश के विभिन्न शहरों से आते हैं लोगः गिरधारी बताते हैं कि बीकानेर ही नहीं बल्कि देश के अन्य शहरों और विदेशों से भी लोग गणगौर को लेने के लिए लोग हमारे पास आते हैं और पूरे साल यह काम जारी रहता है. ऑर्डर पर भी आपूर्ति की जाती है. 30 हजार से 3 लाख रुपए तक की गणगौर बनाने के काम में जुटे सांवरलाल कहते हैं कि वे पूरी शिद्दत के साथ इस काम को करते हैं. एक गणगौर को बनाने में कम से कम 15 दिन लगते हैं. वे कहते हैं कि सागवान की लकड़ी पर बनी गणगौर 30 हजार रुपए से लेकर 3 लाख रुपए तक की होती है.

पढ़ें : Special : बीकानेर में होली की उमंग, लेकिन इस जाति के घरों में नहीं बनता खाना...जानें 350 साल पुरानी परंपरा

गणगौर तैयार करने की तीन प्रक्रियाः कारीगर सांवरलाल कहते हैं कि गणगौर को तैयार करने में तीन अलग-अलग प्रक्रिया होती है. सबसे पहले लकड़ी की गणगौर को आकार और साइज के मुताबिक ढाल कर बनाया जाता है. इसके बाद चित्रकार उसमें रंग करते हैं और उसके बाद आंख नाक कान की चित्रकारी कर उसे रूप दिया जाता है. इसके बाद आता है साज-सज्जा और श्रृंगार का काम. इन तीन प्रक्रियाओं के बाद पूरी तरह से गणगौर तैयार हो जाती है.

500 साल हो रहा है यह कामः बीकानेर में लकड़ी पर गणगौर बनाने का काम पिछले 500 साल से हो रहा है. बीकानेर में पूरे साल कुछ लोग केवल गणगौर को ही बनाने का काम करते हैं. बीकानेर में बड़ा बाजार क्षेत्र में गणगौर और उनके साज-सज्जा के सामान को लेकर एक अलग मार्केट है. इसे मथेरन चौक कहते हैं. यहां तकरीबन दो दर्जन से ज्यादा दुकानों में पूरी तरह से गणगौर और ईसर जी मिलते हैं. यहां मिलने वाली गणगौर में हर साइज की प्रतिमा उपलब्ध है.

साफा एक्सपर्ट बोले बढ़ जाता है कामः बीकानेर में साफा बांधने के एक्सपर्ट कृष्ण चंद्र पुरोहित कहते हैं कि वे सालों से साफा बांधने का काम कर रहे हैं. त्यौहारों और शादी समारोह में लोग साफा बांधने के लिए बुलाते हैं. लेकिन गणगौर के पर्व के मौके पर तो काम बढ़ जाता है. ईसर जी और भाइया के भी साफा बंधवाने लोग बड़ी संख्या में आते हैं. वे कहते हैं कि गणगौर को भगवान शंकर की पत्नी माता पार्वती का अवतार माना जाता है. गणगौर के साथ ही (Beauty of Bikaner Gangaur) ईशर जी जो कि भगवान शिव के प्रतीक हैं, उनकी भी पूजा की जाती है. इसके अलावा भाइया जो कि भगवान गणेश और कार्तिक का प्रतीक हैं. इस तरह से पूरे परिवार की पूजा-अर्चना की जाती है.

पढ़ें : Bikaner Dolchi Holi : अनूठी होली ने खूनी संघर्ष को बदल दिया प्रेम में, चार शताब्दियों से चल रही परंपरा...

16 दिन होती है पूजाः गणगौर की पूजा साल में 16 दिन के लिए की जाती है. कहा जाता है कि इस वक्त गणगौर अपने पीहर होती है और 16 दिन बाद उनकी विदाई ससुराल के लिए हो जाती है. गणगौर की पूजा-अर्चना में मान्यता है कि विधि-विधान और परंपरा से गणगौर की पूजा करने से अखंड सुहाग और मनचाहा वर मिलता है. वहीं, भगवान गणेश के प्रतीक के रूप में भाइया की खोल भराई करने से संतान की प्राप्ति होती है. बीकानेर की गणगौर अपने आप में मशहूर है. यही कारण है कि बीकानेर से बाहर के लोग भी गणगौर लेने के लिए बीकानेर आते हैं. ब्यावर से आई ममता कहती है कि बीकानेर की गणगौर के बारे में खूब सुना है और आज मैं खुद गणगौर लेने के लिए आई हूं.

बीकानेर. भुजिया के तीखेपन और रसगुल्ला की मिठास के साथ ही अपने सांस्कृतिक ऐतिहासिक विरासत को समेटे बीकानेर शहर अपनी अलग पहचान रखता है. तीज-त्यौहर को मनाने के मामले में भी इस शहर का अलग अंदाज दिखाई देता है. इसी कड़ी में धुलंडी के बाद से 16 दिन तक महिलाओं की ओर से (Bikaner Wooden Gangaur) मनाई जाने वाली गणगौर को लेकर भी बीकानेर की खास पहचान है. खास तौर पर बीकानेर में बनने वाली लकड़ी के गणगौर को लेकर. बीकानेर में लकड़ी पर हस्त निर्मित गणगौर पूरे देश में प्रसिद्ध है.

महिलाओं के लिए खास उत्साह वाला गणगौर त्यौहार होली के अगले दिन यानि की धुलंडी के साथ ही शुरू होता है. अगले 16 दिन तक महिलाएं अपने घर में एकल और सामूहिक रूप से गणगौर का पूजन करती हैं. लगातार 16 दिन तक गणगौर की पूजा-र्चना के साथ ही महिलाएं दिनभर गणगौर के गीत घरों गाती हैं. सामूहिक रूप से परिवार में गणगौर की पूजा-अर्चना कर अपने परिवार की मंगल की कामना करती है. गणगौर की पूजा में 16 दिन तक हर दिन गणगौर के बासा देने की परंपरा है. मान्यता है कि इस दौरान जो भी मन्नत हो वो पूरी होती है. बीकानेर में राजपरिवार की ओर से भी गणगौर की खोल भराई की रस्म की जाती है और गणगौर की शाही सवारी भी निकाली जाती है.

क्या कहते हैं कारीगर

सागवान की लकड़ी से बनती है गणगौरः बीकानेर में लकड़ी की गणगौर (प्रतिमा) बनाई जाती है. यहां बनी लकड़ी की हस्त निर्मित गणगौर पूरे देश में विख्यात है. सागवान की लकड़ी से हाथ से बनी गणगौर (Wooden Gangaur is Made in Bikaner) कुछ खास तरीके और करीने से बीकानेर में बनाया जाता है. पूरी गणगौर के तैयार होने के बाद सोलह सिंगार के बाद ऐसा लगता है कि कोई महिला ही श्रृंगार किए खड़ी है. पीढ़ियों से काम कर रहे गिरधारी कहते हैं कि वह चौथी पीढ़ी में है जो इस काम को कर रहे हैं. उनसे पहले उनके पूर्वज गणगौर बनाने का काम करते थे और पूरे साल में सिर्फ इसी काम में जुटे हुए रहते हैं.

देश के विभिन्न शहरों से आते हैं लोगः गिरधारी बताते हैं कि बीकानेर ही नहीं बल्कि देश के अन्य शहरों और विदेशों से भी लोग गणगौर को लेने के लिए लोग हमारे पास आते हैं और पूरे साल यह काम जारी रहता है. ऑर्डर पर भी आपूर्ति की जाती है. 30 हजार से 3 लाख रुपए तक की गणगौर बनाने के काम में जुटे सांवरलाल कहते हैं कि वे पूरी शिद्दत के साथ इस काम को करते हैं. एक गणगौर को बनाने में कम से कम 15 दिन लगते हैं. वे कहते हैं कि सागवान की लकड़ी पर बनी गणगौर 30 हजार रुपए से लेकर 3 लाख रुपए तक की होती है.

पढ़ें : Special : बीकानेर में होली की उमंग, लेकिन इस जाति के घरों में नहीं बनता खाना...जानें 350 साल पुरानी परंपरा

गणगौर तैयार करने की तीन प्रक्रियाः कारीगर सांवरलाल कहते हैं कि गणगौर को तैयार करने में तीन अलग-अलग प्रक्रिया होती है. सबसे पहले लकड़ी की गणगौर को आकार और साइज के मुताबिक ढाल कर बनाया जाता है. इसके बाद चित्रकार उसमें रंग करते हैं और उसके बाद आंख नाक कान की चित्रकारी कर उसे रूप दिया जाता है. इसके बाद आता है साज-सज्जा और श्रृंगार का काम. इन तीन प्रक्रियाओं के बाद पूरी तरह से गणगौर तैयार हो जाती है.

500 साल हो रहा है यह कामः बीकानेर में लकड़ी पर गणगौर बनाने का काम पिछले 500 साल से हो रहा है. बीकानेर में पूरे साल कुछ लोग केवल गणगौर को ही बनाने का काम करते हैं. बीकानेर में बड़ा बाजार क्षेत्र में गणगौर और उनके साज-सज्जा के सामान को लेकर एक अलग मार्केट है. इसे मथेरन चौक कहते हैं. यहां तकरीबन दो दर्जन से ज्यादा दुकानों में पूरी तरह से गणगौर और ईसर जी मिलते हैं. यहां मिलने वाली गणगौर में हर साइज की प्रतिमा उपलब्ध है.

साफा एक्सपर्ट बोले बढ़ जाता है कामः बीकानेर में साफा बांधने के एक्सपर्ट कृष्ण चंद्र पुरोहित कहते हैं कि वे सालों से साफा बांधने का काम कर रहे हैं. त्यौहारों और शादी समारोह में लोग साफा बांधने के लिए बुलाते हैं. लेकिन गणगौर के पर्व के मौके पर तो काम बढ़ जाता है. ईसर जी और भाइया के भी साफा बंधवाने लोग बड़ी संख्या में आते हैं. वे कहते हैं कि गणगौर को भगवान शंकर की पत्नी माता पार्वती का अवतार माना जाता है. गणगौर के साथ ही (Beauty of Bikaner Gangaur) ईशर जी जो कि भगवान शिव के प्रतीक हैं, उनकी भी पूजा की जाती है. इसके अलावा भाइया जो कि भगवान गणेश और कार्तिक का प्रतीक हैं. इस तरह से पूरे परिवार की पूजा-अर्चना की जाती है.

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16 दिन होती है पूजाः गणगौर की पूजा साल में 16 दिन के लिए की जाती है. कहा जाता है कि इस वक्त गणगौर अपने पीहर होती है और 16 दिन बाद उनकी विदाई ससुराल के लिए हो जाती है. गणगौर की पूजा-अर्चना में मान्यता है कि विधि-विधान और परंपरा से गणगौर की पूजा करने से अखंड सुहाग और मनचाहा वर मिलता है. वहीं, भगवान गणेश के प्रतीक के रूप में भाइया की खोल भराई करने से संतान की प्राप्ति होती है. बीकानेर की गणगौर अपने आप में मशहूर है. यही कारण है कि बीकानेर से बाहर के लोग भी गणगौर लेने के लिए बीकानेर आते हैं. ब्यावर से आई ममता कहती है कि बीकानेर की गणगौर के बारे में खूब सुना है और आज मैं खुद गणगौर लेने के लिए आई हूं.

Last Updated : Apr 6, 2022, 2:29 PM IST
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