बीकानेर. आजादी की लड़ाई में अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना योगदान दिया. बड़े संघर्ष और बलिदान के बाद देश आजाद हुआ. लेकिन आजादी के वक्त इन स्वतंत्रता सेनानियों को किन समस्याओं, परेशानियों और संघर्षों से जूझना पड़ा. इसको लेकर कई स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन पर जुड़े प्रसंगों से जानकारी मिलती है. लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन के कुछ बड़े नाम इन संघर्षों और दास्तान से गुजरे, इसके बारे में आमजन को अब भी जानकारी नहीं है. ऐसे ही एक बड़े संघर्ष का सामना करने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे, विजय सिंह पथिक.
पथिक ने राजस्थान के स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके आजादी के आंदोलन में निभाए गए दायित्व और उनके जीवन और आजादी के दौरान के संघर्ष पर जल्द ही राजस्थान राज्य अभिलेखागार की ओर से एक पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है. इस पुस्तक की खास बात यह है कि इसमें शामिल सारे संस्मरण खुद विजय सिंह पथिक के हस्तलिखित पत्रों पर ही आधारित हैं. विजय सिंह पथिक बिजौलिया किसान आंदोलन के अगुवा रहे.
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देश की आज़ादी के संघर्ष को जन-जन तक पहुंचाकर इसे जन-आंदोलन में बदलने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं ने निभाई. इन सभी क्रांतिकारी समाचार-पत्रों के सम्पादक और प्रकाशक भारतीय स्वतंत्रता के वह वीर सेनानी थे, जिन्होंने हर सम्भव प्रयास कर संघर्ष की मशाल को जलाए रखा. भारतीय पत्रकारिता की कड़ी के एक महत्वपूर्ण पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी थे, विजय सिंह पथिक.
पथिक किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. लेकिन बावजूद उनके बारे में शोधार्थियों के पास ज्यादा जानकारी नहीं है. इसी को लेकर पहली बार पथिक के हस्तलिखित पत्रों के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन के उनके अनुभव पर आमजन को जानने का मौका मिलेगा.
पथिक के बारे में?
27 फरवरी 1882 को उत्तर-प्रदेश के बुलंदशहर जिले में गुठावली कला नामक गांव में जन्मे विजय सिंह का वास्तविक नाम भूप सिंह राठी था. उनके पिता का नाम चौधरी हमीर सिंह राठी और माता का नाम श्रीमती कमल देवी था. बचपन से ही पथिक पर अपने दादा दीवान इंद्र सिंह राठी की देशभक्ति का काफ़ी प्रभाव था, जिन्होंने साल 1857 के स्वाधीनता संग्राम में शहादत प्राप्त की थी.
आजादी के आंदोलन में निभाए गए दायित्व और उनके जीवन और आजादी के दौरान के संघर्ष पर जल्द ही राजस्थान राज्य अभिलेखागार की ओर से एक पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है. इस पुस्तक की खास बात यह है कि इसमें शामिल सारे संस्मरण खुद पथिक के हस्तलिखित पत्रों पर ही आधारित हैं. ठाकुरों के अत्याचारों से पीड़ित किसानों के लिए बिजोलिया किसान आंदोलन की नींव पथिक ने ही रखी.
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'बिजोलिया किसान आंदोलन'
बिजोलिया किसान आंदोलन भारतीय इतिहास में हुए कई किसान आंदोलनों में से महत्त्वपूर्ण था. यह 'किसान आन्दोलन' भारत भर में प्रसिद्ध रहा, जो मशहूर क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में चला था. बिजोलिया किसान आंदोलन साल 1847 से प्रारम्भ होकर करीब अर्द्ध शताब्दी तक चलता रहा, जिस प्रकार इस आंदोलन में किसानों ने त्याग और बलिदान की भावना प्रस्तुत की. इसके उदाहरण अपवादस्वरूप ही प्राप्त हैं. किसानों ने जिस प्रकार निरंकुश नौकरशाही और स्वेच्छाचारी सामंतों का संगठित होकर मुक़ाबला किया, वह इतिहास बन गया.
आंदोलन के चरण
पंचायतों के माध्यम से समानांतर सरकार स्थापित कर लेना और उसका सफलतापूर्वक संचालन करना अपने आप में आज भी इतिहास की अनोखी व सुप्रसिद्ध घटना प्रतीत होती है. इस आन्दोलन के प्रथम भाग का नेतृत्व पूर्णरूप से स्थानीय था, दूसरे भाग में नेतृत्व का सूत्र विजय सिंह पथिक के हाथ में था और तीसरे भाग में राष्ट्रीय नेताओं के निर्देशन में आन्दोलन संचालित हो रहा था.
किसानों की मांगों को लेकर साल 1922 में समझौता हो गया था, परंतु इस समझौते को क्रियान्वित नहीं किया जा सका. इसीलिए 'बिजोलिया किसान आंदोलन' ने तृतीय चरण में प्रवेश कर लिया था. नि:संदेह बिजोलिया किसान आंदोलन ने राजस्थान ही नहीं, भारत के अन्य किसान आंदोलनों को भी प्रभावित किया था.
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बिजोलिया किसान आंदोलन में पथिक की अगुवाई से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने भी उन्हें पत्र लिखा. आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए मुंबई में आयोजित एक सभा में उन्हें बुलाने के लिए निमंत्रण भी भेजा. राजस्थान राज्य अभिलेखागार के निदेशक की माने तो शोधार्थियों के लिए विजय सिंह पथिक पर काम करने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन आज तक ऐसी कोई प्रमाणिक जानकारी सामने नहीं आई. फिलहाल, पथिक पर लिखी जा रही पुस्तक का संपादन अंतिम चरण में है. इस पुस्तक का विमोचन प्रदेश के मुखिया अशोक गहलोत कर सकते हैं.