बीकानेर. जिले में जोधपुर के निवासी एक बच्चे की मूक-बधिर होने की जांच तीसरी बार की गई और मेडिकल बोर्ड से हुई जांच की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कॉलेज प्रशासन ने राज्य सरकार और मानवाधिकार आयोग को भेज दी है. दरअसल जोधपुर के निवासी एक बच्चे की मूक बधिर होने को लेकर जोधपुर में हुई दो बार जांच में अलग-अलग रिपोर्ट आई, लेकिन बच्चे के पिता ने बच्चे के 90 फीसदी मूकबाधिर होने के बावजूद भी बच्चे को महज 14 तक मूक बधिर बताने को गलत ठहराया. इसको लेकर राज्य मानव अधिकार आयोग से लेकर सरकार तक हर स्तर पर अपनी बात कही, जिसके बाद राज्य सरकार और मानव अधिकार आयोग के दखल के बाद मेडिकल बोर्ड से विशेषज्ञों की ओर से बच्चे की जांच बीकानेर के सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग में की गई.
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बच्चे के पिता जोधपुर में ही पुलिस में एक अधिकारी है. मामले पर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य शैतान सिंह राठौड़ ने जानकारी देते हुए बताया कि मामला न्यायालय के अधीन है. ऐसे में ज्यादा जानकारी देना संभव नहीं है, लेकिन जो निर्देश दिए गए थे उसके मुताबिक मेडिकल बोर्ड से बच्चे की जांच की गई. मेडिकल बोर्ड में बीकानेर और जयपुर के विशेषज्ञ शामिल थे और जांच की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में ही सरकार और मानव अधिकार आयोग को भेज दी गई है.
क्या है मामला
दरअसल बच्चे के पिता नरपत चंद ने अपने पुत्र का दिव्यांग यूडीआईडी कार्ड जारी करने को लेकर मांग की है. इसके मुताबिक वर्ष 2003 में मथुरादास माथुर अस्पताल जोधपुर, वर्ष 2020 एम्स जोधपुर और वर्ष 2021 में एस एम एस अस्पताल जयपुर की रिपोर्ट में 90 फीसदी दिव्यांग बताया गया है. बच्चे के पिता का कहना है कि उनका पुत्र बोलने में सुनने में दिव्यांग है और अब जन्म के 17 साल बाद जोधपुर के मथुरादास अस्पताल ने उसे दोबारा हुई. पहली बार जांच में महज 8 फीसदी और दूसरी बार हुई जांच में 14 फीसदी बोलने सुनने में असमर्थ बताया है. बच्चे के पिता की ओर से इस मामले को उठाए जाने के बाद अब सरकार और मानव अधिकार आयोग के निर्देश के बाद बीकानेर की सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज से विशेष बोर्ड बनाकर फिर से जांच की गई है और इसकी रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में पुलिस प्रशासन ने भेज दी है.