बीकानेर. बदलते समय के साथ शिक्षा का स्तर भी बदल रहा है. एक वक्त था जब सभी छात्र इंजीनियरिंग के क्षेत्र में ही जाना चाहते थे. वहीं पिछले कुछ सालों में इंजीनियरिंग को लेकर विद्यार्थियों का मोहभंग होता नजर आ रहा है. दरअसल पिछले कुछ सालों में यह देखने में आया है कि हर माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियरिंग के फील्ड में ही देखना चाहते हैं, लेकिन अगर पिछले 5 से 7 सालों की बात करें, तो इंजीनियरिंग कॉलेज का रुझान थोड़ा कम होता नजर आ रहा है.
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कम हुए रुझान को लेकर तकनीकी शिक्षा से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि इस सेक्टर में रोजगार की कमी और सरकारी स्तर पर भर्तियों का कम होने के साथ ही अच्छे पैकेज वाले रोजगार नहीं मिलना एक बड़ा कारण है. बीकानेर स्थित तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति अम्बरीश शरण विद्यार्थी कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि रोजगार नहीं है, लेकिन जो एक्स्ट्राऑर्डिनरी है, उसके लिए कमी नहीं है.
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कुलपति अम्बरीश शरण विद्यार्थी का कहना है कि इंजीनियरिंग सेक्टर में 2010 से पहले तक बड़ा बूम था और बड़ी संख्या में विद्यार्थी इंजीनियरिंग की ओर आकर्षित हो रहे थे, लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे इसमें गिरावट देखने को मिली है और उसके दो तीन प्रमुख कारण है, जिसमें एक निजी क्षेत्रों में जिस ढंग से विस्तार होना चाहिए, वह नहीं हुआ और रोजगार के साधन और अवसर सीमित हो गए.
इसके साथ ही उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में भी एडवांस टेक्नोलॉजी के साथ बदलाव नहीं हुआ और बदलते वक्त के साथ विद्यार्थियों को समय के साथ सीखने का अवसर नहीं मिल पाया, जिससे रोजगार में दिक्कत आई. हालांकि उनका कहना था कि आज भी जो विद्यार्थी मेधावी है, उनके लिए रोजगार की कमी नहीं है.
वहीं बीकानेर इंजीनियर कॉलेज के लेक्चरर शौकत अली का कहना है कि इंजीनियरिंग कॉलेजों में फीस के निर्धारण में एक बार फिर से सोचने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इन कॉलेजों की महंगी फीस हर व्यक्ति की पहुंच में नहीं है और कई बार गरीब और निम्न वर्ग के होशियार बच्चे होशियार होने के बावजूद भी एडमिशन नहीं ले पाते हैं. उनका कहना था कि जो लोग सपोर्ट करते हैं, उन्हें समय पर प्लेसमेंट नहीं मिल पाता है, तो उनका रुझान कम हो रहा है. इंजीनियरिंग सेक्टर के प्रति विद्यार्थियों के रुझान को बढ़ाने के लिए प्लेसमेंट और फीस दोनों मुद्दों पर काम करने की जरूरत है.
इंजीनियरिंग कॉलेज के इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ. विकास शर्मा का कहना है कि यह बात सही है कि इंजीनियरिंग के सेक्टर में डाउनफॉल है, लेकिन आज भी इंजीनियरिंग में कुछ ऐसे सेक्टर हैं, जिनमें डाउनफॉल नहीं है. उन्होंने कहा कि जो इंजीनियर की कोर ब्रांच है, वह सब अभी डाउनफॉल पर है, लेकिन कोरोना के चलते कंप्यूटर से जुड़ी ब्रांच में कुछ रुझान बढ़ा है. लेकिन सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित होने और निजी क्षेत्रों में भी इसी तरह की परेशानी के चलते दूसरे सेक्टर में रुझान कम देखने को मिल रहा.
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बंद हो रहे कॉलेज
इंजीनियरिंग सेक्टर में विद्यार्थियों के घटते रुझान का असर सीटों के खाली रहने पर पड़ा है. इसके चलते अब निजी इंजीनियरिंग कॉलेज लगातार बंद हो रहे हैं. एक आंकडे के मुताबिक पूरे देश में पिछले 5 सालों में तकरीबन 500 के करीब इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हुए हैं. वहीं इन 5 सालों में करीब 400000 सीटें कम भी की गई है, लेकिन वर्तमान में कुल सीटों के अनुपात में करीब 40 फीसदी तक ही सीटों पर प्रवेश हो रहा है.
राजस्थान के हालात
जानकारी के मुताबिक राजस्थान के 159 इंजीनियरिंग कॉलेज और संस्थानों में कुल 84210 सीटें हैं, लेकिन पिछले 3 सालों के आंकड़ों की अगर बात करें तो महज 33 से 36 सीटें भरी जा रही है. इन कुल सीटों में होटल मैनेजमेंट, एमबीए और अन्य संचालित कोर्स भी शामिल है.
देश में इंजीनियरिंग की कुल सीटें
इंजीनियरिंग के घटते रुझान के बाद जहां निजी स्तर पर कॉलेज बंद हुए हैं, तो वहीं AICTE को आवेदन कर कई कॉलेजों ने अपने यहां चल रहे कोर्सेज को बंद किया है. लगातार पिछले 5 सालों में इंजीनियरिंग की सीटों में कमी हुई है. एक ओर जहां मेडिकल और दूसरे सेक्टर में लगातार सरकार नए कॉलेज खोल रही है और सीटें बढ़ा रही है, तो वहीं दूसरी ओर इंजीनियरिंग कॉलेजों के हालात एकदम विपरीत हैं.