बीकानेर. 22 जुलाई 1947 इतिहास के पन्नों में इस दिन का खास महत्व है. इसी दिन हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा अगीकार किया गया था. यानी कि इसी दिन तिरंगे के वर्तमान स्वरूप को स्वीकर किया गया था. आजादी से करीब एक महीने पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने तिरंगे के वर्तमान स्वरूप को देश के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता दी थी. आज के दिन का देश में बड़ा महत्व है. तिरंगा अंगीकरण दिवस (flag adoption day) को लेकर ईटीवी भारत ने इतिहासकारों से बातचीत की तो कई रोचक तथ्य निकलकर सामने आए.
झंडा केवल प्रतीक नहीं, इसके हर आयाम का महत्वः बीकानेर की राजकीय डूंगर महाविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और इतिहासकार डॉ. शिव कुमार भनोत कहते हैं कि झंडा अंगीकरण दिवस का हमारे देश में खास महत्व है. इतिहास की दृष्टि से देखा जाए तो यह दिन बहुत खास है. भनोत कहते हैं कि झंडा केवल प्रतीक मात्र नहीं है बल्कि इसके हर आयाम का एक महत्व है. उन्होंने कहा कि यदि की विवेचना की जाए तो इसके हर पहलू पर ध्यान देना जरूरी है. चाहे बात रंगों की हो या स्वरूप की, हर एक का खास महत्व है.
तीन रंगों का यह है खास महत्वः इतिहासकार डॉ शिव कुमार कहते हैं कि तिरंगे का केसरिया रंग हमारे शौर्य और साहस का प्रतीक है. वहीं शांति और अहिंसा की भावना का प्रतीक श्वेत रंग माना गया है. इसके अलावा हरा रंग हमारी उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक है. तिरंगे के बीच में चक्र होने और उनकी तुलिकाओं पर बात करते हुए डॉ भनोत कहते हैं कि नीले रंग का यह चक्र हमारी गतिशीलता का प्रतीक है, जो कि सारनाथ में अशोक की लाट से लिया गया है. तिरंगे के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार्यता के इतिहास और वर्तमान स्वरूप पर उसकी स्वीकार्यता को लेकर डॉ भनोत कहते हैं कि भगिनी निवेदिता ने झंडे का स्वतंत्रता आंदोलन में प्रयोग किया. लेकिन उसे राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता नहीं मिली. डॉ भनोत कहते हैं कि इंडियन नेशनल कांग्रेस का झंडा इन्हीं तीन रंगों का था लेकिन उसमें बीच में चरखा था.
लंबा रहा है इतिहासः श्रीडूंगरगढ़ महाविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर और इतिहासकार डॉ चंद्रशेखर कच्छावा कहते हैं कि आजादी के आंदोलन के समय अंग्रेजों के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान प्रतीक दिन के तौर पर ग्रीन पार्क कोलकाता में तीन रंग का झंडा लगाया गया. इसमें बीच में कमल का चित्र था. इसके बाद पेरिस में निर्वासित स्वतंत्रता सेनानियों ने मैडम कामा के नेतृत्व में इन रंगों में सप्त ऋषि को प्रदर्शित करते हुए अपना झंडा फहराया. इसके बाद 1917 में आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में कांग्रेस के अधिवेशन में एक युवक ने दो रंग के झंडे को फहराया. जिस पर महात्मा गांधी ने कहा था कि झंडे में बीच में सफेद रंग को भी प्रदर्शित करने करें.
डॉ चंद्रशेखर कच्छावा कहते हैं कि 1931 तिरंगे के वर्तमान स्वरूप की यात्रा का महत्वपूर्ण वर्ष है. क्योंकि कांग्रेस के अधिवेशन में संविधान की झंडा कमेटी को कांग्रेस की ओर से इन्हीं तीन रंग का झंडा होने का सुझाव दिया गया था. बाद में महात्मा गांधी के कहने पर चरखा भी जोड़ा गया. लेकिन 22 मई 1947 को अंतिम रूप से संविधान सभा ने तिरंगे के वर्तमान स्वरूप को स्वीकृति दी और तब से यह दिन झंडा अंगीकरण दिवस के रूप में मान्यता रखता है.