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Bikaner Dolchi Holi : अनूठी होली ने खूनी संघर्ष को बदल दिया प्रेम में, चार शताब्दियों से चल रही परंपरा...

फाल्गुनी मस्ती के पर्व होली के मौके पर बीकानेर में कई ऐसी परंपराएं हैं जो कई शताब्दियों से चली आ रही हैं. इन्हीं में एक परंपरा है (Bikaner Dolchi Holi) डोलची पानी खेल. कभी दो जातियों के बीच हुए खूनी संघर्ष का पटाक्षेप करने के लिए शुरू हुई ये कवायद अब परंपरा में बदल चुकी है. होली के मौके पर हर साल इसमें दोनों जातियों के लोग बड़ी शिद्दत के साथ शिरकत करते हैं.

bikaner holi special
यहां अनूठी होली ने खूनी संघर्ष को बदल दिया प्रेम में...
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Published : Mar 15, 2022, 6:25 PM IST

बीकानेर. रसगुल्ले की मिठास और नमकीन की तीखेपन के लिए पूरी दुनिया में मशहूर बीकानेर (Bikaner Holi) अपनी फाल्गुनी मस्ती के लिए भी जाना जाता है. फाल्गुनी मस्ती के पर्व होली के मौके पर यहां अल्हड़ अंदाज में होली को मनाया जाता है. बीकानेर में होली के साथ जुड़ी हुई कई ऐसी परंपराएं हैं जो कई शताब्दियों से चली आ रही हैं और इन्हीं में एक परंपरा है डोलची पानी खेल. देखिये यह रिपोर्ट...

फाल्गुनी मस्ती के सतरंगी त्योहार के रूप में होली की पहचान है और होली के मौके पर महज केवल एक दिन के लिए नहीं, बल्कि कई दिनों तक बीकानेर होली की मस्ती में रहता है. वैसे तो बीकानेर में हर त्यौहार को अपने ढंग से अलग तरह से मनाने का चलन है, लेकिन होली के मौके पर यह चलन कुछ अलग ही है. होली से जुड़ी कई परंपराएं अब होली के मौके पर उससे इस तरह जुड़ चुकी हैं कि हर साल लोग इन परंपराओं को बड़ी शिद्दत से निभाते हैं.

यहां अनूठी होली ने खूनी संघर्ष को बदल दिया प्रेम में...

ऐसी ही एक परंपरा है बीकानेर के पुष्करणा समाज की दो उपजातियों व्यास और हर्ष के बीच जुड़े संघर्ष से. चमड़ी की बनी बर्तननुमा वस्तु जिसे (Bikaner Dolchi Holi) डोलची कहा जाता है. होली के मौके पर दोनों जातियों के बीच डोलची से पानी का खेल खेला जाता है, जिसमें एक दूसरे की पीठ पर डोलची में पानी भर कर फेंका जाता है. हालांकि, पीठ पर जब पानी का वार पड़ता है तो दर्द भी बहुत होता है, लेकिन कभी दो जातियों के बीच हुए संघर्ष को मिटाने की याद में परंपरा के रूप में निभाए जाने वाले इस त्योहार में पीठ पर होने वाले दर्द को सहन हुए लोग इसमें भागीदारी करते हैं.

परंपरा का निर्वहन करते हुए करीब 2 घंटे से भी ज्यादा समय तक चलने वाले इस खेल को लाल रंग की गुलाल उड़ाकर (bikaner holi special) समाप्त किया जाता है. आयोजन में पिछले लंबे समय से शामिल हो रहे युवा राम कुमार हर्ष कहते हैं कि भले ही इस आयोजन की शुरुआत किसी भी तरह से हुई हो, लेकिन होली के मौके पर इस आयोजन में भागीदारी करने का इंतजार पूरे वर्ष रहता है. उमंग के इस त्यौहार में इस तरह से आयोजन में भागीदारी करते हुए मन प्रफुल्लित हो जाता है.

पढ़ें : होली के खुशियों में घुलेगा खट्टे-मीठे घेयर का स्वाद, जलेबी सा दिखने वाला यह व्यंजन सिंधी समाज की पहचान...विदेशों तक हैं चर्चे

पढ़ें : SPECIAL : यहां अनूठी होली ने खूनी संघर्ष को बदल दिया प्रेम में....बीकानेर में 350 साल से खेली जा रही डोलची होली

वे कहते हैं कि दो जातियों में खूनी संघर्ष को खत्म करने का यह तरीका पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा और आज भी हम लोग इसे परंपरा के रूप में निभाते हैं. आयोजन में हर दोनों उपजातियों के हर उम्र के लोग इसमें शामिल होते हैं. चाहे बुजुर्ग हो या बच्चे या युवा, हर कोई आयोजन में अपनी भागीदारी निभाता है और एक दूसरे की पीठ पर पानी का वार करता है. बुजुर्ग गोविंद व्यास करते हैं कि बरसाने की लठमार होली पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है और बीकानेर की डोलची खेल भी अपने आप में अनूठा है.

Bikaner Dolchi Holi
खूनी संघर्ष को प्रेम में बदलने की याद में डोलची खेल...

जोशी-भादाणी ने भी शुरू की परंपरा : हर और व्यास जाति के बीच खेले जाने वाले करीब 400 साल पुरानी इस खेल के बाद अब बीकानेर में पुष्करणा समाज (Pushkarna Samaj Special Holi) की दो और उपजातियों जोशी और भादाणी जाति के लोगों ने भी इस तरह के खेल की परंपरा को शुरू किया है. हर्ष और व्यास जाति के बीच होने वाले खेल के अगले दिन इन दोनों उपजातियों के बीच भी यह खेल खेला जाता है.

पढ़ें : गुलाबी नगरी में गंगा-जमुनी तहजीब: परंपराओं को सहेजे है गुलाल गोटा...होली पर बढ़ी मांग, विदेशों में भी होता है सप्लाई

बीकानेर. रसगुल्ले की मिठास और नमकीन की तीखेपन के लिए पूरी दुनिया में मशहूर बीकानेर (Bikaner Holi) अपनी फाल्गुनी मस्ती के लिए भी जाना जाता है. फाल्गुनी मस्ती के पर्व होली के मौके पर यहां अल्हड़ अंदाज में होली को मनाया जाता है. बीकानेर में होली के साथ जुड़ी हुई कई ऐसी परंपराएं हैं जो कई शताब्दियों से चली आ रही हैं और इन्हीं में एक परंपरा है डोलची पानी खेल. देखिये यह रिपोर्ट...

फाल्गुनी मस्ती के सतरंगी त्योहार के रूप में होली की पहचान है और होली के मौके पर महज केवल एक दिन के लिए नहीं, बल्कि कई दिनों तक बीकानेर होली की मस्ती में रहता है. वैसे तो बीकानेर में हर त्यौहार को अपने ढंग से अलग तरह से मनाने का चलन है, लेकिन होली के मौके पर यह चलन कुछ अलग ही है. होली से जुड़ी कई परंपराएं अब होली के मौके पर उससे इस तरह जुड़ चुकी हैं कि हर साल लोग इन परंपराओं को बड़ी शिद्दत से निभाते हैं.

यहां अनूठी होली ने खूनी संघर्ष को बदल दिया प्रेम में...

ऐसी ही एक परंपरा है बीकानेर के पुष्करणा समाज की दो उपजातियों व्यास और हर्ष के बीच जुड़े संघर्ष से. चमड़ी की बनी बर्तननुमा वस्तु जिसे (Bikaner Dolchi Holi) डोलची कहा जाता है. होली के मौके पर दोनों जातियों के बीच डोलची से पानी का खेल खेला जाता है, जिसमें एक दूसरे की पीठ पर डोलची में पानी भर कर फेंका जाता है. हालांकि, पीठ पर जब पानी का वार पड़ता है तो दर्द भी बहुत होता है, लेकिन कभी दो जातियों के बीच हुए संघर्ष को मिटाने की याद में परंपरा के रूप में निभाए जाने वाले इस त्योहार में पीठ पर होने वाले दर्द को सहन हुए लोग इसमें भागीदारी करते हैं.

परंपरा का निर्वहन करते हुए करीब 2 घंटे से भी ज्यादा समय तक चलने वाले इस खेल को लाल रंग की गुलाल उड़ाकर (bikaner holi special) समाप्त किया जाता है. आयोजन में पिछले लंबे समय से शामिल हो रहे युवा राम कुमार हर्ष कहते हैं कि भले ही इस आयोजन की शुरुआत किसी भी तरह से हुई हो, लेकिन होली के मौके पर इस आयोजन में भागीदारी करने का इंतजार पूरे वर्ष रहता है. उमंग के इस त्यौहार में इस तरह से आयोजन में भागीदारी करते हुए मन प्रफुल्लित हो जाता है.

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वे कहते हैं कि दो जातियों में खूनी संघर्ष को खत्म करने का यह तरीका पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा और आज भी हम लोग इसे परंपरा के रूप में निभाते हैं. आयोजन में हर दोनों उपजातियों के हर उम्र के लोग इसमें शामिल होते हैं. चाहे बुजुर्ग हो या बच्चे या युवा, हर कोई आयोजन में अपनी भागीदारी निभाता है और एक दूसरे की पीठ पर पानी का वार करता है. बुजुर्ग गोविंद व्यास करते हैं कि बरसाने की लठमार होली पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है और बीकानेर की डोलची खेल भी अपने आप में अनूठा है.

Bikaner Dolchi Holi
खूनी संघर्ष को प्रेम में बदलने की याद में डोलची खेल...

जोशी-भादाणी ने भी शुरू की परंपरा : हर और व्यास जाति के बीच खेले जाने वाले करीब 400 साल पुरानी इस खेल के बाद अब बीकानेर में पुष्करणा समाज (Pushkarna Samaj Special Holi) की दो और उपजातियों जोशी और भादाणी जाति के लोगों ने भी इस तरह के खेल की परंपरा को शुरू किया है. हर्ष और व्यास जाति के बीच होने वाले खेल के अगले दिन इन दोनों उपजातियों के बीच भी यह खेल खेला जाता है.

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