बीकानेर. मरणोपरांत भी व्यक्ति का शरीर बहुत काम आता है. चाहे बात शरीर के अंगों की हो या फिर मेडिकल स्टूडेंट के पढ़ाई के लिए दिए जाने वाले मृत शरीर की, दोनों ही मामलों में हमारा देश अभी पिछड़ा है. आज मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब अंग प्रत्यारोपण एक आसान प्रक्रिया हो गई है और एक व्यक्ति 8 लोगों को अलग-अलग अंग प्रत्यारोपित करवाकर नया जीवन दे सकता है, लेकिन जरूरत है एक पहल की. मरणोपरांत आसानी से मानव शरीर के अगदान या नेत्रदान की प्रक्रिया हो सकती है.
इसके अलावा पिछले दिनों में जागरूकता के बाद देहदान को लेकर भी लोगों की ओर से शुरुआत की गई है. दरअसल कोई भी व्यक्ति अपने जीवन काल में देहदान को लेकर संकल्प पत्र भर देता है और उस व्यक्ति की मृत्यु होने पर परिवार जनों की सहमति के बाद उसकी देह को मेडिकल कॉलेज में दान दिया जाता है ताकि मेडिकल स्टूडेंट पढ़ाई के दौरान मानव शरीर संरचना को लेकर जानकारी जुटा सकें और आने वाले समय में चिकित्सक बनकर लोगों का मुकम्मल इलाज कर सकें, लेकिन अभी भी इस दिशा में देश पिछड़ा हुआ है.
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अंगदान और देहदान अलग-अलग प्रक्रिया
दरअसल अंगदान और देहदान दोनों ही अलग-अलग प्रक्रिया है लेकिन इन दोनों का मकसद मानव जीवन को बचाना है. अपने जीवन काल में एक व्यक्ति अपनी इच्छा से शरीर का अंग यानी कि किडनी, लीवर किसी व्यक्ति को दे सकता है और खुद का जीवन भी आसानी से जी सकता है. साथ ही एक नई जिंदगी को रौशन करने में मददगार साबित हो सकता है. हालांकि पिछले दिनों ब्रेन डेड हो चुके व्यक्तियों के परिजनों ने कुछ लोगों को नया जीवन देने के लिए उस व्यक्ति के अलग-अलग अंगों को दूसरे लोगों को प्रत्यारोपित करवाया और ऐसे करके एक व्यक्ति आठ लोगों को नई जिंदगी दे पाता है.
जिले के ईएनटी चिकित्सक लगातार चला रहे मुहिम
बीकानेर में एक ईएनटी चिकित्सक पिछले 6-7 सालों से लगातार इस मुहिम में कार्य कर रहे हैं. बीकानेर के ईएनटी चिकित्सक डॉ. राकेश रावत ने इस मुहिम को अपने परिवार जनों के साथ साझा (campaign for body and organ donation) किया और परिजनों का साथ मिला तो एक समिति बना गई. लोगों का भी समिति से जुड़ना शुरू हो गया और अब काफी संख्या में लोग समिति जुड़ रहे हैं. डॉ रावत बताते हैं कि शुरुआत में किसी से इस बारे में चर्चा करना भी बड़ा मुश्किल था लेकिन अब धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता आ रही है. अबतक सर्व मानव कल्याण समिति की स्थापना करते हुए 82 लोगों से देहदान का संकल्प पत्र भरवाया जा सा है तो वहीं 52 लोगों से अंग दान का संकल्प पत्र भी भरवाया गया है.
वे कहते हैं कि पिछले समिति के प्रयासों से 5 सालों में 5 लोगों ने देह दान किया है. दरअसल इस मुहिम की शुरुआत डॉ. राकेश रावत ने अपने परिवार से ही की और परिवार के सभी लोगों ने इस मुहिम में उनका साथ दिया और देहदान को लेकर संकल्प पत्र भी भरा. वे कहते हैं कि उनके पिताजी ने उनके इस काम में उनका हौसला बढ़ाया. हालांकि खुद पिताजी ने भी इसका संकल्प लिया था लेकिन बाद में कैंसर के चलते उनका देहदान नहीं हो पाया.
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एनाटॉमी डिपार्टमेंट में पढ़ाने के लिए बॉडी न होने पर शुरू की मुहिम
बताते हैं कि एक बार कोई मेडिकल स्टूडेंट उनसे मिलने आया और इस दौरान बातचीत में उन्हें इस बात की जानकारी हुई कि एनाटॉमी डिपार्टमेंट में शरीर संरचना का ज्ञान देने वाले स्टूडेंट्स के लिए बॉडी ही नहीं है. तभी इस बात का ख्याल आया और फिर परिवार जनों का सपोर्ट मिला तो ऐसा कुछ करने की इच्छा जागी और भविष्य में अंगदान को लेकर भी मुहिम को इस में जोड़ा गया.इस अभियान में शुरुआत में ही जुड़े उनके मित्र और रिटायर्ड बैंक अधिकारी प्रवीण चावला कहते हैं कि डॉ. रावत ने जब इस मुहिम को शुरू करने का विचार किया और सलाह की तो हम लोगों ने भी उनका पूरा साथ दिया. उन्होंने कहा कि वे भी पत्नी के साथ देहदान को लेकर संकल्प लिया है.
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धार्मिक कुरीतियां भी आती हैं आड़े
वे कहते हैं कि यह बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन धार्मिक कुरीतियों के चलते लोग आगे आने में हिचकिचाते हैं लेकिन अब धीरे-धीरे जागरूकता आ रही है. डॉ रावत के साथ ही कार्य कर रहे उनके सहयोगी जावेद ने भी इस काम और जुनून को देखते हुए संकल्प लिया है. वे कहते हैं कि मरने के बाद शरीर मेडिकल स्टूडेंट्स की पढ़ाई के काम आता है तो इससे नई बीमारियों के इलाज में भी मदद मिलेगी और नए चिकित्सक भी तैयार होंगे. साथ ही अंग प्रत्यारोपण से भी कई लोगों की जान बच सकती है.
रिटायर्ड बैंक के अधिकारी प्रवीण चावला की पत्नी लता चावला भी अपने पति के इस काम में उनकी हौसला अफजाई करती हुई नजर आईं. साथ ही उन्होंने कहा कि हम महिलाएं हर काम में बराबरी की बात कहती हैं लेकिन इस तरह की मूवमेंट में भी आना चाहिए. सामाजिक सोच को बदलते हुए अंगदान और देहदान का खुले विचारों से समर्थन करना चाहिए.
22 सालों में कुल 54 ने किया देहदान
बीकानेर के सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. राकेश मणि कहते हैं कि निश्चित रूप से लोगों में जागरूकता की कमी है. उन्होंने बताया कि 2001 से अब तक पिछले 22 सालों में मेडिकल कॉलेज में कुल 54 लोगों ने ही देहदान किया है. हालांकि संकल्प पत्र भरने वालों की संख्या 343 है. पिछले 2 सालों में कोविड-19 चलते देहदान की प्रक्रिया धीमी होने की बात कही जा रही हैं. उन्होंने बताया कि इससे थोड़ा असर तो पड़ा है.
मेडिकल स्टूडेंट के लिए देह दान की कमी को लेकर डॉक्टर राकेश मणि ने कहा कि पहले लावारिस शव को मेडिकल कॉलेज में दिया जाता था लेकिन अब नियमों में परिवर्तन के बाद लावारिस शव मिलने पर उसका पोस्टमार्टम होता है लेकिन पोस्टमार्टम किया हुआ शव हमारे काम नहीं आ सकता है. डॉ मणि ने भी डॉक्टर राकेश रावत के प्रयासों को जागरूकता के लिए एक बेहद सफल कदम बताया.
केंद्र सरकार ने एनओटीटीओ का किया गठन
सामाजिक स्तर पर अंगदान और देहदान को लेकर लोगों में जागरूकता नहीं है और अब धीरे-धीरे जागरुकता को लेकर सरकारी स्तर पर भी प्रयास किए जा रहे हैं और केंद्र सरकार ने इसके एक संगठन एनओटीटीओ का गठन भी किया है. हालांकि देश में अभी अंगदान को लेकर लोगों में जागरूकता नहीं है और एक फीसदी लोग भी अंगदान नहीं करते हैं. एनओटीटीओ की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर 10 लाख में से महज 0.65 फीसदी लोग ही अंगदान करते हैं और उनमें किसी पारिवारिक सदस्य को जरूरत पड़ने पर परिवार के सदस्य की ओर से कराया गया अंग प्रत्यारोपण शामिल है.
जबकि दुनिया के दूसरे देशों में यह आंकड़ा भारत से कई गुना ज्यादा है. देश में हर साल 2,50,000 लोगों को किडनी 50,000 से ज्यादा लोगों को लीवर 50,000 लोगों को ह्रदय और एक लाख लोगों को कार्निया के प्रत्यारोपण की जरूरत होती है लेकिन उस अनुपात में वह नहीं मिल पाता है.
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मुहिम को साथ मिलने से खुश हैं डॉ. रावत
रावत कहते हैं कि शुरुआत में जब इस मुहिम को शुरू किया तब मदद के लिए ज्यादा लोग सामने नहीं आए लेकिन अब धीरे-धीरे इसको लेकर लोग जानकारी भी ले रहे हैं और 12 मौके ऐसे भी आए जब स्वप्रेरणा से लोग उनके पास आए और देहदान और अंगदान को लेकर अपनी इच्छा व्यक्त करने के साथ संकल्प पत्र भी भरा.
बीकानेर मेडिकल कॉलेज में देहदान
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