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नवजात शिशुओं से ये कैसी दूरी ! ...अस्पताल के पालना गृह में बच्चियों को छोड़कर जा रहे दंपत्ति

केंद्र सरकार और राज्य सरकार बालिका शिक्षा पर जोर देने की बात करती हैं, लेकिन हकीकत तो यह है कि शिक्षा तो दूर की बात, आज भी समाज में कुछ लोग बेटियों को अपनाने से कतरा रहे हैं. यह हम नहीं कह रहे, भीलवाड़ा के शिशु अस्पताल से सामने आई यह रिपोर्ट खुद हकीकत बयां कर रही है. यहां के पालने घर में मासूम बच्चियों को परिजन तड़पने के लिए छोड़ जा रहे हैं. देखिए भीलवाड़ा से यह स्पेशल रिपोर्ट...

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पालने में बेटियों को मरने के लिए छोड़कर जा रहे दंपत्ति
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Published : Feb 6, 2020, 6:58 PM IST

Updated : Feb 6, 2020, 8:11 PM IST

भीलवाड़ा. देशभर में बालिका शिक्षा को बढ़ावा और उत्थान के लिए सरकार कई महत्वपूर्ण योजनाएं बनाती है, लेकिन कड़वा सच यह है कि आज भी बेटियों को जन्म के बाद अपनाने में संकोच किया जा रहा है. इसकी बानगी भीलवाड़ा के महात्मा गांधी अस्पताल की इकाई मातृ और शिशु चिकित्सालय का पालना बयां कर रहा है.

पालने में बेटियों को मरने के लिए छोड़कर जा रहे दंपत्ति

कचरे में न फेंके, इसलिए लगाया गया पालना...

बाल कल्याण समिति ने साल 2014 में महात्मा गांधी अस्पताल ने स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर पालना लगवाया, ताकि लोग कचरे और नालियों में नवजात को नही फेंके.

यह भी पढ़ें- मरु महोत्सव 2020: मंत्री सालेह मोहम्मद ने शोभायात्रा को दिखाई हरी झंडी

  • महात्मा गांधी अस्पताल में पिछले 6 सालों में पालना में आए नवजातों में से 7 बच्चे दम तोड़ चुके हैं, जिसमें 6 बेटियां शामिल हैं.
  • पिछले साल बस की बात करें, तो 2019 में 4 बेटियों को पालने में छोड़ी गई थी, जिसमें से 2 की मौत हो गई और बाकी 2 को महिला और बाल कल्याण समिति ने गोद दे दिया.

महिला बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष डॉ. सुमन त्रिवेदी से बताया कि, अभी भी 21वीं सदी में बेटी और बेटों में फर्क देखा जा रहा है. उन्होंने कहा कि साल 2014 में स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर भीलवाड़ा के महात्मा गांधी अस्पताल ने पालना गृह खोला गया. इस पालना गृह में अब तक 18 बच्चों को परिजन छोड़कर जा चुके हैं.

यह भी पढ़ें- बांसवाड़ाः हरिदेव जोशी राजकीय कन्या महाविद्यालय में छात्रसंघ का उद्घाटन

आधुनिक भारत में कहने को तो बेटा और बेटी में फर्क खत्म हो चुका है, लेकिन भीलवाड़ा का यह कड़वा सच इस बात की ओर इशारा करता है कि आज भी बेटियों को बेटों की तुलना में कमतर ही आंका जा रहा है. इस अस्पताल से सामने आए आंकड़े काफी निराशाजनक है.

भीलवाड़ा. देशभर में बालिका शिक्षा को बढ़ावा और उत्थान के लिए सरकार कई महत्वपूर्ण योजनाएं बनाती है, लेकिन कड़वा सच यह है कि आज भी बेटियों को जन्म के बाद अपनाने में संकोच किया जा रहा है. इसकी बानगी भीलवाड़ा के महात्मा गांधी अस्पताल की इकाई मातृ और शिशु चिकित्सालय का पालना बयां कर रहा है.

पालने में बेटियों को मरने के लिए छोड़कर जा रहे दंपत्ति

कचरे में न फेंके, इसलिए लगाया गया पालना...

बाल कल्याण समिति ने साल 2014 में महात्मा गांधी अस्पताल ने स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर पालना लगवाया, ताकि लोग कचरे और नालियों में नवजात को नही फेंके.

यह भी पढ़ें- मरु महोत्सव 2020: मंत्री सालेह मोहम्मद ने शोभायात्रा को दिखाई हरी झंडी

  • महात्मा गांधी अस्पताल में पिछले 6 सालों में पालना में आए नवजातों में से 7 बच्चे दम तोड़ चुके हैं, जिसमें 6 बेटियां शामिल हैं.
  • पिछले साल बस की बात करें, तो 2019 में 4 बेटियों को पालने में छोड़ी गई थी, जिसमें से 2 की मौत हो गई और बाकी 2 को महिला और बाल कल्याण समिति ने गोद दे दिया.

महिला बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष डॉ. सुमन त्रिवेदी से बताया कि, अभी भी 21वीं सदी में बेटी और बेटों में फर्क देखा जा रहा है. उन्होंने कहा कि साल 2014 में स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर भीलवाड़ा के महात्मा गांधी अस्पताल ने पालना गृह खोला गया. इस पालना गृह में अब तक 18 बच्चों को परिजन छोड़कर जा चुके हैं.

यह भी पढ़ें- बांसवाड़ाः हरिदेव जोशी राजकीय कन्या महाविद्यालय में छात्रसंघ का उद्घाटन

आधुनिक भारत में कहने को तो बेटा और बेटी में फर्क खत्म हो चुका है, लेकिन भीलवाड़ा का यह कड़वा सच इस बात की ओर इशारा करता है कि आज भी बेटियों को बेटों की तुलना में कमतर ही आंका जा रहा है. इस अस्पताल से सामने आए आंकड़े काफी निराशाजनक है.

Intro:नोट- यह स्पेशल स्टोरी है आकडे सहित

भीलवाड़ा - देशभर में बालिका शिक्षा को बढ़ावा और उत्थान के लिए सरकार कई महत्वपूर्ण योजना चलाती है । लेकिन कड़वा सच यह है कि आज भी बेटियां जन्म के बाद अपनाने में संकोच किया जा रहा है । इसकी बानगी भीलवाड़ा के महात्मा गांधी अस्पताल की इकाई मातृ एवम शिशु चिकित्सालय का पालना बयां कर रहा है । 6 साल में अब तक 18 नवजात पालने में छोड़ी गई । वही वर्ष 2019 में 4 बेटियां पालने में छोड़ी गई थी जिसमें दो को तो गोद दे दिया और दो बेटियो की मौत हो गई।


Body:केंद्र सरकार और राज्य सरकार बालिका शिक्षा को बढ़ावा और उत्थान के लिए हर साल राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। लेकिन कड़वा सच यह है कि आज भी बेटियां जन्म के बाद अपनाने में संकोच किया जा रहा है । इसकी बानगी भीलवाड़ा के अ श्रेणी महात्मा गांधी अस्पताल की मातृ एवं शिशु चिकित्सालय का पालना बयां कर रहा है। 6 साल में 18 नवजात पालने में छोड़े गए इनमें से 13 बेटियां थी । इनमे से किसी को कड़ाके की सर्दी तो किसी को बारिश में पालने में छोड़ा गया।

ताकि ने फेंके कचरे में- बाल कल्याण समिति ने वर्ष 2014 में महात्मा गांधी अस्पताल में स्वयंसेवी संगठनों ने से मिलकर पालना लगवाया । ताकी लोग कचरे व नालियों में नवजात को नही फेंके । इस पालने में परिजन अब तक 13 बेटियां और पांच बेटे को छोड़कर गए।

सात ने तोड़ा दम उसमे मे 6 थी बेटियां - महात्मा गांधी अस्पताल की मातृ एवं शिशु चिकित्सालय के पालना में आए नवजात ओं में से सात ने दम तोड़ चुके हैं। इनमें से 6 बेटियां शामिल है । गत वर्ष 2019 की बात करें तो वर्ष 2019 में चार बेटियों को पालने में छोड़कर गए। जिसमें से दो बेटियों की मौत हो गई वह दो को महिला एवं बाल कल्याण समिति ने गोद दे दिया।

ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल की तो भीलवाड़ा की महिला बाल कल्याण समिति की अध्यक्षा डॉ सुमन त्रिवेदी ने कहा कि अभी भी 21वीं सदी में बेटी व बेटों में फर्क देखा जा रहा है । जहां मैंने वर्ष 2014 में स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर भीलवाड़ा के महात्मा गांधी अस्पताल ने पालना गृह खोला गया। इस पालना गृह में अब तक अट्ठारह बच्चे बच्ची को छोड़ा गया। जिसमें से वर्ष 2019 की बात करें तो चार बेटियों को चाहे सर्दी ,गर्मी, वर्षा में इस पालना गृह में छोड़ा गया था । जिसमें 2 बालिकाओं की तो मौत हो गई और दो को हमने गोद दे दिया।

बाइट - डां. सुमन त्रिवेदी

पूर्व महिला बाल कल्याण समिति अध्यक्षा

अब देखना यह होगा कि 21वीं सदी में भी बेटी और बेटों में जहां लोग अभी भी फर्क देखते हैं तो इनकी सोच बदलती है या नही।

सोमदत्त त्रिपाठी ईटीवी भारत भीलवाड़ा

पीटीसी - सोमदत्त त्रिपाठी भीलवाड़ा



Conclusion:
Last Updated : Feb 6, 2020, 8:11 PM IST
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